भूमिका
पुरुष और स्त्री के शरीर के अंगों की रचना में प्राकृतिक दृष्टि से ही बडी विभिन्नता होती है और यह विभिन्नता प्रमुखत स्त्रियो के वक्षस्थल व कटि-प्रदेश के अधोगामी-पार्श्व अर्थात् वस्ति, नितम्ब, योनि आदि अंगों में विशिष्ट होती है । इस विशिष्ट प्राकृतिक रचना के कारण ही स्त्रियों में अधिकांश रोग उनके वक्ष स्थल व योनि से सम्बन्धित होते हैं । इसका दूसरा कारण यह भी है कि उसे भावी पीढ़ी के संरक्षण के लिए गर्भधारण, गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा तथा प्रसूत शिशु के लालन-पालन के लिए अपना स्तन-पान भी कराना पडता है । इन्हीं रोगों की प्रमुखता के कारण इस पुस्तक में स्त्रियों के इन विशिष्ट अंगों से सम्बन्धी रोगो की ही चिकित्सा प्रस्तुत की गई है।
वैसे तो शरीर को 'व्याधि मंदिर' अर्थात् 'रोगों का घर' कहा जाता है और सभ्यता के प्रारम्भ से ही रोग व उनके उपचार की परम्परा का श्रीगणेश हो गया था । परन्तु इस शताब्दी में वैज्ञानिक आविष्कारो ने चिकित्सा क्षेत्र की काया ही पलट कर दी है और रोगों का निदान उसके वैज्ञानिक तकनीकी यंत्रों से किया जाने लगा है तथा शल्यचिकित्सा ने भी अभूतपूर्व व आश्चर्यजनक प्रगति की है । परन्तु हमारा देश एक विकासशील देश है और अभी तक स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवायें दूरदराज के गाँवों तक नहीं पहुँच पाई हैं तथा शहरों में कार्य में अधिक व्यस्तता के कारण समयाभाव की समस्या है । इसी कारण अधिकाश लोग चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठा पाने में असमर्थ हैं। इन्हीं परिस्थितियों ने प्रस्तुत पुस्तक के लेखन, संकलन व प्रकाशन की प्रेरणा प्रदान की है तथा वांछित उद्देश्य की प्राप्ति के हेतु इसमे चिकित्सा के लिए ऐसी वस्तुओं का ही चुनाव किया गया है जो सरलता से प्रत्येक घर में मिल जाती हैं, जैसे-तुलसी, लीग, हींग, काली मिर्च, जीरा, चूना, नौसादर, पीपल, नमक आदि और कुछ वस्तुएँ आस-पास के बागों व पंसारियो की दुकानो पर सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
स्त्री रोगों के साथ-ही-साथ इसमें बालकों व शिशुओं की कोमल प्रकृति को ध्यान में रखकर उनमें होने वाले सामान्य रोगों की चिकित्सा का भी उल्लेख किया गया है ताकि हमारे शिशु स्वस्थ हस्ट-पुष्ट रहें और हमारी भावी पीढी स्वस्थ व सबल राष्ट्र-निर्माण मे सहायक सिद्ध हो सके। स्त्रियों में गर्भ से पूर्व, गर्भधारण अवस्था मे व प्रसूति के पश्चात् होने वाले रोगों की चिकित्सा के साथ उसके विभिन्न अंगो की देखभाल का भी निरूपण प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है । पुस्तक के दूसरे अध्याय में बाल रोगों की सरल चिकित्सा प्रस्तुत की गई है ताकि माताएँ घर पर ही उनका उपयोग कर अपनी सन्तान को निरोग रख सके । स्त्रियों के विभिन्न रोगों की चिकित्सा के साथ-ही-साथ इसमे सिरदर्द का उपचार भी दे दिया गया है क्योंकि यह रोग स्त्रियों में बडा सामान्य होता है।
