भूमिका/आमुख
ज्योतिषशास्त्र 'कर्म सिद्धांत' पर आधारित है। पूर्व जन्मों में किए गए संचित कर्म ही हमारे इस जन्म के भाग्य को निर्धारित करते हैं। व्यक्ति सदैव अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का सही समय जानने को उत्सुक रहता है। समय निर्धारण में दशा/अंतर्दशा की भूमिका नि:संदेह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। दशा/अतंर्दशा द्वारा प्राप्त परिणामों में और सुधार के लिए वर्गा-चार्ट वर्षफल गोचर पद्धति एवं अष्टवर्ग का सहारा लिया जाता है। यद्यपि महर्षि पराशर द्वारा 42 दशा पद्धतियां दी गई हैं परन्तु विद्वानों, विद्यार्थियों एवं ज्योतिषाचार्यों ने निर्विवाद रूप से विंशोत्तर दशा-पद्धति को ही फलादेश के लिए स्वीकार किया है।
जन्म कुंण्डली में लग्न और अन्य भाव ग्रहों की स्थिति, उनकी दृष्टियां व संबंध, योग एवं अरिष्ट एक अनुभवी ज्योतिषि के समक्ष जातक के व्यक्तित्व और उसके जौवन में होने वाली मुख्य घटनाओं को उद्घाटित कर देते हैं। ये अच्छी और बुरी घटनाएं संबधित ग्रहों की दशा/अंतर्दशा में साकार होती हैं। दशा/अंतर्दशा के इन परिणामों की तीव्रता को बढ़ाने और घटाने में उस समय ५ की ग्रहस्थिति का भी महत्वपूर्ण योग रहता है, जिसे 'गोचर' कहा जाता है। इसलिए ग्रहों के गोचर को कर्म-फल प्रकाशक दैवी शस्त्र कहना अनुचित न होगा। ग्रह गोचर की महत्ता को प्रतिपादित करने के लिए ही प्रमुख गोचर नियमों को इस पुस्तक में संकलित किया गया है। गोचर में जन्म-चन्द्र को मुख्य धुरि माना गया है। चंद्र मन एवं भावनाओं का प्रतीक है। गोचर के ग्रहों को चन्द्र राशि के सबंध में देखने पर ही शुभ और अशुभ परिणामों का सही ज्ञान हो पाता है। पुस्तक में सूर्य और लगन के सबंध में भी गोचर ग्रहों का विश्लेषण किया गया है। 'गोचर और अष्टकवर्ग' का एक नया अध्याय भी जो़ड़ा गया है।
पुस्तक में दिए गए नियमों की वृहद् पराशर होरा शास्त्र बृहत जातक, सारावली आदि शास्त्रीय ग्रन्थों के सूक्ष्म विश्लेषण के पश्चात् कलमबद्ध किया है। फलदीपिका, काल प्रकाशिका जातक भरणम और यवनजातक में विस्तारपूर्वक गोचर तकनीक दी गई है। इन शास्त्रों के अध्ययन से पुस्तक को उचित दिशानिर्देश मिले हैं।
दैनिक जीवन में सफल प्रयोग के लिए गोचर के सभी शास्त्रीय तत्वों को सरल रूप में पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है। साढ़ेसाती के प्रभावों में मूर्ति-निर्णय की भूमिका दशा- अंतर्दशा का गोचर के संबंध में अध्ययन एक विशेष दिन सप्ताह या माह में ग्रहों के शुभाशुभ परिणामों को जानने के लिए अष्टकवर्ग के प्रयोग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। सर्वतोभाद्र चक्र गोचर-विश्लेषण में अहम स्थान रखता है। इस दुरूह चक्र को बहुत ही सरल तरीके से सुधिपाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। समय निर्धारण एवं मुहूर्त में इस चक्र की महत्ता सर्वविदित है।
आशा है कि पुस्तकीय रूप में यह प्रयास विद्वान पाठकों के गोचर-ज्ञान को एक नया आयाम देगा।
विषय-सूची |
||
भूमिका/आमुख |
||
1 |
सामान्य परिचय |
1 |
2 |
ग्रह |
9 |
3 |
भाव |
20 |
4 |
राशियां |
25 |
5 |
गोचर |
34 |
6 |
वेध बिन्दू |
39 |
7 |
सूर्य के गोचर परिणाम |
50 |
8 |
चंद्रमा के गोचार प्रभाव |
60 |
9 |
मंगल के गोचार प्रभाव |
69 |
10 |
बुध के गोचर परिणाम |
79 |
11 |
बृहस्पति के गोचर प्रभाव |
88 |
12 |
शुक्र के गोचर परिणाम |
98 |
13 |
शनि के गोचर परिणाम |
109 |
14 |
राहू के गोचर परिणाम |
121 |
15 |
केतु के गोचर परिणाम |
125 |
16 |
मूर्ति निर्णय |
129 |
17 |
शनि की साढ़े साती एवं ढईया |
137 |
18 |
नक्षत्र गोचर |
150 |
19 |
दशा/अन्तर्दशा और गोचर |
177 |
20 |
गोचर और अष्टक वर्ग स |
207 |
21 |
र्वतोभद्रचक्र |
230 |
22 |
उपाय |
286 |
भूमिका/आमुख
