विषय- सूची |
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विषय |
पृं.सं |
|
1 |
शिखिध्वज और चूडालाके आख्यानका आरम्भ, शिरिवध्वजके गुणोंका तथा चूडालाके साथ विवाह और क्रीडाका वर्णन |
5 |
2 |
क्रमसे उन दोनोंकी वैराग्य एवं अध्यात्म ज्ञानमें निष्ठा तथा चूडालाको यथार्थ ज्ञानसे परमात्माकी प्राप्ति |
8 |
3 |
चूडालाको अपूर्व शोभासम्पन्न देखकर राजा शिखिध्वजका प्रसन्न होना और उससे वार्तालाप करना |
12 |
4 |
राजा शिखिध्वजका चूडालाके वचनोंको अयुक्त बतलाना, चूडालाका एकान्तमें योगाभ्यास करना एवं श्रीरामचन्द्रजीके पूछनेपर श्रीवसिष्ठजीके द्वारा कुण्डलिनीशक्तिका तथा विभिन्न शरीरोंमें जीवात्माकी स्थितिका वर्णन |
13 |
5 |
आधि और व्याधिके नाशका तथा सिद्धिका और सिद्धोंके दर्शनका उपाय |
18 |
6 |
ज्ञानसाध्य वस्तु और योगियोंकी परकाय- प्रवेश- सिद्धि- का वर्णन |
24 |
7 |
चूडालाकी सिद्धिका वैभव, गुरूपदेशकी सफलतामें किराटका आरव्यान, शिरिवध्वजका वैराग्य, चूडालाका उन्हें समझाना, राजा शिखिध्वजका आधी रातके समय राजमहलसे निकलकर चल देना और मन्दराचलके काननमें कुटिया बनाकर निवास करना |
26 |
8 |
सोकर उठी हुई चूडालाके द्वारा राजाकी रवोज, वनमें राजाके दर्शन और राजाके भविष्यका विचार करके चूडालाका लौटना, नगरमें आकर राज्य- शासन करना, तदनन्तर कुछ समय बाद राजाको ज्ञानोपदेश देनेके लिये ब्राह्मणकुमारके वेशमें उनके पास जाना, राजाद्वारा उसका सत्कार और परस्पर वार्तालापके प्रसङ्गमें कुम्भ- द्वारा कुम्भकी उत्पत्ति, वृद्धि और ब्रह्माजीके साथ उसके समागमका वर्णन |
34 |
9 |
राजा शिखिध्वजद्वारा कुम्भकी प्रशंसा, कुम्भका ब्रह्माजीके द्वारा किये हुए ज्ञान और कर्मके विवेचनको सुनाना, राजाद्वारा कुम्भका शिष्यत्व स्वीकार |
42 |
10 |
चिरकालकी तपस्यासे प्राप्त हुई चिन्तामणिका त्याग करके मणिबुद्धिसे काँचको ग्रहण करनेकी कथा तथा विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीका आख्यान |
47 |
11 |
कुम्भद्वारा चिन्तामणि और काँचके आख्यानके तथा विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीके उपाख्यानके रहस्यका वर्णन |
52 |
12 |
कुम्भकी बातें सुनकर सर्वत्यागके लिये उद्यत हुए राजा शिखिध्वजद्वारा अपनी सारी उपयोगी वस्तुओंका अग्निमें झोंकना, पुन: देहत्यागके लिये उद्यत हुए राजाको कुम्भद्वारा चित्त- त्यागका उपदेश....... |
56 |
13 |
चित्तरूपी वृक्षको मूलसहित उखाड़ फेंकनेका उपाय और अविद्यारूप कारणके अभावसे देह आदि कार्यके अभावका वर्णन |
64 |
14 |
जगत्के अत्यन्ताभावका, राजा शिखिध्वजको परम शान्तिकी प्राप्तिका तथा जाननेयोग्य परमात्माके स्वरूपका प्रतिपादन |
69 |
15 |
चित्त और संसारके अत्यन्त अभावका तथा परमात्माके भावका निरूपण |
75 |
16 |
ब्रह्मसे जगत्की पृथक् सत्ताका निषेध तथा जन्य आदि विकारोंसे रहित ब्रह्मकी स्वत: सत्ताका विधान |
78 |
17 |
राजा शिखिध्वजकी ज्ञानमें दृढ़ स्थिति तथा जीवन्मुक्तिमें चित्तराहित्य एवं तत्त्वस्थितिका वर्णन |
