पुस्तक परिचय
सिक्सों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म सन् 1666 ई. तदनुसार सम्वत् 1723 विक्रमी में पटना (बिहार) में हुआ । उनके पिता सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर और माता गूजरी थी । उनका बचपन का नाम गोबिन्द राय था । उन्हें बचपन से ही शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दिलाई गई । त्याग, बलिदान और मानवीय करुणा से ओतप्रोत सिक्ख गुरुओं की परम्परा को समृद्ध करते हुए गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्मचर्या और तपश्चर्या दोनों को अपने जीवन का आधार बनाया । गुरुमुखी के अलावा फ़ारसी ब्रजभाषा, संस्कृत और बाङ्ला इन सभी भाषाओं पर भी उनका पूरा अधिकार था । गुरु तेगबहादुर के बलिदान के बाद उन्होंने आनन्दपुर के केशगढ़ नामक स्थान पर खालसा पंथ की स्थापना की और जीवन में कड़े अनुशासन और बलिदान के साथ अपने अनुयायियों को इसमें दीक्षित किया।
गुरु गोबिन्द सिंह न केवल धर्म सुधारक बल्कि राष्ट्र उन्नायक भी थे । उन्होंने लोक- परलोक, धर्म-अध्यात्म, जीवन-जगत तथा शस्त्र-शास्त्र का अभूतपूर्व सामंजस्य करते हुए अपने पंथ को एक प्रतिमान बना दिया ।
गुरु गोबिन्द सिंह ने कई कृतियों की रचना की, जिनमें ब्रजभाषा एवं सधुक्कड़ी- जिसमें अरबी फारसी और उर्दू शब्दों की प्रचुरता है-का प्रयोग किया गया है । जपुजी साहब विचित्र नाटक चण्डीचरित्र ज़फ़रनामा और हिक़ायत उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं, जो खालसा पंथ में पूज्य दशम ग्रंथ में सम्मिलित हैं । गुरु गोबिन्द सिंह का निधन 1708 ई. में हुआ ।
लेखक परिचय
हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध विद्वान एवं कथाकार डी. महीप सिंह ने गुरु गोबिन्द सिंह के जीवन, त्याग. शौर्य और बलिदान का मूल्यांकन करते हुए प्रस्तुत विनिबंध में उनके योगदान का तथ्यपरक एवं प्रामाणिक आकलन किया है ।
अनुक्रम |
||
1 |
पूर्व पीठिका |
7 |
2 |
परिस्थितिगत पृष्ठभूमि |
15 |
3 |
जीवनवृत्त |
21 |
4 |
काव्य रचनाएँ |
54 |
5 |
काव्य-सौष्ठव और भाषा |
80 |
6 |
भक्ति-भावना |
93 |
7 |
जीवन पर एक दृष्टि |
106 |
पुस्तक परिचय
सिक्सों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म सन् 1666 ई. तदनुसार सम्वत् 1723 विक्रमी में पटना (बिहार) में हुआ । उनके पिता सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर और माता गूजरी थी । उनका बचपन का नाम गोबिन्द राय था । उन्हें बचपन से ही शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दिलाई गई । त्याग, बलिदान और मानवीय करुणा से ओतप्रोत सिक्ख गुरुओं की परम्परा को समृद्ध करते हुए गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्मचर्या और तपश्चर्या दोनों को अपने जीवन का आधार बनाया । गुरुमुखी के अलावा फ़ारसी ब्रजभाषा, संस्कृत और बाङ्ला इन सभी भाषाओं पर भी उनका पूरा अधिकार था । गुरु तेगबहादुर के बलिदान के बाद उन्होंने आनन्दपुर के केशगढ़ नामक स्थान पर खालसा पंथ की स्थापना की और जीवन में कड़े अनुशासन और बलिदान के साथ अपने अनुयायियों को इसमें दीक्षित किया।
गुरु गोबिन्द सिंह न केवल धर्म सुधारक बल्कि राष्ट्र उन्नायक भी थे । उन्होंने लोक- परलोक, धर्म-अध्यात्म, जीवन-जगत तथा शस्त्र-शास्त्र का अभूतपूर्व सामंजस्य करते हुए अपने पंथ को एक प्रतिमान बना दिया ।
गुरु गोबिन्द सिंह ने कई कृतियों की रचना की, जिनमें ब्रजभाषा एवं सधुक्कड़ी- जिसमें अरबी फारसी और उर्दू शब्दों की प्रचुरता है-का प्रयोग किया गया है । जपुजी साहब विचित्र नाटक चण्डीचरित्र ज़फ़रनामा और हिक़ायत उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं, जो खालसा पंथ में पूज्य दशम ग्रंथ में सम्मिलित हैं । गुरु गोबिन्द सिंह का निधन 1708 ई. में हुआ ।
लेखक परिचय
हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध विद्वान एवं कथाकार डी. महीप सिंह ने गुरु गोबिन्द सिंह के जीवन, त्याग. शौर्य और बलिदान का मूल्यांकन करते हुए प्रस्तुत विनिबंध में उनके योगदान का तथ्यपरक एवं प्रामाणिक आकलन किया है ।
अनुक्रम |
||
1 |
पूर्व पीठिका |
7 |
2 |
परिस्थितिगत पृष्ठभूमि |
15 |
3 |
जीवनवृत्त |
21 |
4 |
काव्य रचनाएँ |
54 |
5 |
काव्य-सौष्ठव और भाषा |
80 |
6 |
भक्ति-भावना |
93 |
7 |
जीवन पर एक दृष्टि |
106 |