पुस्तक के विषय में
कथा-सरित्सागर संसार भर के कथा-साहित्य का आदिस्त्रोत है। शेक्सपियर, गेटे बोकेशियो आदि ने जाने कितने सुख्यात विदेशी कथाकारों ने इसी की कथा-कहानियों से अपनी कृतियों की मूल प्रेरणा ग्रहण की है।
और 'सागर' की कथावस्तु भी क्या है! सभी तरह की कथा-कहानियों का एक सागर है, जिसमें छोटी-छोटी कथाओं की न जाने कितनी सरिताएँ और धाराएँ मिलती जाती हैं। इसमें लोककथाएँ हैं, ऐतिहासिक गाथाएँ हैं, पौराणिक वार्ताएँ है, शिक्षा की कहानियाँ हैं, नीति की, बुद्धिमानी की, मूर्खता की, प्रेम की, विरह की, स्त्री-चरित्र की, गृहस्थ-जीवन की भाग्य-चक्र की-संक्षेप में जीवन के हर पहलू से संबंध रखनेवाली कहानियाँ हैं और ऐसी रोचक और मनोरंजक, सरस और मधुर कि एक बार आरंभ करने पर पुस्तक बंद करने को मन नहीं करता।
'कथा-सरित्सागर' संस्कृत के महाकवि सोमदेव भट्ट की अमर कृति है।
प्रस्तुत पुस्तक उसी को हिंदी रूपांतर है।
प्रकाशकीय
भारतीय साहित्य में 'कथा-सरित्सागर' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह कथा-कहानियों का विशाल भडार है और इसकी कहानियाँ भारत के कोने-कोने में फैली हुई हैं, हालाँकि कम ही लोग जानते हैं कि वे कब से प्रचलित हैं और कहाँ से ली गई हैं।
सारी पुस्तक कहानियों से भरी पड़ी हैं और कहानियाँ भी कैसी? एक-से-एक बढ़कर। इतनी रोचक कि एक बार हाथ में उठा लें तो बिना पूरी किए छूटे ही नहीं। कहानियों को पढ़कर मनोरंजन तौ होता ही है, शिक्षाप्रद भी बहुतेरी हैं, साथ ही उनसे तत्कालीन समाज के जन-जीवन कीं-रीति-रिवाजों, प्रथाओं, लोकाचार-तथा किसी हद तक इतिहास की भी, झाँकी मिलती है।
मूल ग्रंथ की रचना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी । इन नौ सौ वर्षा में अनेक विद्वानों ने इस पर अन्वेषण-कार्य किया है और अंग्रेजी में तो इसका अनुवाद भी दस जिल्दों में कभी का निकल चुका है। प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा संपादित यह धरोहर पुस्तक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आशा है इसके पठन-पाठन से पाठकों में मूल ग्रंथ को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होगी।
भूमिका
भारतीय साहित्य की विश्व को जो देन है, उसमें लोकप्रिय-कथा की देन विशेष महत्त्व की है। भारत कथाओं का देश है। विश्व में कहानी का प्रचार यही से हुआ है। ईरानियों ने यही से इस कला को सीखा, सीखकर अरबों को सिखाया। अरब से यह कला तुर्की और रोम होती हुई संसार-भर में फैल गई। शोर के महान् कथाकारों बोकेशियो, गेटे ला फोते, चौसर और शेक्सपियर के साहित्य की प्रेरणा ये ही कथाएँ रही हैं। न जाने कितनी कथाएँ न जाने किस-किस देश में गई और वहाँ-वहाँ के जीवन में समा गई। 