पुस्तक के विषय में
बुद्ध के जीवन में ऐसा क्या था जो उनकी मृत्यु कै 2,500 साल बाद आज भी प्रासंगिक है । हमे इसके बारे में स्वय निर्णय करने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन उसक लिए उनके संबंध में जानना जरूरी है ताकि हम यह निर्णय कर सकें । इसे पुस्तक का उद्देश्य यही हे जिसमे जुद्ध के अपने शब्दों मे उनके जीवन की कथा कही गयी है।
विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन के भूतपूर्व कुलपति, डॉ. एस. भट्टाचार्य इस समय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में इतिहास के प्राध्यापक है लेखक का कहना है '' भारत में इस तरह की पुस्तक नितांत आवश्यक है क्योंकि बुद्ध की पवित्र स्मृति लोगों के मन मे बसी हुई है-तमाम किंवदतियों की साथ चीन ओर जापान की यात्रा करते समय मझे उन दशा में भी इसी तरह आवश्यकता महसूस हुई जहां बोद्ध धर्म का वहां को सांस्कृतिक विरासत पर के अप्रभाव पडा हे । इसके अलावा बात और है कि तेजी से बदलती दुनिया के संबंध में हमारे विचारों और उसके अर्थ को बदल देती है...विशेषता द्वारा और विशेषज्ञो के लिए लिखी गयी अन्य पुस्तको के विपरीत राह पुस्तक मेरी बेटी युवतियों और युवकों को सीधे संबोधित है।'' युवावर्ग को ध्यान में रखकर लिखी गयी यह, हर आयवर्ग के पाठक कै लिए रोचक हो सकती है।
प्रस्तावना
यह सवाल किसी के भी मन में आ सकता है कि बुद्ध के जीवन में ऐसा क्या था जो ढाई हजार साल से भी पहले निर्वाण प्राप्त करने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है? संभव है किं बुद्ध इसके उत्तर में कहते कि हरेक को इसका जवाब स्वयं खोजना चाहिए। लेकिन इसके लिए हमें जानने का अवसर मिलना आवश्यक है ताकि हम यह फैसला कर सकें । खासतौर पर यह मौका युवावर्ग को दिया जाना चाहिए और यही इस पुस्तक का उद्देश्य' है।
यह पुस्तक बौद्ध धर्म के संबंध में नहीं है। यह बुद्ध के बारे में है। इसमें उनके उपदेशों को भी जहां-तहां स्थान मिला है क्योंकि उनका जीवन ही उनका संदेश था । मुख्य लक्ष्य यह रहा है कि बुद्ध को अपने बारे में कही गयी उनकी बातों के संदर्भ में देखा जाए। लोगों के मन में बुद्ध के संबंध में कुछ अवधारणाएं हैं, पर सवाल यह है कि उनमें सच्चाई कितनी है? यह बताना इतिहासकारों का काम है कि अतीत कैसा था और वह लोगों की आम अवधारणाओं से कितना मेल खाता है। पिछले कुछ वर्षों में इतिहासकारों ने बुद्ध और उनके समय के बारे में हमारे विचारों को काफी बदल दिया है । एक और तरह का परिवर्तन भी हुआ है । तेजी से बदलती दुनिया अतीत के संबंध में हमारे विचारों और उन घटनाओं के अर्थ बदल देती है। इसलिए कई पुराने विवरण और व्याख्याएं नए अर्थ ग्रहण कर सकते हैं। बुद्ध ने जो कहा और किया वह हमें और खासतौर पर युवावर्ग को एक नए ढंग से अनुभव हो सकता है।