श्रीमती सुधा अग्रवाल/श्रीमती स्नेह अग्रवाल की भी मैं आभारी हूँ जिनके बहुमूल्य सुझावों ने मुझको काफी उत्साहित किया है । आशा करती हूँ कि यह पुस्तक माताओ व बहिनों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी । अन्त में, मैं पाठकी व चिकित्सा प्रयोगकर्ताओं से यह आशा करती हूँ कि वे इस पुस्तक के भावी प्रकाशन के लिए अपनी सम्मतियाँ, अनुभूत चिकित्सा-नुस्खे प्रेषित करने की कृपा अवश्य करेंगे।
अनुक्रमणिका |
||
1 |
सन्तति-निरोध के लिए |
1 |
2 |
कमर दर्द |
3 |
3 |
कमर पतली करना |
5 |
4 |
योनि रोग |
5 |
5 |
योनि का संकुचित व चौड़ा होना |
6 |
6 |
योनि में जलन व सूजन |
9 |
7 |
योनि की खुजली |
10 |
8 |
वक्ष-स्तन तथा दूध-वृद्धि |
11 |
9 |
योनि स्राव रक्त प्रदर |
17 |
10 |
श्वेत-प्रदर (ल्यूकोरिया) |
24 |
11 |
मासिक-धर्म में दर्द |
36 |
12 |
गर्भपात से बचना |
46 |
13 |
गर्भ न ठहरता हो या बाँइापन |
48 |
14 |
गर्भावस्था |
52 |
15 |
गर्भावस्था में उल्टियाँ |
53 |
16 |
गर्भावस्था में अम्लता |
55 |
17 |
गर्भावस्था में कब्ज |
56 |
18 |
गर्भावस्था में दस्त |
56 |
19 |
गर्भावस्था में रक्तचाप |
57 |
20 |
स्त्रियों में हिस्टीरिया |
58 |
21 |
गर्भाशय की वृद्धि करना |
58 |
22 |
गर्भाशय में खुजली |
58 |
23 |
गर्भाशय में सूजन |
59 |
24 |
गर्भकाल में पैरों में सूजन |
59 |
25 |
गर्भाशय का हट जाना |
60 |
26 |
एनीमिया |
60 |
27 |
सूतिका ज्वर और प्रसूता ज्वर |
60 |
28 |
प्रसूता में दाँतों की देखभाल |
61 |
29 |
प्रसूति काल |
61 |
30 |
प्रसव वेदना |
63 |
31 |
गर्भ-रोग |
65 |
32 |
गर्भ-धारण-योग |
66 |
33 |
गौरवर्ण संतान |
66 |
34 |
दूध-वृद्धि-वक्ष-स्तन |
67 |
35 |
सिरदर्द, |
69 |
36 |
आधे सिर का दर्द |
71 |
37 |
शरीर व जोड़ों का दर्द |
81 |
38 |
इच्छानुसार सन्तान-प्राप्ति |
82 |
39 |
पुत्र-प्राप्ति |
84 |
बाल रोगों की सरल चिकित्सा |
||
1 |
शिशु दूध पाचन |
85 |
2 |
पेट में क्रीड |
85 |
3 |
तिल्ली |
88 |
4 |
बच्चों का मिट्टी खाना |
88 |
5 |
बच्चों का पेट फूलना |
89 |
6 |
बच्चों का श्वास रोग |
90 |
7 |
बच्चों के हरे-पीले दस्त |
90 |
8 |
बच्चों की आँख दुखना |
90 |
9 |
जन्म पर शिशु न रोए |
91 |
10 |
बच्चों की नाभि पकना |
91 |
11 |
बच्चों के दाँत निकलते वक्त के दस्त |
91 |
12 |
बच्चों के मिट्टी खाने से रोग |
92 |
13 |
बच्चों के दस्त रोग |
92 |
14 |
बच्चों के चुन्ने |
95 |
15 |
सर्दी-जुकाम! |
95 |
16 |
आँखें |
95 |
17 |
पेट-दर्द |
96 |
18 |
ठण्ड लगना |
96 |
19 |
भूख न लगती हो |
97 |
20 |
अजीर्ण |
97 |
21 |
बच्चों को उल्टी |
98 |
22 |
फोड़े-फुँसियाँ |
98 |
23 |
घमोरियाँ |
98 |
24 |
बच्चों का सूखा रोग |
99 |
25 |
बच्चों के काल का दर्द |
100 |
26 |
बाल रोग |
101 |
27 |
बच्चों के कब्ज |
103 |
28 |
बच्चों की पाचन शाक्ति |
103 |
29 |
खाँसी |
104 |
30 |
काली खाँसी |
107 |
31 |
बिस्तर पर मूत्र करना |
109 |
32 |
खसरा व चेचक |
110 |
33 |
बच्चों के दाँत निकलना |
112 |
34 |
हिचकी उगना |
113 |
35 |
निमोनिया (पसली चलना) |
113 |
36 |
बच्चों का दूध उलटना (उल्टी, कै) |
114 |
37 |
नींद न उगना |
114 |
38 |
बच्चों के ज्वर |
115 |
39 |
तुतलाना (हकलाना) |
115 |
40 |
मुँह में छाले |
116 |
