नम्र-निवेदन
भारतीय संस्कृतिमें वेदोंके बाद पुराणोंका महत्त्वपूर्ण स्थान है । वेदोंके विषय गूढ़ होनेके कारण जन-सामान्यके लिये कठिन हैं, किन्तु भक्तिरससे ओतप्रोत पुराणोंकी मङ्गलमयी एवं ज्ञानप्रदायिनी कथाओंके श्रवण-मनन और पठन-पाठनके द्वारा साधारण मनुष्य भी भक्तितत्त्वका अनुपम रहस्य जानकर सहज ही अपना आत्मकल्याण कर सकता है । पुराणोंकी पवित्र कहानियोंके स्वाध्यायसे अध्यात्मकी दिशामें अग्रसर होनेवाले साधकोंको तत्त्वबोधकी प्राप्ति होती है तथा भगवान्के पुनीत चरणोंमें सहज अनुराग होता है । पौराणिक कहानियोंके द्वारा धर्म-अधर्मका ज्ञान होता है, सदाचारमें प्रवृत्ति होती है तथा भगवान्में भक्ति बढ़ती है । इन कथारूप उपदेशोंको सुनते-सुनते मानवका मन निर्मल होता है, जीवन सुधरता है तथा इहलोक और परलोक-दोनोंमें सुख और शान्ति मिलती है ।
प्रस्तुत पुस्तक कल्याण (वर्ष ६३, सन् १९८९ ई० )-में प्रकाशितपुराण-कथाङ्क से चयनित कहानियोंका अनुपम संग्रह है । इसमें शिवभक्त नन्दभद्र, नारायण-मन्त्रकी महिमा, कीर्तनका फल, सत्यकी महिमा, दानका स्वरूप, चोरीकी चोरी आदि ३६ उपयोगी एवं सन्मार्गकी प्रेरक कहानियाँ संकलित हैं । पुराणोंसे संकलित सुहत् सम्मत उपदेशपरक इन कहानियोंका स्वाध्याय सबके लिये कल्याणकारी है । इनके अध्ययन और मननसे प्रेरणा लेकर हम सबको सन्मार्ग और भगवद्धक्तिके पथपर आगे बढ़ना चाहिये ।
विषय-सूची |
||
1 |
शिवभक्त नन्दभद्र |
5 |
2 |
भक्त विष्णुदास और चक्रवर्ती सम्राट- चोल |
12 |
3 |
नारायण-मन्त्रकी महिमा |
16 |
4 |
कर्मरहस्य |
20 |
5 |
कीर्तनका फल |
23 |
6 |
भक्ति बड़ी है या शक्ति |
26 |
7 |
सुदर्शनचक्र-प्राप्तिकी कथा |
28 |
8 |
आसक्तिसे विजेता भी पराजित |
31 |
9 |
जयध्वजकी विष्णुभक्ति |
34 |
10 |
अविमुक्त-क्षेत्रमें शिवार्चन से यक्षको गणेशत्व-प्राप्ति |
36 |
11 |
बिना दान दिये परलोकमें भोजन नहीं मिलता |
39 |
12 |
सोमपुत्री जाम्बवती |
41 |
13 |
और्ध्वदेहिक दानका महत्त्व |
44 |
14 |
चोरीकी चोरी |
47 |
15 |
आदिशक्ति ललिताम्बा |
50 |
16 |
पाँच महातीर्थ |
55 |
17 |
जगन्नाथधाम |
61 |
18 |
सदाचारसे कल्याण |
64 |
19 |
ब्रह्माजीका दर्पभंग |
68 |
20 |
भक्तिके वश भगवान् |
70 |
21 |
भगवद्गानमें विघ्न न डालें |
72 |
22 |
दानका स्वरूप |
75 |
23 |
सत्यकी महिमा |
81 |
24 |
परलोकको न बिगड़ने दें |
85 |
25 |
संतसे वार्तालापकी महिमा |
87 |
26 |
भगवान् आश्रितोंकी देखभाल करते हैं |
90 |
27 |
पातिव्रत-धर्मका महत्त्व |
94 |
28 |
पाँच पितृभक्त पुत्र |
97 |
29 |
स्त्री, शूद्र और कलियुगकी महत्ता |
107 |
30 |
धन्य कौन? |
108 |
31 |
नारदजीका कामविजय- विषयक अभिमानभंग |
112 |
32 |
किरातवेषधारी शिवजी की अर्जुनपर कृपा |
116 |
33 |
महान् तीर्थ-माता-पिता |
119 |
34 |
द्रौपदीकी क्षमाशीलता |
122 |
35 |
कुसंग परमार्थका बाधक |
125 |
36 |
दुख-दर्दकी माँग |
127 |
नम्र-निवेदन