बुद्ध के बारे में कई कहानियां और किंवदंतियां हैं जिन्हें यहां दोहराया नहीं गया है । एक समय था जब बुद्ध के अनुयायी इन कथाओं को सच मान लेते थे। देखने की बात यह है कि आप किसी कविता में एक तरहका सच पाते हैं, लेकिन आपको दस्तावेजों, समाचारपत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण से अन्य प्रकार के सच की आशा रहती है। बुद्ध की कथाओं और किंवदंतियों में अक्सर पहली तरह का सच मिलता है लेकिन यह पता लगाना कठिन है कि इनमें से कितनी, उतनी ही सच हैं जितनी किसी प्रामाणिक दस्तावेज या उस काल के किसी प्रत्यक्षदर्शी द्वारा कही या लिखी गई और दर्ज की गई जानकारी है। चूंकि इस पुस्तक में हम मुख्यतया बुद्ध द्वारा कही गई बातों को आधार बना रहे हैं, इसलिए उनसे जुड़ी तमाम किंवदंतियां इसमें शामिल नहीं हैं।
प्रश्न यह है कि हमने सिर्फ बुद्ध के वचनों को ही आधार क्यों बनाया और अन्य संभावित सूचना-स्रोतों की उपेक्षा क्यों कर दी? हम बुद्ध की कहानी उन्हीं के शब्दों से खोजने का प्रयास करेंगे । और उसका एक कारण है । बुद्ध ने जो कहा उसे लोगों ने धरोहर माना, याद रखा, उनके शिष्यों ने उसे दोहराया और बाद में उसे लिखा भी । यह सही है कि ज्यादातर विवरण वर्षो बाद लिखे गए और जैसे-जैसे समय बीतता गया उनकी जीवन गाथा में कथाएं और किंवदंतियां जुड़ती रहीं। लेकिन इस बात की संभावना काफी अधिक है कि लिखते समय बुद्ध के शब्दों को ठीक ढंग से रखा गया होगा क्योंकि उनके शब्द श्रोताओं को याद थे; क्योंकि वे बुद्ध को आदर की दृष्टि से देखते थे । यही कारण है कि हमने बुद्ध के जीवन के संबंध में उन्हीं के वचनों को आधार बनाया।
अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए बुद्ध ने इस काल में पूर्वोत्तर भारत में आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा, मगधी और बाद में पालि का इस्तेमाल किया । बौद्ध ग्रंथ भी उसी भाषा में लिखे गए। हम इस पुस्तक में प्राचीनतम सामग्री का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि वह संभवतया मूल के सबसे निकट होगी । पालि भाषा की इस सामग्री के अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध हैं। पुस्तक में इन्हीं अनुवादों का इस्तेमाल किया गया है और जिनकी रुचि इससे ज्यादा जानकारी हासिल करने में हो, वे पुस्तक के अंत में दी गयी पुस्तक-सूची की मदद से अन्य ग्रंथ पढ़ सकते हैं । दुर्भाग्यवश, अनेक अंग्रेजी अनुवादों की भाषा आडम्बरपूर्ण और अस्वाभाविक है । हो सकता है कि ऐसा अनुवादकों द्वारा पूरी बात को आध्यात्मिक रंग देने के प्रयास में हुआ हो। किंतु बुद्ध द्वारा किंग जेम्स काल की 'अंग्रेजी बाइबल' की शैली में अपनी बात कहने या वह भाषा बुलवाने का कोई औचित्य नहीं है । अब तो यहऔचित्य और भी कम हो गया है क्योंकि हाल ही के संस्करणों में पुराने विवरणों को संशोधित कर दिया गया है। यही सरलीकरण बुद्ध के प्रवचनों के अनुवाद में भी लाने की अवश्यकता है।
इस पुस्तक में व्यक्तियों और स्थानों के नाम, भारत के विभिन्न हिस्सों में उस समय के विद्वानों की भाषा, संस्कृत और पालि दोनों में दिए गए हैं। पालि नाम कोष्ठकों में हैं। इन नामों के हिज्जे उसी तरह किए गए हैं जैसे भारत में आमतौर पर किए जाते हैं । जिन किताबों से बुद्ध के उद्धरण लिए गए हैं उनकी एक सूची पुस्तक के अंत में दी गई है ।
विषय-सूची |
||
प्रस्तावना |
7 |
|
1 |
गृहस्थ |
11 |
2 |
बटोही |
18 |
3 |
बुद्ध |
26 |
4 |
निर्वाण |
36 |
5 |
खोज |
41 |
बुद्ध के उपदेशों के स्त्रोत |
49 |
|
बुद्ध के चित्र |
53 |
