प्राक्कथन
त्वरितनिहतकंसं योगिहृद्याब्जहंसं
यदुकुमुदसुचन्द्रं रक्षणे त्यकतन्द्रमू ।
श्रुतिजलनिधिसारं निर्गुण निर्विकार
हृदय भज मुकुन्दं नित्यमानन्दकन्दम् ।।
भक्तराज नरसिंहरामजीने अपने एक भजनमें कहा है कि भ्रष्ट होकर इधर उधर भटकनेवाले मनका निग्रह करनेके लिये सत्संग एक प्रबल साधन है । परंतु वर्तमान युगमें ऐसे कल्याणकारी सत्संगका प्राप्त होना सम्भवत कुछ कठिन है । इसलिये इसकी पूर्ति बहुत अंशोंमें प्राचीन महापुरुषोंके पवित्र जीवन चरित्रसे की जा सकती है । इस बातको दृष्टिमें रखकर हमने गुजरातके भक्तशिरोमणि नरसिंह मेहताका चरित्र चित्रण करनेका प्रयास किया है ।
परंतु हमें भय है कि बीसवीं शताब्दीके तथाकथित सभ्य और उन्नत समाजको, जो विधि निषेधके बन्धनोंको शिथिल करके व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य प्राप्त करना ही परम पुरुषार्थ समझता है तथा ईश्वर और धर्मको मूर्खलोगोंको फँसा रखनेके लिये की गयी कल्पना मानकर इनको संसारसे सदाके लिये उठा देना चाहता है, यह प्राय ४०० वर्ष पहलेके एक भक्तका जीवन चरित्र अप्रासंगिक ही प्रतीत होगा । इतना ही नहीं, उसकी दृष्टिमें इस चरित्रकी तमाम घटनाएँ निरर्थक कपोल कल्पित और अविश्वसनीय मालूम होंगी । वह इस चरित्रको समाजके लिये अत्यन्त अनिष्टकारी समझेगा । परंतु हम नम्रतापूर्वक उस समाजसे निवेदन करना चाहते हैं कि जिस स्वातन्त्र्यको वह वरेण्य समझता है, जिस बुद्धिके बलपर वह ईश्वर और धर्मको तिलांजलि देना चाहता है, वह स्वतन्त्रता और बुद्धि दोनों ही उसे धोखा दे रहे हैं । जिस स्वतन्त्रताको उसने लक्ष्य बनाया है, वह वास्तवमें स्वतन्त्रता नहीं, उन्छृंखलता है और उच्छृंखलता पतनकी ओर ही ले जाती है हमें दिन पर दिन पराधीनतामें ही जकड़ती जाती है । भौतिक बुद्धि भी उसीकी सहचरी है और वही मोहान्धकारसे ढकी रहनेके कारण पतनका कारण बनती है । सच्ची स्वतन्त्रता और कल्याणकारी बुद्धि धर्ममय जीवन बिताने तथा भगवत्कृपा प्राप्त करनेपर ही मनुष्यको मिलती है । अवश्य ही हमारे दुर्भाग्यसे आज धर्मानुरागी जनतामें भी मिथ्याचारका प्रसार कम नहीं है और यही दूसरे पक्षके अविश्वासका एक जबर्दस्त कारण बन गया है । परंतु इसके लिये किसीको दोष नहीं दिया जा सकता । प्रत्येक काल, देश और समाजमें पतनावस्थामें ऐसा मिथ्याचार फैला हुआ देखा गया है और इस परिस्थितिसे निकालकर संसारको वास्तविक कल्याणमार्ग दिखानेके लिये ही समय समयपर प्रतिभाशाली सत्पुरुषोंका अवतार होता है । वे महापुरुष हमारे बीच रहकर अपने आदर्श जीवन तथा स्वानुभवपूर्ण अमूल्य उपदेशोंसे सर्वसाधारणको उन्नतिका मार्ग दिखाते हैं । उनके जीवनको हमारी स्थूल बुद्धिके द्वारा तौला नहीं जा सकता । उनके पवित्र जीवनका यथाशक्ति अनुकरण करना ही हमारे लिये सौभाग्यका विषय है ।
भक्तराज नरसिंहरामका जीवन अलौकिक बातोंसे भरा हुआ है । यद्यपि हमारी तुच्छ बुद्धिके लिये सारी बातोंका रहस्य समझना और उनपर विश्वास करना कठिन है, फिर भी वे बातें हमारे अन्दर एक विचित्र आशाका संचार कर सकती हैं, जिसका प्रकाश हमें कल्याणमार्गपर अग्रसर होनेमें पर्याप्त सहायक हो सकता है ।
