पुस्तक के बारे में
उड़ीसा के कंध आदिवासी कवि भीमा भोई (1855-84) एक बड़े संत और स्वप्नद्रष्टा थे । वे महिमा या अदनेखा सम्प्रदाय के आख्याता थे । उन्होंने धर्म के दार्शनिक और तात्त्विक विचारों को सरल गीतमय ओड़िया कविता में गूँथा । उनके ‘भजन और बोलियाँ’असंख्य लोगों द्वारा करताल और खंजरी की ध्वनि पर उड़ीसा के गाँव-गाँव में गायी जाती हैं ।
विषम द्वंद्वात्मक संकल्पनाओं और स्थिति के कारण भीमा के काव्य में बिम्ब और रूपकों में वैचित्र्यपूर्ण मार्मिक चित्रांकन हुआ है । अनजान पदचाप से मजबूत धरती कंपित हो जाती है, तरु पुष्पित होते हैं लेकिन उनकी छाया नहीं होती । फूलों में रंग ही नहीं, विष भी होता है, नदियाँ आप्लावित होती हैं मगर उद्वेलित नहीं होतीं, आकाश में उल्कापात होता है, जलविहीन समुद्र होते हैं और सुनाई न देनेवाली संगीत की ध्वनि पर नृत्य होता है । आत्मरूपी विचित्र सुन्दर मधु-मक्खियाँ आत्म-सिद्धि का अमृतपान करती है और इस प्रकार भाषा ऐसे स्तर पर पहुँच जाती है जंहाँ किसी प्रकार के अलंकार, लय, न्यास और अनुप्रास मात्रा अनावश्यक होते है ।
लोक मुहावरों और लोकभाषा के समुचित तालमेल से भीमा की भाषा जन-साधारण की भाषा बनी जो भावातिरेक से स्पन्दित है । इसमें विनय, दैन्य समर्पण, रोष, अमर्ष और नैतिक अभिकथन निहित हैं।
सीताकांत महापात्र भारतीय काव्य जगत के सुपरिचित कवि और आलोचक हैं। अपनी रचनाओं के लिए इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।1974 में इन्हें ओड़िया की महत्त्वपूर्ण काव्य-कृति के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल चुका है । प्रस्तुत विनिबंध में उन्होंने भीमा भोई के अल्पज्ञात जीवन की रूपरेखा को अंकित कर उनकी कविता का समुचित मूल्यांकन किया है । उनका यह प्रयास ओड़िया न जाननेवाले पाठकों के लिए भी विशेष महत्त्वपूर्ण है।
विषय सूची
पृं.सं.
1
अल्प-ज्ञात जीवन की रूपरेखा
7
2
महिमा धर्म और भीमा भोई -रक्त पंरपरा
22
3
स्तुति चिंतामणि और भजन माला
30
4
अन्य रचनाएँ
40
5
मूल्यांकन
44
6
कविताओं से चयन
51
ग्रन्थ सूची
75
8
शब्दावली
78
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