'कथा-सरित्सागर' इसी प्रकार की कथाओं का एक अद्भुत और महत्वपूण ग्रथ है। साधारणतया भारतीय साहित्य में दो प्रकार की कथाएँ मिलती हैं-उपदेशात्मक और मनोरंजक ।उपदेशात्मक कथाएँ ब्राह्मणो' जैनियो और बौद्धों ने समान रूप से लिखी हैं। बौद्धो की 'जातक-कथाओं का इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैनियों का भंडार तो अक्षय है अभी तक बहुत कुछ अछूता भी है। वेदी, पुराणों और महाभारत में भी अनेको कथाएँ हैं। 'पचतत्र' का मूल्य तो विश्व-विश्रुत है ही। पशु-पक्षियों के माध्यम से उसमें नीति-शास्त्र की विवेचना की गई है। 'कथा-सरित्सागर' मनोरंजक कहानियों की श्रेणी में आता है। इसमें उपदेशात्मक कथाएँ भी हैं-'पंचतंत्र' के अनेक अश इसका प्रमाण हैं, परतु मुख्यतया इसका लक्ष्य मनुष्य और उसके समाज का चित्रण और मनोरजन करना है। इसलिए साहित्यिक कथाओं में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथ मौलिक नहीं है, बल्कि महाकवि गुणाढ्य द्वारा पैशाची 'भाषा' में लिखी गई एक बहुत प्राचीन और लोकप्रसिद्ध पुस्तक 'बृहत्कथा' का संक्षिप्त रूपातर है।
'बृहत्कथा' आज उपलब्ध नही है। उसके और उसके लेखक के संबंध में पूरी जानकारी भी किसी को नहीं है, परतु वे दोनों थे अवश्य, यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है। स्वय 'कथा-सरित्सागर' इसका प्रमाण है। इसके प्रथम लवक 'कथा-पीठ' में यह कथा दी हुई है। काश्मीरी संस्करणों में गुणाद्य को गोदावरी तट पर बसे प्रतिष्ठान का निवासी माना है और किसी सातवाहन राजा का कृपा-पात्र बताया है। नेपाली-संस्करण के अनुसार उनका जन्म मथुरा में हुआ और वह उज्जैन के राजा मदन के अश्रित थे। अधिकतर विद्वान् पहली बात को ठीक मानते है। 'बृहत्कथा' के तीन अनुवाद या रूपांतर आज उपलब्ध है।
अनुक्रम |
||
पहला खंड |
||
1 |
वत्सराज |
23 |
2 |
वररुचि और काणभूति |
24 |
3 |
पाटलिपुत्र की कहानी |
26 |
4 |
पाणिनी और राजा नंद |
28 |
5 |
शकटाल और चाणक्य |
30 |
6 |
गुणाढ्य |
33 |
7 |
नाम का रहस्य |
36 |
8 |
कथाओं की रक्षा |
39 |
दूसरा खंड |
||
9 |
सहस्रानीक और मृगावती |
40 |
10 |
श्रीदत्त की कहानी |
42 |
11 |
राजा उदयन |
47 |
12 |
चंडमहासेन और वासवदत्ता |
49 |
13 |
उदयन की मुक्ति |
53 |
14 |
उदयन और वासवदत्ता |
58 |
तीसरा खंड |
||
15 |
लावणक की कहानी |
61 |
16 |
अवंतिका की कहानी |
65 |
17 |
उर्वशी और अहिल्या की कहानी |
68 |
18 |
विदूषक की कथा |
72 |
19 |
दिग्विजय की यात्रा |
79 |
20 |
कार्तिकेय और मंत्र सिद्ध करने की कथा |
82 |
चौथा खंड |
||
21 |
देवदत्त की कहानी |