यद्यपि भक्तराजकी अनेक जीवनियाँ उनकी मातृभाषा प्रकाशित हुई हैं परंतु उनमेंसे कोई भी अभीतक भाषा, साहित्य और इतिहासकी दृष्टिसे सर्वमान्य नहीं हो सकी है । इतना ही नहीं, प्रत्युत उनके जन्मादिका संवत् भी आजपर्यन्त विवादाग्रस्त है । ऐसी स्थितिमें यह कहना तो कठिन है कि यह चरित्र सब दृष्टियोंसे सर्वमान्य और प्रामाणिक हो सकता है । फिर जहाँतक सम्भव था, इसे लिखनेमें हमने स्वयं भक्तराजरचित पदोंसे ही अधिक सहायता ली है । अवश्य ही कोई सच्चा विस्तृत इतिहास न मिलनेके कारण समस्त घटनाओंको शृंखलाबद्ध तथा रोचक बनानेके लिये हमें कहीं कहीं कल्पनाका सहारा लेना पड़ा है । खैर जो कुछ है पाठकोंके सामने है । इतना तो कहना ही होगा कि इसके अन्दर यदि कोई मधुर, सरस और उपदेशपूर्ण बात आयी हो तो वह उन भक्तराजकी ही होगी और इसमें जो त्रुटियों हैं वे तो हमारी हैं ही ।
इस पुस्तकके आद्योपान्त संशोधनमें और भाषासुधारमें कल्याणकार्यालयके पं० चन्द्रदीपजी त्रिपाठीने हमारी बड़ी भारी सहायता की है इसके लिये हम उनके कृतज्ञ हैं ।
विषय सूची |
||
1 |
महात्माकी कृपा |
9 |
2 |
कुटुम्बविस्तार |
13 |
3 |
शिवका अनुग्रह |
19 |
4 |
रासदर्शन |
25 |
5 |
अनन्याश्रय |
32 |
6 |
कुँवरबाईका दहेज |
42 |
7 |
पुत्रकी सगाई |
50 |
8 |
शामलदासका विवाह |
59 |
9 |
पुत्रकी मृत्यु |
66 |
10 |
पिताका श्राद्ध |
68 |
11 |
भजनका प्रभाव |
80 |
12 |
शामलशाहपर हुण्डी |
90 |
13 |
कुँवरबाईका संसार चित्र |
98 |
14 |
भक्तसुताका सीमन्त |
104 |
15 |
द्वेषका प्रतीकार |
112 |
16 |
भक्तराजकी कसौटी |
121 |
17 |
भक्तराज दरबारमें |
124 |
18 |
हार प्रदान |
132 |
19 |
भक्त और भगवान् |
138 |
20 |
अन्तिम अवस्था |
143 |
21 |
नरसीजीके कुछ भजन |
145 |
प्राक्कथन
त्वरितनिहतकंसं योगिहृद्याब्जहंसं
यदुकुमुदसुचन्द्रं रक्षणे त्यकतन्द्रमू ।
श्रुतिजलनिधिसारं निर्गुण निर्विकार
हृदय भज मुकुन्दं नित्यमानन्दकन्दम् ।।
भक्तराज नरसिंहरामजीने अपने एक भजनमें कहा है कि भ्रष्ट होकर इधर उधर भटकनेवाले मनका निग्रह करनेके लिये सत्संग एक प्रबल साधन है । परंतु वर्तमान युगमें ऐसे कल्याणकारी सत्संगका प्राप्त होना सम्भवत कुछ कठिन है । इसलिये इसकी पूर्ति बहुत अंशोंमें प्राचीन महापुरुषोंके पवित्र जीवन चरित्रसे की जा सकती है । इस बातको दृष्टिमें रखकर हमने गुजरातके भक्तशिरोमणि नरसिंह मेहताका चरित्र चित्रण करनेका प्रयास किया है ।
परंतु हमें भय है कि बीसवीं शताब्दीके तथाकथित सभ्य और उन्नत समाजको, जो विधि निषेधके बन्धनोंको शिथिल करके व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य प्राप्त करना ही परम पुरुषार्थ समझता है तथा ईश्वर और धर्मको मूर्खलोगोंको फँसा रखनेके लिये की गयी कल्पना मानकर इनको संसारसे सदाके लिये उठा देना चाहता है, यह प्राय ४०० वर्ष पहलेके एक भक्तका जीवन चरित्र अप्रासंगिक ही प्रतीत होगा । इतना ही नहीं, उसकी दृष्टिमें इस चरित्रकी तमाम घटनाएँ निरर्थक कपोल कल्पित और अविश्वसनीय मालूम होंगी । वह इस चरित्रको समाजके लिये अत्यन्त अनिष्टकारी समझेगा । परंतु हम नम्रतापूर्वक उस समाजसे निवेदन करना चाहते हैं कि जिस स्वातन्त्र्यको वह वरेण्य समझता है, जिस बुद्धिके बलपर वह ईश्वर और धर्मको तिलांजलि देना चाहता है, वह स्वतन्त्रता और बुद्धि दोनों ही उसे धोखा दे रहे हैं । जिस स्वतन्त्रताको उसने लक्ष्य बनाया है, वह