वक्तव्य
काव्य के साथ ही काव्यशास्त्र वा साहित्यशास्त्र का उद्भव भी सम्बद्ध है। इस शाख का विकास और परिष्कार लगभग दो सहस्र वर्षों से होता आया है साहित्यशास्त्र के आचार्यों में काव्यमीमांसा के प्रणेता महाकवि राजशेखर का स्थान महत्वपूर्ण है। राजशेखर का व्यक्त्वि बहुमुखी था-नाटककार, कवि और साहित्यशात्री इन सभी रूपों में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इनकी काव्यमीमांसा साहित्यशास्र की एक प्रौढ कृति है। इस ग्रन्थ में उन्होंने पूर्वप्रचलित सिद्धान्तों का कुशलता से उपन्यास किया, साधिकार समीक्षा की और यथास्थान अपने सूविचारित मत की स्थापना की। काव्यमीमांसा एक आकर-ग्रन्थ है जिसमें विभिन्न विषयों का विवेचन किया गया है। कवियों के लिये यह व्यावहारिक मार्ग का निर्देश करता है। इस ग्रन्थ का विशिष्ट ऐतिहासिक महत्व भी है। इसमें बहुत से कवियों एवं आचार्यो के नाम-निर्देश के साथ मत-निर्देंश भी किया गया है। इससे तत्तत् कवियों तथा आचार्यो के काल की अन्तिम सीमा निर्धारित की जा सकती है। भौगोलिक नामों से प्राचीन भौगोलिक स्थानों को ज्ञात करने में सरलता होगी।
प्रस्तुत संस्करण में इस महनीय ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। स्थान-स्थान पर मूल अनुवाद के साथ टिप्पणियों जोड़ दी गई है जिससे अनुवाद को समझने में सरलता हो तथा मूल के तुलनात्मक रूप का भी ज्ञान हो । प्रारम्भ में राजशेखर के जीवन-वृत्त, कर्तृत्व, महत्व आदि के विषय में एक विस्तृत भूमिका है। अन्त में परिशिष्टों को जोड़ा गया है। आशा है इस रूप में यह अधिक उपादेय तथा ग्राह्य होगा इस कार्य में जिन लोगों से प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है उनमें प्रमुख हैं श्रद्धेय गुरुवर्य आचार्य पं० बलदेव उपाध्याय। आपका निर्मल व्यत्तित्व, प्रकृष्ट पाण्डित्य, सौजन्य तथा वात्सल्य सदैव प्रेरक रहा है। मैं अपने इस प्रयास को श्रद्धासुमन के रूप में उन्हीं को समर्पित कर रहा हूँ। चौखम्बा विद्याभवन के उदीयमान संचालक-गण मेरे धन्यवाद के पात्र हैं जिनके प्रयास से यह ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित हो सका है।
विषय-सूची |
||
वक्तव्य |
1 |
|
प्रस्तावना |
1 |
|
भूमिका |
21 |
|
1 |
प्रवेश |
21 |
2 |
राजशेखर के पूर्ववर्ती आचार्य |
23 |
3 |
राजशेखर : जीवनवृत्त |
35 |
4 |
राजशेखर के ग्रन्थ |
40 |
5 |
राजशेखर की प्रशस्तियाँ |
49 |
6 |
काव्यमीमांसा का विषयसार |
50 |
काव्यमीमांसा |
||
7 |
प्रथम अध्याय : शास्त्रसंग्रह |
1 |
8 |
द्वितीय अध्याय : शास्त्रनिर्देंश |
4 |
9 |
तृतीय अध्याय : काव्यपुरुषोत्पत्ति |
12 |
10 |
चतुर्थ अध्याय : शिष्यप्रतिभे |
23 |
11 |
पंचम अध्याय : व्युत्पत्तिविपाक |
34 |
12 |
षष्ठ अध्याय : पदवाक्यविवेक |
47 |
13 |
सप्तम अध्याय : वाक्यविधि |
64 |
14 |
अष्टम अध्याय : वाक्यर्थयोनि |
78 |
15 |
नवम अध्याय : अर्थानुशासन |
94 |
16 |
दशम अध्याय : कविचर्या |
109 |
17 |
एकादश अध्याय : शब्दार्थहरणोपाय |
121 |
18 |
द्वादश अध्याय : अर्थहरणोपाय |
133 |
19 |
त्रयोदश अध्याय : आलेख्यप्रख्यभेद |
146 |
20 |
चतुर्दश अध्याय : कविसमय |
166 |
21 |
पच्चदश अध्याय : गुणसमयस्थापना |
176 |
22 |
षोडश अध्याय : कविरहस्य |
183 |
23 |
सप्तदश अध्याय : देशकालविभाग |
190 |
24 |
अष्टादश अध्याय : कालविभाग |
209 |
परिशिष्ट |
||
25 |
(क) ऐतिहासिक टिप्पणियाँ |
233 |
26 |
(ख) भौगोलिक स्थान |
243 |
27 |
(ग) काव्यमीमांसा के उपजीव्य ग्रन्थ |
265 |
28 |
(घ) काव्यमीमांसा का परवर्ती साहित्यशास्त्र में उपयोग |
266 |
29 |
(ङ) श्लोकानुक्रमणी |
267 |
वक्तव्य
