निवेदन
भारतीय संस्कृति और उसके महान् आदर्श अवश्य अनुकरणीय और सदैव कल्याणकारी हैं । हमारे महापुरुषोंने ही नहीं, अपितु इस देशकी महान् नारियोंने भी अपने उत्तमोत्तम गुणों तथा आदर्श चरित्रोंके प्रकाशनद्वारा संसारको चमत्कृत किया है । अत उन प्रात स्मरणीया देवियोंके महान् चरित्र वन्दनीय और नारीमात्रके लिये प्रकाश स्तम्भ सच्चे मार्ग दर्शक हैं ।
प्रस्तुत पुस्तकमें भारतकी ऐसी ही चार महान् देवियोंके आदर्श चरित्रोंका वर्णन है, जो परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा लिखे गये हैं । ये महान् नारी चरित्र वर्षों पहले समय समयपर कल्याण में प्रकाशित हो चुके हैं । तत्पश्चात् इस पुस्तकका मात्र प्रथम चरित्र सीताके चरित्रसे आदर्श शिक्षा नामसे अलग छोटी पुस्तकमें तथा शेष तीन चरित्र (कुन्ती, द्रौपदी और गान्धारी) तीन आदर्श देवियाँ के नामसे कुछ समय पूर्व अलग पुस्तकरूपमें भी प्रकाशित हुए हैं । उपयोगिता और सुविधाकी दृष्टिसे उन चारों चरित्रोंको एकहीमें संकलित करके अब इसे पुस्तकाकारमें प्रकाशित किया गया है । इन चारों आदर्श नारी रत्नोंके उत्कृष्ट चरित्र निःसंदेह विशेष प्रेरणादायी और अवश्य पठनीय हैं । यों तो पुस्तक सभीके लिये शिक्षाप्रद, ज्ञानवर्धक और उपयोगी है, किंतु माता बहनों और बालिकाओंके लिये यह विशेषरूपसे परमोपयोगी है । उन्हें सुसंस्कार देनेवाला यह उत्कृष्ट मार्गदर्शन है । अत इसके शिक्षाप्रद प्रेरणादायी चरित्रोंसे सभी श्रद्धालुजनों, प्रेमी पाठकों और विशेषत महिलाओंको अधिकाधिक रूपसे विशेष लाभ उठाना चाहिये ।
विषय |
||
1 |
श्रीसीताके चरित्रसे आदर्श शिक्षा |
5 |
नैहरमें प्रेम व्यवहार |
6 |
|
माता पिताका आज्ञा पालन |
7 |
|
पति सेवाके लिये प्रेमाग्रह |
7 |
|
पति सेवामें सुख |
11 |
|
सास सेवा |
11 |
|
सहिष्णुता |
12 |
|
निरभिमानता |
12 |
|
गुरुजन सेवा और मर्यादा |
13 |
|
निर्भयता |
14 |
|
धर्मके लिये प्राण त्यागकी तैयारी |
15 |
|
सावधानी |
16 |
|
दाम्पत्य प्रेम |
16 |
|
पर पुरुषसे परहेज |
17 |
|
वियोगमें व्याकुलता |
18 |
|
अग्नि परीक्षा |
20 |
|
गृहस्थ धर्म |
24 |
|
समान व्यवहार |
24 |
|
सीता परित्याग |
25 |
|
पाताल प्रवेश |
30 |
|
सीता परित्यागके हेतु |
32 |
|
उपसंहार |
36 |
|
२ |
देवी कुन्ती |
38 |
३ |
देवी द्रौपदी |
46 |
४ |
पतिभक्ता गान्धारी |
58 |
निवेदन
भारतीय संस्कृति और उसके महान् आदर्श अवश्य अनुकरणीय और सदैव कल्याणकारी हैं । हमारे महापुरुषोंने ही नहीं, अपितु इस देशकी महान् नारियोंने भी अपने उत्तमोत्तम गुणों तथा आदर्श चरित्रोंके प्रकाशनद्वारा संसारको चमत्कृत किया है । अत उन प्रात स्मरणीया देवियोंके महान् चरित्र वन्दनीय और नारीमात्रके लिये प्रकाश स्तम्भ सच्चे मार्ग दर्शक हैं ।
प्रस्तुत पुस्तकमें भारतकी ऐसी ही चार महान् देवियोंके आदर्श चरित्रोंका वर्णन है, जो परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा लिखे गये हैं । ये महान् नारी चरित्र वर्षों पहले समय समयपर कल्याण में प्रकाशित हो चुके हैं । तत्पश्चात् इस पुस्तकका मात्र प्रथम चरित्र सीताके चरित्रसे आदर्श शिक्षा नामसे अलग छोटी पुस्तकमें तथा शेष तीन चरित्र (कुन्ती, द्रौपदी और गान्धारी) तीन आदर्श देवियाँ के नामसे कुछ समय पूर्व अलग पुस्तकरूपमें भी प्रकाशित हुए हैं । उपयोगिता और सुविधाकी दृष्टिसे उन चारों चरित्रोंको एकहीमें संकलित करके अब इसे पुस्तकाकारमें प्रकाशित किया गया है । इन चारों आदर्श नारी रत्नोंके उत्कृष्ट चरित्र निःसंदेह विशेष प्रेरणादायी और अवश्य पठनीय हैं । यों तो पुस्तक सभीके लिये शिक्षाप्रद, ज्ञानवर्धक और उपयोगी है, किंतु माता बहनों और बालिकाओंके लिये यह विशेषरूपसे परमोपयोगी है । उन्हें सुसंस्कार देनेवाला यह उत्कृष्ट मार्गदर्शन है । अत इसके शिक्षाप्रद प्रेरणादायी चरित्रोंसे सभी श्रद्धालुजनों, प्रेमी पाठकों और विशेषत महिलाओंको अधिकाधिक रूपसे विशेष लाभ उठाना चाहिये ।
विषय |
||
1 |
श्रीसीताके चरित्रसे आदर्श शिक्षा |
5 |
नैहरमें प्रेम व्यवहार |
6 |
|
माता पिताका आज्ञा पालन |
7 |
|
पति सेवाके लिये प्रेमाग्रह |
7 |
|
पति सेवामें सुख |
11 |
|
सास सेवा |
11 |
|
सहिष्णुता |
12 |
|
निरभिमानता |
12 |
|
गुरुजन सेवा और मर्यादा |
13 |
|
निर्भयता |
14 |
|
धर्मके लिये प्राण त्यागकी तैयारी |
15 |
|
सावधानी |
16 |
|
दाम्पत्य प्रेम |
16 |
|
पर पुरुषसे परहेज |
17 |
|
वियोगमें व्याकुलता |
18 |
|
अग्नि परीक्षा |
20 |
|
गृहस्थ धर्म |
24 |
|
समान व्यवहार |
24 |
|
सीता परित्याग |
25 |
|
पाताल प्रवेश |
30 |
|
सीता परित्यागके हेतु |
32 |
|
उपसंहार |
36 |
|
२ |
देवी कुन्ती |
38 |
३ |
देवी द्रौपदी |
46 |
४ |
पतिभक्ता गान्धारी |
58 |