81 |
18 |
कुम्भके अन्तर्हित हो जानेपर राजा शिखिध्वजका कुछ कालतक विचार करनेके पक्षात् समाधिस्थ होना, चूडालाका घर जाकर तीन दिनके बाद पुन: लौटना, राजाके शरीरमें प्रवेश करके उन्हें जगाना और राजाके साथ उसका वार्तालाप |
86 |
19 |
कुम्भ और शिखिध्वजका परस्पर सौहार्द, चूडालाका राजासे आज्ञा लेकर अपने नगरमें आना और उदासमन होकर पुन: राजाके पास लौटना, राजाके द्वारा उदासीका कारण छनेपर चूडालाद्वारा दुर्वासाके शापका कथन और चूडालाका दिनमें कुम्भरूपसे और रातमें स्त्रीरूपसे राजा शिखिध्वजके साथ विचरण. |
91 |
20 |
महेन्द्र- पर्वतपर अग्निके साक्ष्यमें मदनिका (चूडाला) और शिखिध्वजका विवाह, एक सुन्दर कन्दरामें पुष्प- शय्यापर दोनोंका समागम, शिखिध्वजकी परीक्षाके लिये चूडालाद्वारा मायाके बलसे इन्द्रका प्राकह्य, इन्द्रका राजासे स्वर्ग चलनेका अनुरोध, राजाके अस्वीकार करनेपर परिवारसहित इन्द्रका अन्तर्धान होना |
97 |
21 |
राजा शिखिध्वजके क्रोधकी परीक्षा करनेके लिये चूडालाका मायाद्वारा राजाको जार- समागम दिखाना और अन्तमें राजाके विकारयुक्त न खेनेपर अपना असली रूप प्रकट करना |
101 |
22 |
ध्यानसे सब कुछ जानकर राजा शिखिध्वजका आश्वर्य- चकित होना और प्रशंसापूर्वक चूडालाका आलिङग्न करना तथा उसके साथ रात बिताना, प्रातःकाल संकल्पजनित सेनाके साथ दोनोंका नगरमें आना और दस हजार वर्षोतक राज्य करके विदेहमुक्त होना |
106 |
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1 |
शिखिध्वज और चूडालाके आख्यानका आरम्भ, शिरिवध्वजके गुणोंका तथा चूडालाके साथ विवाह और क्रीडाका वर्णन |
5 |
2 |
क्रमसे उन दोनोंकी वैराग्य एवं अध्यात्म ज्ञानमें निष्ठा तथा चूडालाको यथार्थ ज्ञानसे परमात्माकी प्राप्ति |
8 |
3 |
चूडालाको अपूर्व शोभासम्पन्न देखकर राजा शिखिध्वजका प्रसन्न होना और उससे वार्तालाप करना |
12 |
4 |
राजा शिखिध्वजका चूडालाके वचनोंको अयुक्त बतलाना, चूडालाका एकान्तमें योगाभ्यास करना एवं श्रीरामचन्द्रजीके पूछनेपर श्रीवसिष्ठजीके द्वारा कुण्डलिनीशक्तिका तथा विभिन्न शरीरोंमें जीवात्माकी स्थितिका वर्णन |
13 |
5 |
आधि और व्याधिके नाशका तथा सिद्धिका और सिद्धोंके दर्शनका उपाय |
18 |
6 |
ज्ञानसाध्य वस्तु और योगियोंकी परकाय- प्रवेश- सिद्धि- का वर्णन |
24 |
7 |
चूडालाकी सिद्धिका वैभव, गुरूपदेशकी सफलतामें किराटका आरव्यान, शिरिवध्वजका वैराग्य, चूडालाका उन्हें समझाना, राजा शिखिध्वजका आधी रातके समय राजमहलसे निकलकर चल देना और मन्दराचलके काननमें कुटिया बनाकर निवास करना |
26 |
8 |
सोकर उठी हुई चूडालाके द्वारा राजाकी रवोज, वनमें राजाके दर्शन और राजाके भविष्यका विचार करके चूडालाका लौटना, नगरमें आकर राज्य- शासन करना, तदनन्तर कुछ समय बाद राजाको ज्ञानोपदेश देनेके लिये ब्राह्मणकुमारके वेशमें उनके पास जाना, राजाद्वारा उसका सत्कार और परस्पर वार्तालापके प्रसङ्गमें कुम्भ- द्वारा कुम्भकी उत्पत्ति, वृद्धि और ब्रह्माजीके साथ उसके समागमका वर्णन |