भूमिका
पुरुष और स्त्री के शरीर के अंगों की रचना में प्राकृतिक दृष्टि से ही बडी विभिन्नता होती है और यह विभिन्नता प्रमुखत स्त्रियो के वक्षस्थल व कटि-प्रदेश के अधोगामी-पार्श्व अर्थात् वस्ति, नितम्ब, योनि आदि अंगों में विशिष्ट होती है । इस विशिष्ट प्राकृतिक रचना के कारण ही स्त्रियों में अधिकांश रोग उनके वक्ष स्थल व योनि से सम्बन्धित होते हैं । इसका दूसरा कारण यह भी है कि उसे भावी पीढ़ी के संरक्षण के लिए गर्भधारण, गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा तथा प्रसूत शिशु के लालन-पालन के लिए अपना स्तन-पान भी कराना पडता है । इन्हीं रोगों की प्रमुखता के कारण इस पुस्तक में स्त्रियों के इन विशिष्ट अंगों से सम्बन्धी रोगो की ही चिकित्सा प्रस्तुत की गई है।
वैसे तो शरीर को 'व्याधि मंदिर' अर्थात् 'रोगों का घर' कहा जाता है और सभ्यता के प्रारम्भ से ही रोग व उनके उपचार की परम्परा का श्रीगणेश हो गया था । परन्तु इस शताब्दी में वैज्ञानिक आविष्कारो ने चिकित्सा क्षेत्र की काया ही पलट कर दी है और रोगों का निदान उसके वैज्ञानिक तकनीकी यंत्रों से किया जाने लगा है तथा शल्यचिकित्सा ने भी अभूतपूर्व व आश्चर्यजनक प्रगति की है । परन्तु हमारा देश एक विकासशील देश है और अभी तक स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवायें दूरदराज के गाँवों तक नहीं पहुँच पाई हैं तथा शहरों में कार्य में अधिक व्यस्तता के कारण समयाभाव की समस्या है । इसी कारण अधिकाश लोग चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठा पाने में असमर्थ हैं। इन्हीं परिस्थितियों ने प्रस्तुत पुस्तक के लेखन, संकलन व प्रकाशन की प्रेरणा प्रदान की है तथा वांछित उद्देश्य की प्राप्ति के हेतु इसमे चिकित्सा के लिए ऐसी वस्तुओं का ही चुनाव किया गया है जो सरलता से प्रत्येक घर में मिल जाती हैं, जैसे-तुलसी, लीग, हींग, काली मिर्च, जीरा, चूना, नौसादर, पीपल, नमक आदि और कुछ वस्तुएँ आस-पास के बागों व पंसारियो की दुकानो पर सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
स्त्री रोगों के साथ-ही-साथ इसमें बालकों व शिशुओं की कोमल प्रकृति को ध्यान में रखकर उनमें होने वाले सामान्य रोगों की चिकित्सा का भी उल्लेख किया गया है ताकि हमारे शिशु स्वस्थ हस्ट-पुष्ट रहें और हमारी भावी पीढी स्वस्थ व सबल राष्ट्र-निर्माण मे सहायक सिद्ध हो सके। स्त्रियों में गर्भ से पूर्व, गर्भधारण अवस्था मे व प्रसूति के पश्चात् होने वाले रोगों की चिकित्सा के साथ उसके विभिन्न अंगो की देखभाल का भी निरूपण प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है । पुस्तक के दूसरे अध्याय में बाल रोगों की सरल चिकित्सा प्रस्तुत की गई है ताकि माताएँ घर पर ही उनका उपयोग कर अपनी सन्तान को निरोग रख सके । स्त्रियों के विभिन्न रोगों की चिकित्सा के साथ-ही-साथ इसमे सिरदर्द का उपचार भी दे दिया गया है क्योंकि यह रोग स्त्रियों में बडा सामान्य होता है।