काव्य के साथ ही काव्यशास्त्र वा साहित्यशास्त्र का उद्भव भी सम्बद्ध है। इस शाख का विकास और परिष्कार लगभग दो सहस्र वर्षों से होता आया है साहित्यशास्त्र के आचार्यों में काव्यमीमांसा के प्रणेता महाकवि राजशेखर का स्थान महत्वपूर्ण है। राजशेखर का व्यक्त्वि बहुमुखी था-नाटककार, कवि और साहित्यशात्री इन सभी रूपों में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इनकी काव्यमीमांसा साहित्यशास्र की एक प्रौढ कृति है। इस ग्रन्थ में उन्होंने पूर्वप्रचलित सिद्धान्तों का कुशलता से उपन्यास किया, साधिकार समीक्षा की और यथास्थान अपने सूविचारित मत की स्थापना की। काव्यमीमांसा एक आकर-ग्रन्थ है जिसमें विभिन्न विषयों का विवेचन किया गया है। कवियों के लिये यह व्यावहारिक मार्ग का निर्देश करता है। इस ग्रन्थ का विशिष्ट ऐतिहासिक महत्व भी है। इसमें बहुत से कवियों एवं आचार्यो के नाम-निर्देश के साथ मत-निर्देंश भी किया गया है। इससे तत्तत् कवियों तथा आचार्यो के काल की अन्तिम सीमा निर्धारित की जा सकती है। भौगोलिक नामों से प्राचीन भौगोलिक स्थानों को ज्ञात करने में सरलता होगी।
प्रस्तुत संस्करण में इस महनीय ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। स्थान-स्थान पर मूल अनुवाद के साथ टिप्पणियों जोड़ दी गई है जिससे अनुवाद को समझने में सरलता हो तथा मूल के तुलनात्मक रूप का भी ज्ञान हो । प्रारम्भ में राजशेखर के जीवन-वृत्त, कर्तृत्व, महत्व आदि के विषय में एक विस्तृत भूमिका है। अन्त में परिशिष्टों को जोड़ा गया है। आशा है इस रूप में यह अधिक उपादेय तथा ग्राह्य होगा इस कार्य में जिन लोगों से प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है उनमें प्रमुख हैं श्रद्धेय गुरुवर्य आचार्य पं० बलदेव उपाध्याय। आपका निर्मल व्यत्तित्व, प्रकृष्ट पाण्डित्य, सौजन्य तथा वात्सल्य सदैव प्रेरक रहा है। मैं अपने इस प्रयास को श्रद्धासुमन के रूप में उन्हीं को समर्पित कर रहा हूँ। चौखम्बा विद्याभवन के उदीयमान संचालक-गण मेरे धन्यवाद के पात्र हैं जिनके प्रयास से यह ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित हो सका है।
विषय-सूची |
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वक्तव्य |
1 |
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प्रस्तावना |
1 |
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भूमिका |
21 |
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1 |
प्रवेश |
21 |
2 |
राजशेखर के पूर्ववर्ती आचार्य |
23 |
3 |
राजशेखर : जीवनवृत्त |
35 |
4 |
राजशेखर के ग्रन्थ |
40 |
5 |
राजशेखर की प्रशस्तियाँ |
49 |
6 |
काव्यमीमांसा का विषयसार |
50 |
काव्यमीमांसा |
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7 |
प्रथम अध्याय : शास्त्रसंग्रह |
1 |
8 |
द्वितीय अध्याय : शास्त्रनिर्देंश |
4 |
9 |
तृतीय अध्याय : काव्यपुरुषोत्पत्ति |
12 |
10 |
चतुर्थ अध्याय : शिष्यप्रतिभे |
23 |
11 |
पंचम अध्याय : व्युत्पत्तिविपाक |
34 |
12 |
षष्ठ अध्याय : पदवाक्यविवेक |
47 |
13 |
सप्तम अध्याय : वाक्यविधि |
64 |
14 |
अष्टम अध्याय : वाक्यर्थयोनि |
78 |
15 |
नवम अध्याय : अर्थानुशासन |
94 |
16 |
दशम अध्याय : कविचर्या |
109 |
17 |
एकादश अध्याय : शब्दार्थहरणोपाय |
121 |
18 |
द्वादश अध्याय : अर्थहरणोपाय |
133 |
19 |
त्रयोदश अध्याय : आलेख्यप्रख्यभेद |
146 |
20 |
चतुर्दश अध्याय : कविसमय |
166 |
21 |
पच्चदश अध्याय : गुणसमयस्थापना |
176 |
22 |
षोडश अध्याय : कविरहस्य |
183 |
23 |
सप्तदश अध्याय : देशकालविभाग |
190 |
24 |
अष्टादश अध्याय : कालविभाग |
209 |
परिशिष्ट |
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25 |
(क) ऐतिहासिक टिप्पणियाँ |
233 |
26 |
(ख) भौगोलिक स्थान |
243 |
27 |
(ग) काव्यमीमांसा के उपजीव्य ग्रन्थ |
265 |
28 |
(घ) काव्यमीमांसा का परवर्ती साहित्यशास्त्र में उपयोग |
266 |
29 |
(ङ) श्लोकानुक्रमणी |
267 |