89 |
22 |
जीमूतवाहन और गरुड़ की कथा |
92 |
23 |
नरवाहनदत्त का जन्म |
96 |
पाँचवाँ खंड |
||
24 |
दो भूतों की कहानी |
98 |
25 |
कनकपुरी और शक्तिदेव |
101 |
26 |
विद्याधर शक्तिदेव |
104 |
छठा खंड |
||
27 |
मदनमंचुका |
109 |
28 |
कलिंगसेना |
112 |
29 |
सोमप्रभा |
114 |
30 |
मदनवेग और कलिंगसेना |
116 |
31 |
कलिंगसेना और उदयन |
118 |
32 |
कदलीगर्भा की कहानी |
119 |
33 |
कलिंगसेना का विवाह |
121 |
34 |
नरवाहनदत्त और मदनमंचुका |
124 |
सातवाँ खंड |
||
35 |
रत्नप्रभा की कहानी |
128 |
36 |
सती-धर्म की कहानी |
130 |
37 |
स्त्री-चरित्र |
132 |
38 |
शीलवती वेश्या की कथा |
1326 |
39 |
गुणवरा और रूपशिखा |
139 |
40 |
पूर्वजन्म का संस्कार |
142 |
41 |
चिरायु और नागार्जुन |
144 |
42 |
नरवाहनदत्त की आखेट-यात्रा |
146 |
43 |
राजकुमारी कर्पूरिका |
149 |
आठवाँ खंड |
||
44 |
सूर्यप्रभ की कथा |
153 |
45 |
असुर और देवता |
154 |
46 |
युद्ध की तैयारी |
159 |
47 |
युद्ध का आरंभ |
166 |
48 |
विजय के लक्षण |
167 |
49 |
गुणशर्मा की कथा |
168 |
50 |
चक्रवर्ती-पद की प्राप्ति |
173 |
नवाँ खंड |
||
51 |
अलंकारवती |
177 |
52 |
दिव्य नारियों का दुराचरण |
|
53 |
स्वामिभक्त सेवक |
188 |
54 |
सुकर्म और पुरुषार्थ की महिमा |
191 |
55 |
राजा कनकवर्ष की कथा |
196 |
56 |
नल-दमयंती की कथा |
199 |
दसवाँ खंड |
||
57 |
शक्तियशा |
208 |
58 |
स्त्री-चरित्र |
212 |
59 |
शास्त्रगंज तोते की कथा |
216 |
60 |
बुद्धिमानों की कथाएँ |
222 |
61 |
मूर्खों की कथाएँ |
231 |
62 |
बुद्धिमानी की कथाएँ |
234 |
63 |
मूर्खों की कुछ और कथाएँ |
238 |
64 |
बुद्धिमान पक्षी और मूर्ख मनुष्य |
245 |
65 |
मनोविनोद की कथाएँ |
254 |
66 |
और मनोरंजनकारी कथाएँ |
260 |
67 |
कुछ और कथाएँ |
262 |
68 |
शक्तियशा का विवाह |
270 |
ग्यारहवाँ खंड |
||
69 |
बेला |
276 |
बारहवाँ खंड |
||
70 |
ललितलोचना |
279 |
72 |
अनगवती और विनयवती |
281 |
74 |
मृगांकदत्त का देश-निकाला |
287 |
76 |
भीम पराक्रम की मुक्ति |
291 |
78 |
विनीतमति की कथा |
299 |
80 |
मंत्री विचित्रकथ का वृत्तांत |
309 |
82 |
शीलधर की कथा |
317 |
84 |
बेताल-पच्चीसी : पहला बेताल |
323 |
86 |
दूसरा बेताल |
327 |
88 |
तीसरा बेताल |
329 |
90 |
चौथा बेताल |
331 |
92 |
पाँचवाँ बेताल |
332 |
94 |
छठा बेताल |
334 |
96 |
सातवाँ बेताल |
335 |
98 |
आठवाँ बेताल |
337 |
100 |
नवाँ बेताल |
339 |
102 |
दसवाँ बेताल |
339 |
104 |
ग्यारहवाँ बेताल |
341 |
106 |
बारहवाँ बेताल |
342 |
108 |
तेरहवाँ बेताल |
345 |
110 |
चौदहवाँ बेताल |
346 |
