आमुख
गिटार यद्यपि पाश्चात्य वाद्य है, परन्तु वायलिन की भाँति भारत में इसका प्रचार भी दिनोंदिन बढ रहा है। वायलिन की अपेक्षा आकार में बहुत बड़ा होने के कारण और बजाने के ढंग में भी कठिनाई अनुभव करने के कारण यह वायलिन से पिछड़ गया, वरना इसकी सुमधुर ध्वनि वायलिन से कहीं बढ़ चढ़कर चित्ताकर्षक है। वायलिन ही क्या, लम्बी मीड़ की धनि जितनी कर्ण प्रिय इस वाद्य में सम्भव है। अन्य किसी भी वाद्य में नहीं । एक ही आघात में दो तीन सप्तक की लम्बी मीड़ लेने पर भी मीड़ जल्दी ही समाप्त नहीं होती, अपितु बहुत देर तक स्थिर रहती है। यह इस वाद्य की एक बड़ी विशेषता है। सबसे बड़ी उपयोगिता इस वाद्य की लय को दिखाने में अर्थात् Rhythm देने या Vamping करने में है। सुगम संगीत में यह Vamping जान डाल देती है।Vamping के साथ साथ सुनने वाले का हृदय भी vamp करने लगता है। यदि गिटार बिजली से बजने वाला हो, अर्थात् Electric Guitar हो तो फिर कहना ही क्या! मीलों दूर चलने वाले भी थोड़ी देर के लिए इसे सुनने के लिए रुक जाते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी यह वाद्य बजाना सरल है। ग्लि इसके बजाने और सिखाने वाले इने गिने आदमी हैं और बहुत थोड़े हैं वे या तो सिखाने का ढंग नहीं जानते या सिखाना नहीं चाहते।
कहने का तात्पर्य यही है कि अच्छे शिक्षकों की कमी के कारण ही गिटार का उतना प्रचार या चलन नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। इसी कमी का अनुभव करते हुए प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित करने का विचार किया गया, जिससे गिटार सीखने वाले व्यक्ति आसानी से गिटार सीखकर लाभ उठा सकें। विश्वास है, इस द्वारा बहुत थोड़े समय में ही गियर वादन की शिक्षा प्राप्त हो सकेगी।
प्रस्तुत पुस्तक में दी गई फिल्मी गीतों की संगीतलिपि फिल्म संगीत मासिक पत्र से उद्धृतु की गई हैं जिसके लिए मैं लिपिकार श्री देवकीनन्दन धवन का आभारी हू।
अनुक्रम |
|
आमुख |
3 |
संगीतलिपि
चिह्न परिचय |
4 |
गिटार
परिचय एवं बजाने
का तरीका |
|
गिटार
के प्रकार |
7 |
गिटार
की बनावट और उसके
भाग |
8 |
गिटार
मिलाने की विधियाँ |
10 |
गिटार
बजाने का ढंग |
11 |
शास्त्रीय ज्ञान (Theory) गिटार पर लय बढ़ाना (Vamping) |
26 |
गिटार
के कुछ विशेष अभ्यास |
27 |
गिटार
पर कॉर्ड बजाना |
29 |
भारतीय
धुने |
|
पहाड़ी
ध़ुन/दादरा ताल |
31 |
मार्चिंग
ध़ुन/कहरवा ताल |
31 |
नृत्य
धुन/तीनताल |
32 |
नृत्य
की प्राचीन धुन/
तीनताल या कहरवा
ताल |
33 |
धुन
भटियाली/कहरवा
ताल |
33 |
पाश्चात्य
(Western) धुनें इंगलिश
राष्ट्रीय धुन |
37 |
गांधी
जी की प्रिय रामधुन |
39 |
राष्ट्रीय
गीत |
40 |
वन्दे
मातरम् |
42 |
शास्त्रीय
संगीत |
|
राग
यमन |
44 |
राग
खमाज |
48 |
राग
काफी |
51 |
फ़िल्मी धुनें |
|
ओ मेरे
सनम |
53 |
बोल
राधा! बोल संगम |
57 |
हर
दिल जो प्यार करेगा |
59 |
जानेवाली!