ज्योतिषशास्त्र 'कर्म सिद्धांत' पर आधारित है। पूर्व जन्मों में किए गए संचित कर्म ही हमारे इस जन्म के भाग्य को निर्धारित करते हैं। व्यक्ति सदैव अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का सही समय जानने को उत्सुक रहता है। समय निर्धारण में दशा/अंतर्दशा की भूमिका नि:संदेह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। दशा/अतंर्दशा द्वारा प्राप्त परिणामों में और सुधार के लिए वर्गा-चार्ट वर्षफल गोचर पद्धति एवं अष्टवर्ग का सहारा लिया जाता है। यद्यपि महर्षि पराशर द्वारा 42 दशा पद्धतियां दी गई हैं परन्तु विद्वानों, विद्यार्थियों एवं ज्योतिषाचार्यों ने निर्विवाद रूप से विंशोत्तर दशा-पद्धति को ही फलादेश के लिए स्वीकार किया है।
जन्म कुंण्डली में लग्न और अन्य भाव ग्रहों की स्थिति, उनकी दृष्टियां व संबंध, योग एवं अरिष्ट एक अनुभवी ज्योतिषि के समक्ष जातक के व्यक्तित्व और उसके जौवन में होने वाली मुख्य घटनाओं को उद्घाटित कर देते हैं। ये अच्छी और बुरी घटनाएं संबधित ग्रहों की दशा/अंतर्दशा में साकार होती हैं। दशा/अंतर्दशा के इन परिणामों की तीव्रता को बढ़ाने और घटाने में उस समय ५ की ग्रहस्थिति का भी महत्वपूर्ण योग रहता है, जिसे 'गोचर' कहा जाता है। इसलिए ग्रहों के गोचर को कर्म-फल प्रकाशक दैवी शस्त्र कहना अनुचित न होगा। ग्रह गोचर की महत्ता को प्रतिपादित करने के लिए ही प्रमुख गोचर नियमों को इस पुस्तक में संकलित किया गया है। गोचर में जन्म-चन्द्र को मुख्य धुरि माना गया है। चंद्र मन एवं भावनाओं का प्रतीक है। गोचर के ग्रहों को चन्द्र राशि के सबंध में देखने पर ही शुभ और अशुभ परिणामों का सही ज्ञान हो पाता है। पुस्तक में सूर्य और लगन के सबंध में भी गोचर ग्रहों का विश्लेषण किया गया है। 'गोचर और अष्टकवर्ग' का एक नया अध्याय भी जो़ड़ा गया है।
पुस्तक में दिए गए नियमों की वृहद् पराशर होरा शास्त्र बृहत जातक, सारावली आदि शास्त्रीय ग्रन्थों के सूक्ष्म विश्लेषण के पश्चात् कलमबद्ध किया है। फलदीपिका, काल प्रकाशिका जातक भरणम और यवनजातक में विस्तारपूर्वक गोचर तकनीक दी गई है। इन शास्त्रों के अध्ययन से पुस्तक को उचित दिशानिर्देश मिले हैं।
दैनिक जीवन में सफल प्रयोग के लिए गोचर के सभी शास्त्रीय तत्वों को सरल रूप में पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है। साढ़ेसाती के प्रभावों में मूर्ति-निर्णय की भूमिका दशा- अंतर्दशा का गोचर के संबंध में अध्ययन एक विशेष दिन सप्ताह या माह में ग्रहों के शुभाशुभ परिणामों को जानने के लिए अष्टकवर्ग के प्रयोग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। सर्वतोभाद्र चक्र गोचर-विश्लेषण में अहम स्थान रखता है। इस दुरूह चक्र को बहुत ही सरल तरीके से सुधिपाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। समय निर्धारण एवं मुहूर्त में इस चक्र की महत्ता सर्वविदित है।
आशा है कि पुस्तकीय रूप में यह प्रयास विद्वान पाठकों के गोचर-ज्ञान को एक नया आयाम देगा।
विषय-सूची |
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भूमिका/आमुख |
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1 |
सामान्य परिचय |
1 |
2 |
ग्रह |
9 |
3 |
भाव |
20 |
4 |
राशियां |
25 |
5 |
गोचर |
34 |
6 |
वेध बिन्दू |
39 |
7 |
सूर्य के गोचर परिणाम |
50 |
8 |
चंद्रमा के गोचार प्रभाव |
60 |
9 |
मंगल के गोचार प्रभाव |
69 |
10 |
बुध के गोचर परिणाम |
79 |
11 |
बृहस्पति के गोचर प्रभाव |
88 |
12 |
शुक्र के गोचर परिणाम |
98 |
13 |
शनि के गोचर परिणाम |
109 |
14 |
राहू के गोचर परिणाम |
121 |
15 |
केतु के गोचर परिणाम |
125 |
16 |
मूर्ति निर्णय |
129 |
17 |
शनि की साढ़े साती एवं ढईया |
137 |
18 |
नक्षत्र गोचर |
150 |
19 |
दशा/अन्तर्दशा और गोचर |
177 |
20 |
गोचर और अष्टक वर्ग स |
207 |
21 |
र्वतोभद्रचक्र |
230 |
22 |
उपाय |
286 |