112 |
पंद्रहवाँ बेताल |
348 |
114 |
सोलहवाँ बेताल |
351 |
116 |
सत्रहवाँ बेताल |
351 |
118 |
अठारहवाँ बेताल |
352 |
120 |
उन्नीसवाँ बेताल |
354 |
122 |
बीसवाँ बेताल |
356 |
124 |
इक्कीसवाँ बेताल |
358 |
126 |
बाईसवाँ बेताल |
360 |
128 |
तेईसवाँ बेताल |
361 |
130 |
चौबीसवाँ बेताल |
362 |
132 |
पच्चीसवाँ बेताल |
364 |
134 |
मंत्रियों से मिलन |
365 |
136 |
व्याघ्रसेन की कथा |
366 |
138 |
दूत-कार्य |
371 |
140 |
युद्ध और विवाह |
373 |
तेरहवाँ खंड |
||
141 |
मदिरावती |
377 |
चौदहवाँ खंड |
||
142 |
वेगवती |
381 |
143 |
मानसवेग से युद्ध |
383 |
144 |
शिव का वरदान |
386 |
145 |
मानसवेग और गौरिमुंड की पराजय |
388 |
पंद्रहवाँ खंड |
||
146 |
महाभिषेक |
394 |
सोलहवाँ खंड |
||
147 |
सुरतमंजरी |
399 |
148 |
सुरतमंजरी का हरण |
401 |
149 |
तारावलोक |
406 |
सत्रहवाँ खंड |
||
150 |
पद्यावती |
409 |
151 |
मुक्ताफलकेतु |
412 |
152 |
विद्युद्ध्वज की मृत्यु |
415 |
153 |
मुक्ताफललकेतु को शाप |
417 |
154 |
मुक्ताफलकेतु मनुष्य-रूप में |
419 |
155 |
शाप-मुकिा |
421 |
अठारहवाँ खंड |
||
156 |
विषमशील |
426 |
157 |
मदनमंजरी की कथा |
428 |
158 |
मलयवती का विवाह |
435 |
159 |
धनदत्त वैश्य की कथा |
438 |
160 |
पूर्णाहुति |
447 |
पुस्तक के विषय में
कथा-सरित्सागर संसार भर के कथा-साहित्य का आदिस्त्रोत है। शेक्सपियर, गेटे बोकेशियो आदि ने जाने कितने सुख्यात विदेशी कथाकारों ने इसी की कथा-कहानियों से अपनी कृतियों की मूल प्रेरणा ग्रहण की है।
और 'सागर' की कथावस्तु भी क्या है! सभी तरह की कथा-कहानियों का एक सागर है, जिसमें छोटी-छोटी कथाओं की न जाने कितनी सरिताएँ और धाराएँ मिलती जाती हैं। इसमें लोककथाएँ हैं, ऐतिहासिक गाथाएँ हैं, पौराणिक वार्ताएँ है, शिक्षा की कहानियाँ हैं, नीति की, बुद्धिमानी की, मूर्खता की, प्रेम की, विरह की, स्त्री-चरित्र की, गृहस्थ-जीवन की भाग्य-चक्र की-संक्षेप में जीवन के हर पहलू से संबंध रखनेवाली कहानियाँ हैं और ऐसी रोचक और मनोरंजक, सरस और मधुर कि एक बार आरंभ करने पर पुस्तक बंद करने को मन नहीं करता।
'कथा-सरित्सागर' संस्कृत के महाकवि सोमदेव भट्ट की अमर कृति है।
प्रस्तुत पुस्तक उसी को हिंदी रूपांतर है।
प्रकाशकीय
भारतीय साहित्य में 'कथा-सरित्सागर' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह कथा-कहानियों का विशाल भडार है और इसकी कहानियाँ भारत के कोने-कोने में फैली हुई हैं, हालाँकि कम ही लोग जानते हैं कि वे कब से प्रचलित हैं और कहाँ से ली गई हैं।
