निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक श्रीमद्भगवद्रीताकी सुप्रसिद्ध टीका-'तत्त्व-विवेचनी' के टीकाकार एवं 'तत्त्व-चिन्तामणि'-जैसे पारमार्थिक वृहद् गन्धके रचयिता आध्यात्मिक विचारों एवं भगवद्भावोंके प्रचारक-ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके बहुमूल्य आध्यात्मिक चिन्तन और प्रवचनोंका सार है । यह सर्वहितकारी और साधनोपयोगी होनेसे जनहितार्थ प्रकाशित किया जा रहा है ।
इसमें जीवन-सुधार, भजन-साधन, नाम-जप और सत्संग आदिकी उत्तम बातें उद्धरणोंके रूपमें दी गयी हैं । प्रस्तुत संकलन- भगवन्नाम, महात्मा, भक्त, सत्संग, समता, वैराग्य, चित्त-निरोध, सदुण-सदाचार, सत्य, अक्रोध (क्षमा), ब्रह्मचर्य, परोपकार आदि विभिन्न पारमार्थिक बिन्दुओंपर अड़तीस प्रकरणोंमें मार्मिक और सर्वजनोपयोगी प्रकाश डालता है । इस प्रकार सत्य और श्रेष्ठ भावोंकी प्रसारिका तथा मार्गदर्शिका होनेसे ही प्रस्तुत पुस्तक-'साधन-नवनीत' है ।
सभी प्रेमी पाठकों-विशेषत: परमार्थ-पथके पथिकों और सत्संग जिज्ञासुओंसे हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे इस पुस्तकको कृपया एक बार अवश्य पढ़ें और दूसरोंको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करें । हम आशा करते हैं कि इसकी सर्वजनोपयोगी, साधनमें सहायक और उपादेय सामग्रीसे अधिकाधिक सज्जन विशेष लाभ उठायेंगे ।
विषय-सूची |
||
विषय |
पृं.सं |
|
1 |
भगवन्नाम – भजन |
1 |
2 |
भगवन्नाम |
10 |
3 |
महात्माओंकी महिमा |
21 |
4 |
महात्मा |
29 |
5 |
भक्त |
30 |
6 |
सत्संग |
35 |
7 |
समता |
41 |
8 |
वैराग्य |
43 |
9 |
चित्त -निरोध |
58 |
10 |
ध्यान |
67 |
11 |
सद्ग-सदाचार |
72 |
12 |
नित्यकर्म-उपासना |
80 |
13 |
सत्य |
83 |
14 |
अक्रोध क्षमा |
84 |
15 |
ब्रह्मचर्य |
87 |
16 |
ब्रह्मचर्य -रक्षाके उपाय |
89 |
17 |
परोपकार |
92 |
18 |
धर्म |
98 |
19 |
प्रतिकूलतामें प्रसन्नता |
104 |
20 |
बाल-शिक्षा |
111 |
21 |
अष्टांग योग |
116 |
22 |
भारतीय संस्कृति |
120 |
23 |
ब्राह्मणत्वकी रक्षा परम |
|
आवश्यक है |
122 |
|
24 |
आदर्श राजा |
124 |
25 |
समाज - सुधार |
125 |
26 |
व्यापार - सुधार |
128 |
27 |
मृत्युकालीन उपचार |
133 |
28 |
तीर्थोंमें पालन करने |
|
योग्य |
137 |
|
29 |
स्त्री-शिक्षा |
141 |
30 |
विधवाओंके लिये |
147 |
31 |
स्त्रीमात्रके कर्त्तव्य |
150 |
32 |
कन्याओंके कर्त्तव्य |
157 |
33 |
भगवत्प्राप्ति |
159 |
34 |
परमपदकी प्राप्ति |
162 |
35 |
ग्रामोद्योग - अहिंसा |
163 |
36 |
मांसाहार - निषेध |
165 |
37 |
पुरुषोंके लिये |
167 |
38 |
व्यावहारिक बातें |
168 |
निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक श्रीमद्भगवद्रीताकी सुप्रसिद्ध टीका-'तत्त्व-विवेचनी' के टीकाकार एवं 'तत्त्व-चिन्तामणि'-जैसे पारमार्थिक वृहद् गन्धके रचयिता आध्यात्मिक विचारों एवं भगवद्भावोंके प्रचारक-ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके बहुमूल्य आध्यात्मिक चिन्तन और प्रवचनोंका सार है । यह सर्वहितकारी और साधनोपयोगी होनेसे जनहितार्थ प्रकाशित किया जा रहा है ।
इसमें जीवन-सुधार, भजन-साधन, नाम-जप और सत्संग आदिकी उत्तम बातें उद्धरणोंके रूपमें दी गयी हैं । प्रस्तुत संकलन- भगवन्नाम, महात्मा, भक्त, सत्संग, समता, वैराग्य, चित्त-निरोध, सदुण-सदाचार, सत्य, अक्रोध (क्षमा), ब्रह्मचर्य, परोपकार आदि विभिन्न पारमार्थिक बिन्दुओंपर अड़तीस प्रकरणोंमें मार्मिक और सर्वजनोपयोगी प्रकाश डालता है । इस प्रकार सत्य और श्रेष्ठ भावोंकी प्रसारिका तथा मार्गदर्शिका होनेसे ही प्रस्तुत पुस्तक-'साधन-नवनीत' है ।
सभी प्रेमी पाठकों-विशेषत: परमार्थ-पथके पथिकों और सत्संग जिज्ञासुओंसे हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे इस पुस्तकको कृपया एक बार अवश्य पढ़ें और दूसरोंको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करें । हम आशा करते हैं कि इसकी सर्वजनोपयोगी, साधनमें सहायक और उपादेय सामग्रीसे अधिकाधिक सज्जन विशेष लाभ उठायेंगे ।
विषय-सूची |
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विषय |
पृं.सं |
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1 |
भगवन्नाम – भजन |
1 |
2 |
भगवन्नाम |
10 |
3 |
महात्माओंकी महिमा |
21 |
4 |
महात्मा |
29 |
5 |
भक्त |
30 |
6 |
सत्संग |
35 |
7 |
समता |
41 |
8 |
वैराग्य |
43 |
9 |
चित्त -निरोध |
58 |
10 |
ध्यान |
67 |
11 |
सद्ग-सदाचार |
72 |
12 |
नित्यकर्म-उपासना |
80 |
13 |
सत्य |
83 |
14 |
अक्रोध क्षमा |
84 |
15 |
ब्रह्मचर्य |
87 |
16 |
ब्रह्मचर्य -रक्षाके उपाय |
89 |
17 |
परोपकार |
92 |
18 |
धर्म |
98 |
19 |
प्रतिकूलतामें प्रसन्नता |
104 |
20 |
बाल-शिक्षा |
111 |
21 |
अष्टांग योग |
116 |
22 |
भारतीय संस्कृति |
120 |
23 |
ब्राह्मणत्वकी रक्षा परम |
|
आवश्यक है |
122 |
|
24 |
आदर्श राजा |
124 |
25 |
समाज - सुधार |
125 |
26 |
व्यापार - सुधार |
128 |
27 |
मृत्युकालीन उपचार |
133 |
28 |
तीर्थोंमें पालन करने |
|
योग्य |
137 |
|
29 |
स्त्री-शिक्षा |
141 |
30 |
विधवाओंके लिये |
147 |
31 |
स्त्रीमात्रके कर्त्तव्य |
150 |
32 |
कन्याओंके कर्त्तव्य |
157 |
33 |
भगवत्प्राप्ति |
159 |
34 |
परमपदकी प्राप्ति |
162 |
35 |
ग्रामोद्योग - अहिंसा |
163 |
36 |
मांसाहार - निषेध |
165 |
37 |
पुरुषोंके लिये |
167 |
38 |
व्यावहारिक बातें |
168 |