पुस्तक के विषय में
बुद्ध के जीवन में ऐसा क्या था जो उनकी मृत्यु कै 2,500 साल बाद आज भी प्रासंगिक है । हमे इसके बारे में स्वय निर्णय करने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन उसक लिए उनके संबंध में जानना जरूरी है ताकि हम यह निर्णय कर सकें । इसे पुस्तक का उद्देश्य यही हे जिसमे जुद्ध के अपने शब्दों मे उनके जीवन की कथा कही गयी है।
विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन के भूतपूर्व कुलपति, डॉ. एस. भट्टाचार्य इस समय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में इतिहास के प्राध्यापक है लेखक का कहना है '' भारत में इस तरह की पुस्तक नितांत आवश्यक है क्योंकि बुद्ध की पवित्र स्मृति लोगों के मन मे बसी हुई है-तमाम किंवदतियों की साथ चीन ओर जापान की यात्रा करते समय मझे उन दशा में भी इसी तरह आवश्यकता महसूस हुई जहां बोद्ध धर्म का वहां को सांस्कृतिक विरासत पर के अप्रभाव पडा हे । इसके अलावा बात और है कि तेजी से बदलती दुनिया के संबंध में हमारे विचारों और उसके अर्थ को बदल देती है...विशेषता द्वारा और विशेषज्ञो के लिए लिखी गयी अन्य पुस्तको के विपरीत राह पुस्तक मेरी बेटी युवतियों और युवकों को सीधे संबोधित है।'' युवावर्ग को ध्यान में रखकर लिखी गयी यह, हर आयवर्ग के पाठक कै लिए रोचक हो सकती है।
प्रस्तावना
यह सवाल किसी के भी मन में आ सकता है कि बुद्ध के जीवन में ऐसा क्या था जो ढाई हजार साल से भी पहले निर्वाण प्राप्त करने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है? संभव है किं बुद्ध इसके उत्तर में कहते कि हरेक को इसका जवाब स्वयं खोजना चाहिए। लेकिन इसके लिए हमें जानने का अवसर मिलना आवश्यक है ताकि हम यह फैसला कर सकें । खासतौर पर यह मौका युवावर्ग को दिया जाना चाहिए और यही इस पुस्तक का उद्देश्य' है।
यह पुस्तक बौद्ध धर्म के संबंध में नहीं है। यह बुद्ध के बारे में है। इसमें उनके उपदेशों को भी जहां-तहां स्थान मिला है क्योंकि उनका जीवन ही उनका संदेश था । मुख्य लक्ष्य यह रहा है कि बुद्ध को अपने बारे में कही गयी उनकी बातों के संदर्भ में देखा जाए। लोगों के मन में बुद्ध के संबंध में कुछ अवधारणाएं हैं, पर सवाल यह है कि उनमें सच्चाई कितनी है? यह बताना इतिहासकारों का काम है कि अतीत कैसा था और वह लोगों की आम अवधारणाओं से कितना मेल खाता है। पिछले कुछ वर्षों में इतिहासकारों ने बुद्ध और उनके समय के बारे में हमारे विचारों को काफी बदल दिया है । एक और तरह का परिवर्तन भी हुआ है । तेजी से बदलती दुनिया अतीत के संबंध में हमारे विचारों और उन घटनाओं के अर्थ बदल देती है। इसलिए कई पुराने विवरण और व्याख्याएं नए अर्थ ग्रहण कर सकते हैं। बुद्ध ने जो कहा और किया वह हमें और खासतौर पर युवावर्ग को एक नए ढंग से अनुभव हो सकता है।