सारी पुस्तक कहानियों से भरी पड़ी हैं और कहानियाँ भी कैसी? एक-से-एक बढ़कर। इतनी रोचक कि एक बार हाथ में उठा लें तो बिना पूरी किए छूटे ही नहीं। कहानियों को पढ़कर मनोरंजन तौ होता ही है, शिक्षाप्रद भी बहुतेरी हैं, साथ ही उनसे तत्कालीन समाज के जन-जीवन कीं-रीति-रिवाजों, प्रथाओं, लोकाचार-तथा किसी हद तक इतिहास की भी, झाँकी मिलती है।
मूल ग्रंथ की रचना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी । इन नौ सौ वर्षा में अनेक विद्वानों ने इस पर अन्वेषण-कार्य किया है और अंग्रेजी में तो इसका अनुवाद भी दस जिल्दों में कभी का निकल चुका है। प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा संपादित यह धरोहर पुस्तक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आशा है इसके पठन-पाठन से पाठकों में मूल ग्रंथ को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होगी।
भूमिका
भारतीय साहित्य की विश्व को जो देन है, उसमें लोकप्रिय-कथा की देन विशेष महत्त्व की है। भारत कथाओं का देश है। विश्व में कहानी का प्रचार यही से हुआ है। ईरानियों ने यही से इस कला को सीखा, सीखकर अरबों को सिखाया। अरब से यह कला तुर्की और रोम होती हुई संसार-भर में फैल गई। शोर के महान् कथाकारों बोकेशियो, गेटे ला फोते, चौसर और शेक्सपियर के साहित्य की प्रेरणा ये ही कथाएँ रही हैं। न जाने कितनी कथाएँ न जाने किस-किस देश में गई और वहाँ-वहाँ के जीवन में समा गई। 'कथा-सरित्सागर' इसी प्रकार की कथाओं का एक अद्भुत और महत्वपूण ग्रथ है। साधारणतया भारतीय साहित्य में दो प्रकार की कथाएँ मिलती हैं-उपदेशात्मक और मनोरंजक ।उपदेशात्मक कथाएँ ब्राह्मणो' जैनियो और बौद्धों ने समान रूप से लिखी हैं। बौद्धो की 'जातक-कथाओं का इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैनियों का भंडार तो अक्षय है अभी तक बहुत कुछ अछूता भी है। वेदी, पुराणों और महाभारत में भी अनेको कथाएँ हैं। 'पचतत्र' का मूल्य तो विश्व-विश्रुत है ही। पशु-पक्षियों के माध्यम से उसमें नीति-शास्त्र की विवेचना की गई है। 'कथा-सरित्सागर' मनोरंजक कहानियों की श्रेणी में आता है। इसमें उपदेशात्मक कथाएँ भी हैं-'पंचतंत्र' के अनेक अश इसका प्रमाण हैं, परतु मुख्यतया इसका लक्ष्य मनुष्य और उसके समाज का चित्रण और मनोरजन करना है। इसलिए साहित्यिक कथाओं में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथ मौलिक नहीं है, बल्कि महाकवि गुणाढ्य द्वारा पैशाची 'भाषा' में लिखी गई एक बहुत प्राचीन और लोकप्रसिद्ध पुस्तक 'बृहत्कथा' का संक्षिप्त रूपातर है।
