लेखक परिचय
प्रख्यात ज्योतिर्विद् 'श्रीमती मृदुला त्रिवेदी (जन्म-सन् 1950 ई. पत्नी श्री टी०पी० त्रिवेदी) ज्योतिष सम्बन्धी अनेक आयामों को पार करती हुई आज उस शिखर पर प्रतिष्ठित हैं जहाँ उनका परिचय परमुखापेक्षी नहीं है । अपने प्रणयन-काल के आरम्भ में ही विद्वत्-समाज में उद्धरणीय बन गयीं श्रीमती मृदुला त्रिवेदी ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न खोजकर उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप तराश कर तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात् जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम पिछले 30 वर्षों से कर रही हैं । कई प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा सम्मानित श्रीमती त्रिवेदी को 1987 में ''वर्ल्ड डेवलपमेंट पार्लियामेण्ट''द्वारा ''डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलाजी', सन् 2001 में ''अध्यात्म तथा ज्योतिष शोध संस्थान, लखनऊ द्वारा ''वराहमिहिर'' तथा 2006 में ब्रह्मर्षि'' की उपाधि से अलंकृत किया गया है। इससे पूर्व उनकी विलक्षण उपलब्धियों के लिए उन्हें ज्योतिष मार्त्तण्ड, भाग्यविद्मणि, ज्योतिर्विद्या-वारिधि, ज्योतिष-भूषण तथा अनेक अन्य उपाधियों से सम्मानित किया गया और उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी का पुरस्कार भी प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट'' द्वारा प्राप्त हुआ । अनेक राजनीतिक भविष्यवाणियों के लिए चर्चित, ''इण्डियन कौंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंसेस'' लखनऊ शाखा की पूर्व अध्यक्षा श्रीमती त्रिवेदी ''Planets & Forecasts", "The Express Star Teller", ''रश्मि विज्ञान'', ''ज्योतिष एवम् वास्तु'' में उप-संपादिका के रूप में कार्यरत रही है । ''The Astrological Magazine","The Times of Astrology","Your Astrologer","Occult India". फ्यूचर समाचार, कादम्बिनी, धर्मयुग, हिन्दुस्तान, रविवार, द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलाजी तथा भारत की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में, इनके 300 से अधिक शोधपरक, उपयोगी लेख प्रकाशित और प्रशंसित हुए हैं ।
श्री.टी०पी० त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एससी. करके सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की है । उनका ज्योतिषीय विश्लेषण एवं चिन्तन अत्यन्त तार्किक, वैज्ञानिक और औचित्यपूर्ण है । उन्होंने ज्योतिष के सहस्राधिक आकर-ग्रंथों एवं मानक पुस्तकों का अध्ययन-मनन किया है । पिछले 35 वर्षों से आप ज्योतिष के अनुसंधानपरक कार्यो, जन्मांगों के व्यावहारिक प्रतिफलन तथा शोधात्मक लेखन से सम्बद्ध है । श्री त्रिवेदी को भारतवर्ष के यशस्वी प्रतिष्ठानों द्वारा ''ज्योतिष मार्तण्ड'', ''ज्योतिष हुँ बृहस्पति'' आदि अनेक उपाधियों से समय-समय पर अलंकृत किया जाता रहा है। देशभर के ज्योतिषविज्ञान के विभिन्न महासम्मेलनों में भी उन्होंने अपने शोधपरक व्याख्यानों तथा उल्लेखनीय उपलब्धियों के परिशीलन से अपरिमित ख्याति तथा यश अर्जित किया है। ज्योतिष के क्षेत्र में श्री त्रिवेदी का नाम एक अत्यन्त संतुलित ज्योतिष ज्ञान के प्रति निरन्तर संकल्पित तथा समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में लिया जाता है 1 अनेक यशस्वी प्रकाशनों में उनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं। पिछले दो वषों से प्रत्येक रविवार को अंग्रेजी दैनिक "Hindustan Times" में श्री त्रिवेदी के ज्योतिष विज्ञान के अत्यन्त जनोपयोगी, ज्ञानवर्द्धक लेख प्रकाशित हो रहे हैं जो अत्यन्त प्रशंसित तथा चर्चित हुए है। विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं। कई ज्योतिष-पत्रिकाओं में वह सह-सम्पादक कै रूप में कार्यरत रहे है।