34 |
9 |
राजा शिखिध्वजद्वारा कुम्भकी प्रशंसा, कुम्भका ब्रह्माजीके द्वारा किये हुए ज्ञान और कर्मके विवेचनको सुनाना, राजाद्वारा कुम्भका शिष्यत्व स्वीकार |
42 |
10 |
चिरकालकी तपस्यासे प्राप्त हुई चिन्तामणिका त्याग करके मणिबुद्धिसे काँचको ग्रहण करनेकी कथा तथा विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीका आख्यान |
47 |
11 |
कुम्भद्वारा चिन्तामणि और काँचके आख्यानके तथा विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीके उपाख्यानके रहस्यका वर्णन |
52 |
12 |
कुम्भकी बातें सुनकर सर्वत्यागके लिये उद्यत हुए राजा शिखिध्वजद्वारा अपनी सारी उपयोगी वस्तुओंका अग्निमें झोंकना, पुन: देहत्यागके लिये उद्यत हुए राजाको कुम्भद्वारा चित्त- त्यागका उपदेश....... |
56 |
13 |
चित्तरूपी वृक्षको मूलसहित उखाड़ फेंकनेका उपाय और अविद्यारूप कारणके अभावसे देह आदि कार्यके अभावका वर्णन |
64 |
14 |
जगत्के अत्यन्ताभावका, राजा शिखिध्वजको परम शान्तिकी प्राप्तिका तथा जाननेयोग्य परमात्माके स्वरूपका प्रतिपादन |
69 |
15 |
चित्त और संसारके अत्यन्त अभावका तथा परमात्माके भावका निरूपण |
75 |
16 |
ब्रह्मसे जगत्की पृथक् सत्ताका निषेध तथा जन्य आदि विकारोंसे रहित ब्रह्मकी स्वत: सत्ताका विधान |
78 |
17 |
राजा शिखिध्वजकी ज्ञानमें दृढ़ स्थिति तथा जीवन्मुक्तिमें चित्तराहित्य एवं तत्त्वस्थितिका वर्णन |
81 |
18 |
कुम्भके अन्तर्हित हो जानेपर राजा शिखिध्वजका कुछ कालतक विचार करनेके पक्षात् समाधिस्थ होना, चूडालाका घर जाकर तीन दिनके बाद पुन: लौटना, राजाके शरीरमें प्रवेश करके उन्हें जगाना और राजाके साथ उसका वार्तालाप |
86 |
19 |
कुम्भ और शिखिध्वजका परस्पर सौहार्द, चूडालाका राजासे आज्ञा लेकर अपने नगरमें आना और उदासमन होकर पुन: राजाके पास लौटना, राजाके द्वारा उदासीका कारण छनेपर चूडालाद्वारा दुर्वासाके शापका कथन और चूडालाका दिनमें कुम्भरूपसे और रातमें स्त्रीरूपसे राजा शिखिध्वजके साथ विचरण. |
91 |
20 |
महेन्द्र- पर्वतपर अग्निके साक्ष्यमें मदनिका (चूडाला) और शिखिध्वजका विवाह, एक सुन्दर कन्दरामें पुष्प- शय्यापर दोनोंका समागम, शिखिध्वजकी परीक्षाके लिये चूडालाद्वारा मायाके बलसे इन्द्रका प्राकह्य, इन्द्रका राजासे स्वर्ग चलनेका अनुरोध, राजाके अस्वीकार करनेपर परिवारसहित इन्द्रका अन्तर्धान होना |
97 |
21 |
राजा शिखिध्वजके क्रोधकी परीक्षा करनेके लिये चूडालाका मायाद्वारा राजाको जार- समागम दिखाना और अन्तमें राजाके विकारयुक्त न खेनेपर अपना असली रूप प्रकट करना |
101 |
22 |
ध्यानसे सब कुछ जानकर राजा शिखिध्वजका आश्वर्य- चकित होना और प्रशंसापूर्वक चूडालाका आलिङग्न करना तथा उसके साथ रात बिताना, प्रातःकाल संकल्पजनित सेनाके साथ दोनोंका नगरमें आना और दस हजार वर्षोतक राज्य करके विदेहमुक्त होना |
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