'बृहत्कथा' आज उपलब्ध नही है। उसके और उसके लेखक के संबंध में पूरी जानकारी भी किसी को नहीं है, परतु वे दोनों थे अवश्य, यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है। स्वय 'कथा-सरित्सागर' इसका प्रमाण है। इसके प्रथम लवक 'कथा-पीठ' में यह कथा दी हुई है। काश्मीरी संस्करणों में गुणाद्य को गोदावरी तट पर बसे प्रतिष्ठान का निवासी माना है और किसी सातवाहन राजा का कृपा-पात्र बताया है। नेपाली-संस्करण के अनुसार उनका जन्म मथुरा में हुआ और वह उज्जैन के राजा मदन के अश्रित थे। अधिकतर विद्वान् पहली बात को ठीक मानते है। 'बृहत्कथा' के तीन अनुवाद या रूपांतर आज उपलब्ध है।
अनुक्रम |
||
पहला खंड |
||
1 |
वत्सराज |
23 |
2 |
वररुचि और काणभूति |
24 |
3 |
पाटलिपुत्र की कहानी |
26 |
4 |
पाणिनी और राजा नंद |
28 |
5 |
शकटाल और चाणक्य |
30 |
6 |
गुणाढ्य |
33 |
7 |
नाम का रहस्य |
36 |
8 |
कथाओं की रक्षा |
39 |
दूसरा खंड |
||
9 |
सहस्रानीक और मृगावती |
40 |
10 |
श्रीदत्त की कहानी |
42 |
11 |
राजा उदयन |
47 |
12 |
चंडमहासेन और वासवदत्ता |
49 |
13 |
उदयन की मुक्ति |
53 |
14 |
उदयन और वासवदत्ता |
58 |
तीसरा खंड |
||
15 |
लावणक की कहानी |
61 |
16 |
अवंतिका की कहानी |
65 |
17 |
उर्वशी और अहिल्या की कहानी |
68 |
18 |
विदूषक की कथा |
72 |
19 |
दिग्विजय की यात्रा |
79 |
20 |
कार्तिकेय और मंत्र सिद्ध करने की कथा |
82 |
चौथा खंड |
||
21 |
देवदत्त की कहानी |
89 |
22 |
जीमूतवाहन और गरुड़ की कथा |
92 |
23 |
नरवाहनदत्त का जन्म |
96 |
पाँचवाँ खंड |
||
24 |
दो भूतों की कहानी |
98 |
25 |
कनकपुरी और शक्तिदेव |
101 |
26 |
विद्याधर शक्तिदेव |
104 |
छठा खंड |
||
27 |
मदनमंचुका |
109 |
28 |
कलिंगसेना |
112 |
29 |
सोमप्रभा |
114 |
30 |
मदनवेग और कलिंगसेना |
116 |
31 |
कलिंगसेना और उदयन |
118 |
32 |
कदलीगर्भा की कहानी |
119 |
33 |
कलिंगसेना का विवाह |
121 |
34 |
नरवाहनदत्त और मदनमंचुका |
124 |
सातवाँ खंड |
||
35 |
रत्नप्रभा की कहानी |
128 |
36 |
सती-धर्म की कहानी |
130 |
37 |
स्त्री-चरित्र |
132 |
38 |
शीलवती वेश्या की कथा |
1326 |
39 |
गुणवरा और रूपशिखा |
139 |
40 |
पूर्वजन्म का संस्कार |
142 |
41 |
चिरायु और नागार्जुन |
144 |
42 |
नरवाहनदत्त की आखेट-यात्रा |
146 |
43 |
राजकुमारी कर्पूरिका |
149 |
आठवाँ खंड |
||
44 |
सूर्यप्रभ की कथा |
153 |
45 |
असुर और देवता |
154 |
46 |
युद्ध की तैयारी |
159 |
47 |
युद्ध का आरंभ |
166 |
48 |
विजय के लक्षण |
167 |
49 |
गुणशर्मा की कथा |
168 |
50 |
चक्रवर्ती-पद की प्राप्ति |
173 |
नवाँ खंड |
||
51 |
अलंकारवती |
177 |
52 |
दिव्य नारियों का दुराचरण |
|
53 |
स्वामिभक्त सेवक |
188 |
54 |
सुकर्म और पुरुषार्थ की महिमा |
191 |
55 |