वास्तवमें स्वतन्त्रता नहीं, उन्छृंखलता है और उच्छृंखलता पतनकी ओर ही ले जाती है हमें दिन पर दिन पराधीनतामें ही जकड़ती जाती है । भौतिक बुद्धि भी उसीकी सहचरी है और वही मोहान्धकारसे ढकी रहनेके कारण पतनका कारण बनती है । सच्ची स्वतन्त्रता और कल्याणकारी बुद्धि धर्ममय जीवन बिताने तथा भगवत्कृपा प्राप्त करनेपर ही मनुष्यको मिलती है । अवश्य ही हमारे दुर्भाग्यसे आज धर्मानुरागी जनतामें भी मिथ्याचारका प्रसार कम नहीं है और यही दूसरे पक्षके अविश्वासका एक जबर्दस्त कारण बन गया है । परंतु इसके लिये किसीको दोष नहीं दिया जा सकता । प्रत्येक काल, देश और समाजमें पतनावस्थामें ऐसा मिथ्याचार फैला हुआ देखा गया है और इस परिस्थितिसे निकालकर संसारको वास्तविक कल्याणमार्ग दिखानेके लिये ही समय समयपर प्रतिभाशाली सत्पुरुषोंका अवतार होता है । वे महापुरुष हमारे बीच रहकर अपने आदर्श जीवन तथा स्वानुभवपूर्ण अमूल्य उपदेशोंसे सर्वसाधारणको उन्नतिका मार्ग दिखाते हैं । उनके जीवनको हमारी स्थूल बुद्धिके द्वारा तौला नहीं जा सकता । उनके पवित्र जीवनका यथाशक्ति अनुकरण करना ही हमारे लिये सौभाग्यका विषय है ।
भक्तराज नरसिंहरामका जीवन अलौकिक बातोंसे भरा हुआ है । यद्यपि हमारी तुच्छ बुद्धिके लिये सारी बातोंका रहस्य समझना और उनपर विश्वास करना कठिन है, फिर भी वे बातें हमारे अन्दर एक विचित्र आशाका संचार कर सकती हैं, जिसका प्रकाश हमें कल्याणमार्गपर अग्रसर होनेमें पर्याप्त सहायक हो सकता है ।
यद्यपि भक्तराजकी अनेक जीवनियाँ उनकी मातृभाषा प्रकाशित हुई हैं परंतु उनमेंसे कोई भी अभीतक भाषा, साहित्य और इतिहासकी दृष्टिसे सर्वमान्य नहीं हो सकी है । इतना ही नहीं, प्रत्युत उनके जन्मादिका संवत् भी आजपर्यन्त विवादाग्रस्त है । ऐसी स्थितिमें यह कहना तो कठिन है कि यह चरित्र सब दृष्टियोंसे सर्वमान्य और प्रामाणिक हो सकता है । फिर जहाँतक सम्भव था, इसे लिखनेमें हमने स्वयं भक्तराजरचित पदोंसे ही अधिक सहायता ली है । अवश्य ही कोई सच्चा विस्तृत इतिहास न मिलनेके कारण समस्त घटनाओंको शृंखलाबद्ध तथा रोचक बनानेके लिये हमें कहीं कहीं कल्पनाका सहारा लेना पड़ा है । खैर जो कुछ है पाठकोंके सामने है । इतना तो कहना ही होगा कि इसके अन्दर यदि कोई मधुर, सरस और उपदेशपूर्ण बात आयी हो तो वह उन भक्तराजकी ही होगी और इसमें जो त्रुटियों हैं वे तो हमारी हैं ही ।
इस पुस्तकके आद्योपान्त संशोधनमें और भाषासुधारमें कल्याणकार्यालयके पं० चन्द्रदीपजी त्रिपाठीने हमारी बड़ी भारी सहायता की है इसके लिये हम उनके कृतज्ञ हैं ।
विषय सूची |
||
1 |
महात्माकी कृपा |
9 |
2 |
कुटुम्बविस्तार |
13 |
3 |
शिवका अनुग्रह |
19 |
4 |
रासदर्शन |
25 |
5 |
अनन्याश्रय |
32 |
6 |
कुँवरबाईका दहेज |
42 |
7 |
पुत्रकी सगाई |
50 |
8 |
शामलदासका विवाह |
59 |
9 |
पुत्रकी मृत्यु |
66 |
10 |
पिताका श्राद्ध |
68 |
11 |
भजनका प्रभाव |
80 |
12 |
शामलशाहपर हुण्डी |
90 |
13 |
कुँवरबाईका संसार चित्र |
98 |
14 |
भक्तसुताका सीमन्त |
104 |
15 |
द्वेषका प्रतीकार |
112 |
16 |
भक्तराजकी कसौटी |
121 |
17 |
भक्तराज दरबारमें |
124 |
18 |
हार प्रदान |
132 |
19 |
भक्त और भगवान् |
138 |
20 |
अन्तिम अवस्था |
143 |
21 |
नरसीजीके कुछ भजन |
145 |