जरा |
62 |
नैना
बरसे रिमझिम रिमझिम |
65 |
ज्योति हे ज्योति जगाते चलो |
67 |
हमारे
संग संग चलें |
69 |
आ जा, आई
बहार |
71 |
तुम्हें
जो भी देख लेगा |
73 |
न झटको जुल्फ से पानी |
75 |
तुम
अकेले तो कभी |
78 |
आमुख
गिटार यद्यपि पाश्चात्य वाद्य है, परन्तु वायलिन की भाँति भारत में इसका प्रचार भी दिनोंदिन बढ रहा है। वायलिन की अपेक्षा आकार में बहुत बड़ा होने के कारण और बजाने के ढंग में भी कठिनाई अनुभव करने के कारण यह वायलिन से पिछड़ गया, वरना इसकी सुमधुर ध्वनि वायलिन से कहीं बढ़ चढ़कर चित्ताकर्षक है। वायलिन ही क्या, लम्बी मीड़ की धनि जितनी कर्ण प्रिय इस वाद्य में सम्भव है। अन्य किसी भी वाद्य में नहीं । एक ही आघात में दो तीन सप्तक की लम्बी मीड़ लेने पर भी मीड़ जल्दी ही समाप्त नहीं होती, अपितु बहुत देर तक स्थिर रहती है। यह इस वाद्य की एक बड़ी विशेषता है। सबसे बड़ी उपयोगिता इस वाद्य की लय को दिखाने में अर्थात् Rhythm देने या Vamping करने में है। सुगम संगीत में यह Vamping जान डाल देती है।Vamping के साथ साथ सुनने वाले का हृदय भी vamp करने लगता है। यदि गिटार बिजली से बजने वाला हो, अर्थात् Electric Guitar हो तो फिर कहना ही क्या! मीलों दूर चलने वाले भी थोड़ी देर के लिए इसे सुनने के लिए रुक जाते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी यह वाद्य बजाना सरल है। ग्लि इसके बजाने और सिखाने वाले इने गिने आदमी हैं और बहुत थोड़े हैं वे या तो सिखाने का ढंग नहीं जानते या सिखाना नहीं चाहते।
कहने का तात्पर्य यही है कि अच्छे शिक्षकों की कमी के कारण ही गिटार का उतना प्रचार या चलन नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। इसी कमी का अनुभव करते हुए प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित करने का विचार किया गया, जिससे गिटार सीखने वाले व्यक्ति आसानी से गिटार सीखकर लाभ उठा सकें। विश्वास है, इस द्वारा बहुत थोड़े समय में ही गियर वादन की शिक्षा प्राप्त हो सकेगी।
प्रस्तुत पुस्तक में दी गई फिल्मी गीतों की संगीतलिपि फिल्म संगीत मासिक पत्र से उद्धृतु की गई हैं जिसके लिए मैं लिपिकार श्री देवकीनन्दन धवन का आभारी हू।
अनुक्रम |
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आमुख |
3 |
संगीतलिपि
चिह्न परिचय |
4 |
गिटार
परिचय एवं बजाने
का तरीका |
|
गिटार
के प्रकार |
7 |
गिटार
की बनावट और उसके
भाग |
8 |
गिटार
मिलाने की विधियाँ |
10 |
गिटार
बजाने का ढंग |
11 |
शास्त्रीय ज्ञान (Theory) गिटार पर लय बढ़ाना (Vamping) |
26 |
गिटार
के कुछ विशेष अभ्यास |
27 |
गिटार
पर कॉर्ड बजाना |
29 |
भारतीय
धुने |
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पहाड़ी
ध़ुन/दादरा ताल |
31 |
मार्चिंग
ध़ुन/कहरवा ताल |
31 |
नृत्य
धुन/तीनताल |
32 |
नृत्य
की प्राचीन धुन/
तीनताल या कहरवा
ताल |
33 |
धुन
भटियाली/कहरवा
ताल |
33 |
पाश्चात्य
(Western) धुनें इंगलिश
राष्ट्रीय धुन |
37 |
गांधी
जी की प्रिय रामधुन |
39 |
राष्ट्रीय
गीत |
40 |
वन्दे
मातरम् |
42 |
शास्त्रीय
संगीत |
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राग
यमन |
44 |
राग
खमाज |
48 |
राग
काफी |
51 |
फ़िल्मी धुनें |
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ओ मेरे
सनम |
53 |
बोल
राधा! बोल संगम |
57 |
हर
दिल जो प्यार करेगा |
59 |
जानेवाली!
जरा |
62 |
नैना
बरसे रिमझिम रिमझिम |
65 |
ज्योति हे ज्योति जगाते चलो |
67 |
हमारे
संग संग चलें |
69 |
आ जा, आई
बहार |
71 |
तुम्हें
जो भी देख लेगा |
73 |
न झटको जुल्फ से पानी |
75 |
तुम
अकेले तो कभी |
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