राजा कनकवर्ष की कथा |
196 |
56 |
नल-दमयंती की कथा |
199 |
दसवाँ खंड |
||
57 |
शक्तियशा |
208 |
58 |
स्त्री-चरित्र |
212 |
59 |
शास्त्रगंज तोते की कथा |
216 |
60 |
बुद्धिमानों की कथाएँ |
222 |
61 |
मूर्खों की कथाएँ |
231 |
62 |
बुद्धिमानी की कथाएँ |
234 |
63 |
मूर्खों की कुछ और कथाएँ |
238 |
64 |
बुद्धिमान पक्षी और मूर्ख मनुष्य |
245 |
65 |
मनोविनोद की कथाएँ |
254 |
66 |
और मनोरंजनकारी कथाएँ |
260 |
67 |
कुछ और कथाएँ |
262 |
68 |
शक्तियशा का विवाह |
270 |
ग्यारहवाँ खंड |
||
69 |
बेला |
276 |
बारहवाँ खंड |
||
70 |
ललितलोचना |
279 |
72 |
अनगवती और विनयवती |
281 |
74 |
मृगांकदत्त का देश-निकाला |
287 |
76 |
भीम पराक्रम की मुक्ति |
291 |
78 |
विनीतमति की कथा |
299 |
80 |
मंत्री विचित्रकथ का वृत्तांत |
309 |
82 |
शीलधर की कथा |
317 |
84 |
बेताल-पच्चीसी : पहला बेताल |
323 |
86 |
दूसरा बेताल |
327 |
88 |
तीसरा बेताल |
329 |
90 |
चौथा बेताल |
331 |
92 |
पाँचवाँ बेताल |
332 |
94 |
छठा बेताल |
334 |
96 |
सातवाँ बेताल |
335 |
98 |
आठवाँ बेताल |
337 |
100 |
नवाँ बेताल |
339 |
102 |
दसवाँ बेताल |
339 |
104 |
ग्यारहवाँ बेताल |
341 |
106 |
बारहवाँ बेताल |
342 |
108 |
तेरहवाँ बेताल |
345 |
110 |
चौदहवाँ बेताल |
346 |
112 |
पंद्रहवाँ बेताल |
348 |
114 |
सोलहवाँ बेताल |
351 |
116 |
सत्रहवाँ बेताल |
351 |
118 |
अठारहवाँ बेताल |
352 |
120 |
उन्नीसवाँ बेताल |
354 |
122 |
बीसवाँ बेताल |
356 |
124 |
इक्कीसवाँ बेताल |
358 |
126 |
बाईसवाँ बेताल |
360 |
128 |
तेईसवाँ बेताल |
361 |
130 |
चौबीसवाँ बेताल |
362 |
132 |
पच्चीसवाँ बेताल |
364 |
134 |
मंत्रियों से मिलन |
365 |
136 |
व्याघ्रसेन की कथा |
366 |
138 |
दूत-कार्य |
371 |
140 |
युद्ध और विवाह |
373 |
तेरहवाँ खंड |
||
141 |
मदिरावती |
377 |
चौदहवाँ खंड |
||
142 |
वेगवती |
381 |
143 |
मानसवेग से युद्ध |
383 |
144 |
शिव का वरदान |
386 |
145 |
मानसवेग और गौरिमुंड की पराजय |
388 |
पंद्रहवाँ खंड |
||
146 |
महाभिषेक |
394 |
सोलहवाँ खंड |
||
147 |
सुरतमंजरी |
399 |
148 |
सुरतमंजरी का हरण |
401 |
149 |
तारावलोक |
406 |
सत्रहवाँ खंड |
||
150 |
पद्यावती |
409 |
151 |
मुक्ताफलकेतु |
412 |
152 |
विद्युद्ध्वज की मृत्यु |
415 |
153 |
मुक्ताफललकेतु को शाप |
417 |
154 |
मुक्ताफलकेतु मनुष्य-रूप में |
419 |
155 |
शाप-मुकिा |
421 |
अठारहवाँ खंड |
||
156 |
विषमशील |
426 |
157 |
मदनमंजरी की कथा |
428 |
158 |
मलयवती का विवाह |
435 |
159 |
धनदत्त वैश्य की कथा |
438 |
160 |
पूर्णाहुति |
447 |