पुरोवाक्
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:, पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धासतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नता: स्व परिपालय देवि विश्वम् ।।
अथीत् जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से पापियों के यहाँ दरिद्रता रूप से, शुद्ध अन्त: करण वाले पुरुषों के हृदय में बुद्धि रूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन माता भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवी! सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिए।
मन्त्र मञ्ज़री उन सशक्त, शाश्वत, सारस्वत संकल्पों का साकार स्वरूप है जो मन्त्र विद्या तथा साधना संस्कार पर प्रामाणिक शास्त्रसगत तथा सघन सामग्री एवं शोध के अभाव में, अंकुरित और प्रस्फुटित हुए।
मन्त्र मञ्ज़री अभीष्ट संसिद्धि के संसुप्त संज्ञान की जागति का अभिनव अनुस्त-धान है जिसमें अन्यान्य अवरोधों, विविध व्यथाओं तथा अप्रत्याशित अनिष्टों का शास्त्रसंगत समाधान है। जीवन जटिल समस्याओं का सिन्धु है। ऐसी अनेक समस्याओं के सरल, सुगम, सर्वसुलभ, सरस समाधान मन्त्र मञ्ज़री में संयोजित, संकलित, सम्पादित हुए हैं, जिनका सतर्क अनुकरण समग्र समस्याओं के संत्रास को महकते मधुमास में रूपान्तरित करेगा, यही सदास्था है।
मंत्रज्ञान के दिगन्त व्यापी विस्तार को, मंत्र मञ्ज़री ऐसी सहस्रों रचनाओं में भी समाहित संकलित, संपादित कर पाना, हमारे लिए संभव नहीं प्रतीत होता । अपने अक्षम एवं क्षुद्र व्यक्तित्व से हम भलीभांति परिचित हैं अत : हम स्वयं को विज्ञ समझने की भ्रांति से भी आक्रान्त और आहत नहीं है । मंत्र शास्त्र पर इतनी अप्रमाणिक कृतियों के पठन -पाठन ने समाज में जितनी भ्रांतिपूर्ण व्यवस्था का प्रसार-विस्तार किया है, उसे अवसादग्रस्त अंधकारपूर्ण भ्रामक परिधि से बाहर निकालकर मंत्र विद्या की वास्तविकता से अवगत कराने का एक तुच्छ सा प्रयास है, मंत्र-श्रृंखला का पावन पर्व मंत्र मञ्ज़री, जिसे अग्रांकित खण्डों में विभाजित किया गया है।
अनुक्रमणिका
खण्ड 1 सिद्धान्त खण्ड
1 मन्त्र सिद्धान्त एवं संज्ञान
3
2 अनुकूल मन्त्र चयन प्रविधि
28
3 मंत्र शान्ति का आधार स्तम्भ
50
4 सदोष संतप्त साधना ज्ञातव्य तथ्य
74
5 अभीष्ट संसिद्धि संयुक्त साधना
81
खण्ड 2 अभीष्ट संसिद्धि खण्ड
6. अनुकूल शिक्षा. प्रतियोगिताओं में सफलता
89
7. विपुल धनागमन
116
8 व्यवसाय एवं व्यापार
178
9 बाधक ग्रह सिद्धान्त एवं समाधान
187
10 सर्वारिष्ट शमन
191
खण्ड 3 महिलोपयोगी मंत्र साधनाएँ
11 वैवाहिक विलम्ब एवं व्यवधान अनुभूत मंत्र-प्रयोग
223
12 दाम्पत्य जीवन समस्याएँ एवं शमन
242
13 मंगली दोष सिद्धान्त एवं समाधान संज्ञान
259
14 सन्तान सम्बन्धी समस्याएँ एवं समाधान
284
खण्ड 4 सर्वोपयोगी सुगम साधनाएँ
15 शनि परिहार एवं परिज्ञान
315
16 आयु एवं आरोग्य
343
17 व्याधि व्यवधान व मारकेश निदान
360
18 महिमामयी मानस मन्त्र साधना (अत्यन्त सुलभ, सरल, तथा सहज साधना)
371
19 अन्यान्य समस्याओं के समाधान हेतु संक्षिप्त एवं सुगम सांकेतिक साधनाएँ
388
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