भारतीय संस्कृतिमें वेदोंके बाद पुराणोंका महत्त्वपूर्ण स्थान है । वेदोंके विषय गूढ़ होनेके कारण जन-सामान्यके लिये कठिन हैं, किन्तु भक्तिरससे ओतप्रोत पुराणोंकी मङ्गलमयी एवं ज्ञानप्रदायिनी कथाओंके श्रवण-मनन और पठन-पाठनके द्वारा साधारण मनुष्य भी भक्तितत्त्वका अनुपम रहस्य जानकर सहज ही अपना आत्मकल्याण कर सकता है । पुराणोंकी पवित्र कहानियोंके स्वाध्यायसे अध्यात्मकी दिशामें अग्रसर होनेवाले साधकोंको तत्त्वबोधकी प्राप्ति होती है तथा भगवान्के पुनीत चरणोंमें सहज अनुराग होता है । पौराणिक कहानियोंके द्वारा धर्म-अधर्मका ज्ञान होता है, सदाचारमें प्रवृत्ति होती है तथा भगवान्में भक्ति बढ़ती है । इन कथारूप उपदेशोंको सुनते-सुनते मानवका मन निर्मल होता है, जीवन सुधरता है तथा इहलोक और परलोक-दोनोंमें सुख और शान्ति मिलती है ।
प्रस्तुत पुस्तक कल्याण (वर्ष ६३, सन् १९८९ ई० )-में प्रकाशितपुराण-कथाङ्क से चयनित कहानियोंका अनुपम संग्रह है । इसमें शिवभक्त नन्दभद्र, नारायण-मन्त्रकी महिमा, कीर्तनका फल, सत्यकी महिमा, दानका स्वरूप, चोरीकी चोरी आदि ३६ उपयोगी एवं सन्मार्गकी प्रेरक कहानियाँ संकलित हैं । पुराणोंसे संकलित सुहत् सम्मत उपदेशपरक इन कहानियोंका स्वाध्याय सबके लिये कल्याणकारी है । इनके अध्ययन और मननसे प्रेरणा लेकर हम सबको सन्मार्ग और भगवद्धक्तिके पथपर आगे बढ़ना चाहिये ।
विषय-सूची |
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1 |
शिवभक्त नन्दभद्र |
5 |
2 |
भक्त विष्णुदास और चक्रवर्ती सम्राट- चोल |
12 |
3 |
नारायण-मन्त्रकी महिमा |
16 |
4 |
कर्मरहस्य |
20 |
5 |
कीर्तनका फल |
23 |
6 |
भक्ति बड़ी है या शक्ति |
26 |
7 |
सुदर्शनचक्र-प्राप्तिकी कथा |
28 |
8 |
आसक्तिसे विजेता भी पराजित |
31 |
9 |
जयध्वजकी विष्णुभक्ति |
34 |
10 |
अविमुक्त-क्षेत्रमें शिवार्चन से यक्षको गणेशत्व-प्राप्ति |
36 |
11 |
बिना दान दिये परलोकमें भोजन नहीं मिलता |
39 |
12 |
सोमपुत्री जाम्बवती |
41 |
13 |
और्ध्वदेहिक दानका महत्त्व |
44 |
14 |
चोरीकी चोरी |
47 |
15 |
आदिशक्ति ललिताम्बा |
50 |
16 |
पाँच महातीर्थ |
55 |
17 |
जगन्नाथधाम |
61 |
18 |
सदाचारसे कल्याण |
64 |
19 |
ब्रह्माजीका दर्पभंग |
68 |
20 |
भक्तिके वश भगवान् |
70 |
21 |
भगवद्गानमें विघ्न न डालें |
72 |
22 |
दानका स्वरूप |
75 |
23 |
सत्यकी महिमा |
81 |
24 |
परलोकको न बिगड़ने दें |
85 |
25 |
संतसे वार्तालापकी महिमा |
87 |
26 |
भगवान् आश्रितोंकी देखभाल करते हैं |
90 |
27 |
पातिव्रत-धर्मका महत्त्व |
94 |
28 |
पाँच पितृभक्त पुत्र |
97 |
29 |
स्त्री, शूद्र और कलियुगकी महत्ता |
107 |
30 |
धन्य कौन? |
108 |
31 |
नारदजीका कामविजय- विषयक अभिमानभंग |
112 |
32 |
किरातवेषधारी शिवजी की अर्जुनपर कृपा |
116 |
33 |
महान् तीर्थ-माता-पिता |
119 |
34 |
द्रौपदीकी क्षमाशीलता |
122 |
35 |
कुसंग परमार्थका बाधक |
125 |
36 |
दुख-दर्दकी माँग |
127 |