श्रीमती सुधा अग्रवाल/श्रीमती स्नेह अग्रवाल की भी मैं आभारी हूँ जिनके बहुमूल्य सुझावों ने मुझको काफी उत्साहित किया है । आशा करती हूँ कि यह पुस्तक माताओ व बहिनों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी । अन्त में, मैं पाठकी व चिकित्सा प्रयोगकर्ताओं से यह आशा करती हूँ कि वे इस पुस्तक के भावी प्रकाशन के लिए अपनी सम्मतियाँ, अनुभूत चिकित्सा-नुस्खे प्रेषित करने की कृपा अवश्य करेंगे।
अनुक्रमणिका |
||
1 |
सन्तति-निरोध के लिए |
1 |
2 |
कमर दर्द |
3 |
3 |
कमर पतली करना |
5 |
4 |
योनि रोग |
5 |
5 |
योनि का संकुचित व चौड़ा होना |
6 |
6 |
योनि में जलन व सूजन |
9 |
7 |
योनि की खुजली |
10 |
8 |
वक्ष-स्तन तथा दूध-वृद्धि |
11 |
9 |
योनि स्राव रक्त प्रदर |
17 |
10 |
श्वेत-प्रदर (ल्यूकोरिया) |
24 |
11 |
मासिक-धर्म में दर्द |
36 |
12 |
गर्भपात से बचना |
46 |
13 |
गर्भ न ठहरता हो या बाँइापन |
48 |
14 |
गर्भावस्था |
52 |
15 |
गर्भावस्था में उल्टियाँ |
53 |
16 |
गर्भावस्था में अम्लता |
55 |
17 |
गर्भावस्था में कब्ज |
56 |
18 |
गर्भावस्था में दस्त |
56 |
19 |
गर्भावस्था में रक्तचाप |
57 |
20 |
स्त्रियों में हिस्टीरिया |
58 |
21 |
गर्भाशय की वृद्धि करना |
58 |
22 |
गर्भाशय में खुजली |
58 |
23 |
गर्भाशय में सूजन |
59 |
24 |
गर्भकाल में पैरों में सूजन |
59 |
25 |
गर्भाशय का हट जाना |
60 |
26 |
एनीमिया |
60 |
27 |
सूतिका ज्वर और प्रसूता ज्वर |
60 |
28 |
प्रसूता में दाँतों की देखभाल |
61 |
29 |
प्रसूति काल |
61 |
30 |
प्रसव वेदना |
63 |
31 |
गर्भ-रोग |
65 |
32 |
गर्भ-धारण-योग |
66 |
33 |
गौरवर्ण संतान |
66 |
34 |
दूध-वृद्धि-वक्ष-स्तन |
67 |
35 |
सिरदर्द, |
69 |
36 |
आधे सिर का दर्द |
71 |
37 |
शरीर व जोड़ों का दर्द |
81 |
38 |
इच्छानुसार सन्तान-प्राप्ति |
82 |
39 |
पुत्र-प्राप्ति |
84 |
बाल रोगों की सरल चिकित्सा |
||
1 |
शिशु दूध पाचन |
85 |
2 |
पेट में क्रीड |
85 |
3 |
तिल्ली |
88 |
4 |
बच्चों का मिट्टी खाना |
88 |
5 |
बच्चों का पेट फूलना |
89 |
6 |
बच्चों का श्वास रोग |
90 |
7 |
बच्चों के हरे-पीले दस्त |
90 |
8 |
बच्चों की आँख दुखना |
90 |
9 |
जन्म पर शिशु न रोए |
91 |
10 |
बच्चों की नाभि पकना |
91 |
11 |
बच्चों के दाँत निकलते वक्त के दस्त |
91 |
12 |
बच्चों के मिट्टी खाने से रोग |
92 |
13 |
बच्चों के दस्त रोग |
92 |
14 |
बच्चों के चुन्ने |
95 |
15 |
सर्दी-जुकाम! |
95 |
16 |
आँखें |
95 |
17 |
पेट-दर्द |
96 |
18 |
ठण्ड लगना |
96 |
19 |
भूख न लगती हो |
97 |
20 |
अजीर्ण |
97 |
21 |
बच्चों को उल्टी |
98 |
22 |
फोड़े-फुँसियाँ |
98 |
23 |
घमोरियाँ |
98 |
24 |
बच्चों का सूखा रोग |
99 |
25 |
बच्चों के काल का दर्द |
100 |
26 |
बाल रोग |
101 |
27 |
बच्चों के कब्ज |
103 |
28 |
बच्चों की पाचन शाक्ति |
103 |
29 |
खाँसी |
104 |
30 |
काली खाँसी |
107 |
31 |
बिस्तर पर मूत्र करना |
109 |
32 |
खसरा व चेचक |
110 |
33 |
बच्चों के दाँत निकलना |
112 |
34 |
हिचकी उगना |
113 |
35 |
निमोनिया (पसली चलना) |
113 |
36 |
बच्चों का दूध उलटना (उल्टी, कै) |
114 |
37 |
नींद न उगना |
114 |
38 |
बच्चों के ज्वर |
115 |
39 |
तुतलाना (हकलाना) |
115 |
40 |
मुँह में छाले |
116 |