बुद्ध के बारे में कई कहानियां और किंवदंतियां हैं जिन्हें यहां दोहराया नहीं गया है । एक समय था जब बुद्ध के अनुयायी इन कथाओं को सच मान लेते थे। देखने की बात यह है कि आप किसी कविता में एक तरहका सच पाते हैं, लेकिन आपको दस्तावेजों, समाचारपत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण से अन्य प्रकार के सच की आशा रहती है। बुद्ध की कथाओं और किंवदंतियों में अक्सर पहली तरह का सच मिलता है लेकिन यह पता लगाना कठिन है कि इनमें से कितनी, उतनी ही सच हैं जितनी किसी प्रामाणिक दस्तावेज या उस काल के किसी प्रत्यक्षदर्शी द्वारा कही या लिखी गई और दर्ज की गई जानकारी है। चूंकि इस पुस्तक में हम मुख्यतया बुद्ध द्वारा कही गई बातों को आधार बना रहे हैं, इसलिए उनसे जुड़ी तमाम किंवदंतियां इसमें शामिल नहीं हैं।
प्रश्न यह है कि हमने सिर्फ बुद्ध के वचनों को ही आधार क्यों बनाया और अन्य संभावित सूचना-स्रोतों की उपेक्षा क्यों कर दी? हम बुद्ध की कहानी उन्हीं के शब्दों से खोजने का प्रयास करेंगे । और उसका एक कारण है । बुद्ध ने जो कहा उसे लोगों ने धरोहर माना, याद रखा, उनके शिष्यों ने उसे दोहराया और बाद में उसे लिखा भी । यह सही है कि ज्यादातर विवरण वर्षो बाद लिखे गए और जैसे-जैसे समय बीतता गया उनकी जीवन गाथा में कथाएं और किंवदंतियां जुड़ती रहीं। लेकिन इस बात की संभावना काफी अधिक है कि लिखते समय बुद्ध के शब्दों को ठीक ढंग से रखा गया होगा क्योंकि उनके शब्द श्रोताओं को याद थे; क्योंकि वे बुद्ध को आदर की दृष्टि से देखते थे । यही कारण है कि हमने बुद्ध के जीवन के संबंध में उन्हीं के वचनों को आधार बनाया।
अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए बुद्ध ने इस काल में पूर्वोत्तर भारत में आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा, मगधी और बाद में पालि का इस्तेमाल किया । बौद्ध ग्रंथ भी उसी भाषा में लिखे गए। हम इस पुस्तक में प्राचीनतम सामग्री का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि वह संभवतया मूल के सबसे निकट होगी । पालि भाषा की इस सामग्री के अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध हैं। पुस्तक में इन्हीं अनुवादों का इस्तेमाल किया गया है और जिनकी रुचि इससे ज्यादा जानकारी हासिल करने में हो, वे पुस्तक के अंत में दी गयी पुस्तक-सूची की मदद से अन्य ग्रंथ पढ़ सकते हैं । दुर्भाग्यवश, अनेक अंग्रेजी अनुवादों की भाषा आडम्बरपूर्ण और अस्वाभाविक है । हो सकता है कि ऐसा अनुवादकों द्वारा पूरी बात को आध्यात्मिक रंग देने के प्रयास में हुआ हो। किंतु बुद्ध द्वारा किंग जेम्स काल की 'अंग्रेजी बाइबल' की शैली में अपनी बात कहने या वह भाषा बुलवाने का कोई औचित्य नहीं है । अब तो यहऔचित्य और भी कम हो गया है क्योंकि हाल ही के संस्करणों में पुराने विवरणों को संशोधित कर दिया गया है। यही सरलीकरण बुद्ध के प्रवचनों के अनुवाद में भी लाने की अवश्यकता है।
इस पुस्तक में व्यक्तियों और स्थानों के नाम, भारत के विभिन्न हिस्सों में उस समय के विद्वानों की भाषा, संस्कृत और पालि दोनों में दिए गए हैं। पालि नाम कोष्ठकों में हैं। इन नामों के हिज्जे उसी तरह किए गए हैं जैसे भारत में आमतौर पर किए जाते हैं । जिन किताबों से बुद्ध के उद्धरण लिए गए हैं उनकी एक सूची पुस्तक के अंत में दी गई है ।
विषय-सूची |
||
प्रस्तावना |
7 |
|
1 |
गृहस्थ |
11 |
2 |
बटोही |
18 |
3 |
बुद्ध |
26 |
4 |
निर्वाण |
36 |
5 |
खोज |
41 |
बुद्ध के उपदेशों के स्त्रोत |
49 |
|
बुद्ध के चित्र |
53 |