प्रकाशक का वक्तव्य
भारत की एकता के यह की आहुति के रूप में, हमने भारतीय भाषाओं को सरलता पूर्वक सिखाने की, जो पुस्तक-माला प्रकाशित करते आ रहे है, वह न केवल किसी एक क्षेत्रीय या जातीय भाषा के मोह के कारण, बल्कि भाषाओं के बीच जो वैमनस्क की भावना बढ़ती जा रही है, उसे दूर करने के लिए हैं। साथ ही जन जन के मन मन में प्रेम का आलोक जगाने के लिए है। जिस में दक्षिण, उत्तर आदि दिशा भेद; आर्य, अनार्य, द्रविड़ आदि नस भेद; ब्राहम्ण, अब्राहाम्ण, शूद्र आदि जाति भेद आदि विषम भेद-विभेद नष्ठ हो जाए। सब के हृदय में यह भावना पैदा हो जाए कि हम सब के सब भारत माता के सुपुत्र है, भारतीय है।
प्रेम की भावना तभी अपना स्वरूप धारण कर सकती हैं जब मन शुद्ध हो जाता है। घृणा, द्वेष आदि ऐसी गन्दगियाँ है, जिस से मन कलुषित हो जाता है। कलुषित मन में स्वार्थ की भावना अंकुरित होता हैं। स्वार्थ में अपना-पराय की पुष्ठी होती है, जिस से मानव समाज दलित हो जाता है, जिस में अशान्ति ही अशान्ति छायी रहती है।
जब अन्य भाषाओं का अध्ययन करने लगते है, तब उस भाषा के बोलने वालों के रहन-गहन, व्यवहार, कलाचार धर्म आदि पर ध्यान जाता है, जिस से उन लोगों पर एक तरह का मोह पैदा हो जाता है, इस में प्रेम सरल हो उठता है। यो जितनी भाषाएँ सीखते जाएँगे उतनी ही जाति के लोगों पर प्रेम का पसार होता जाएगा। इस प्रेम-पसार में ही सच्ची मानवता चमक उठती है । ऐसी सांची मानवता में ढले मानवों में एकता की दृढ भावना क्यो पुष्ट न होगी? उन से शाशित राष्ट्र में राम-राज्य का आलोक क्यों न होगा? उस राष्ट्र की जनता में सुख-सम्पदा की गंगा क्यो न बहेगी?
अत: भारत की एकात्मता के लिए बहु भाषाज्ञान की बड़ी आवश्यकता हैं। लोग भी अब यह अनुभव करने लगे है कि अन्य प्रान्तों में नौकरी पाने के लिए, अन्य नगरों में व्यापारिक केन्द्र की स्थापना कर सफलता पूर्वक व्यापार चलाने के लिए, निस्संकोच भारत भर की यात्रा करने के लिए, धार्मिक व सामाजिक सम्मेलनों में अपना विचार प्रकट करने के लिए और मैत्री की भावना स्थापित करने के लिए बहुभाषा ज्ञान आवश्यक है।
यह भारत का दुर्भाग्य समझे था सौभाग्य, यहाँ पाश्वात्य देशों के जैसे बहुभाषा पुस्तके प्रकाशित करने वाली संस्थाएँ नहीं के बराबर है। अत: स्वबोधिनियाँ, तुलनात्मक व्याकरण या द्विभाषा व्याकरण, द्विभाषा अथवा बहुभाषा कोश आदि मिलते ही नहीं और सामान्य स्तर के लोगों के पढने के लायक पुस्तके तो लिखी ही नहीं जाती।लोगों मे अन्य भाषाएँ सीजने की रूची नहीं है, यो तो नहीं कर सकते। साधन के अगद में उनन ध्यान उसकी ओर नहीं जाता, अत: हमने निश्चय किया कि कम से कम सामान्य लोगों के स्तरीय गुप्तके तो उपलब्ध करवावें। अनेक कठिनायियों के बीच हमारे बालाजी पब्लिकेशन विविध भाषाओं को सीखने की पुस्तके प्रकाशित करता आ रहा है। अब तक हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड, मलयालम, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बंगला, ओड़िया इत्यादि सीखने की बारह बारह भाषाओं की पुस्तके भाषा-प्रेमियों के सामने रख सकें है।
यह 30 दिन में कन्नड भाषा '' हिन्दी के माध्यम भाषा सीखने का यह पांचवा पुष्य है, जिसे हिन्दी भाषा-भाषी लोगों के कर कमलों में समर्पित करने में हर्ष प्रकट करते है। विश्वास है कि पाठकगण अघिक से अधिक भाषाएँ सीख कर हमारे इस महा यह को सफल बनाएँगे, जिस से राष्ट्रीय एकात्मता सुगम हो।
लेखक की ओर से
प्रत्येक मनुष्य अपनी मातृभाषा को सर्व श्रेष्ठ मानने में गर्व करता है। यह सच भी हैं कि प्रत्येक भाषा जो साहित्यिक हो या बोली हो, उस में एक अनूठापन है, एक मिठास हैं। अत: कन्नड भावी अपनी कन्नड को कस्तूरी कहते है।
कन्नड द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषाओं में एक है। शिलालेखन के इतिहास के अनुसार कन्नड तमिल से भी पुरानी मानी जाती हैं उसका प्राचीन साहित्य महान भक्त कवियों के अमृत वाणी से सिचित हो सरस उठा है, जिस का रसपान कर लोग आज भी अनन्त आनन्द का अनुभव करते है।
कन्नड एक द्रविड़ भाषा होने पर भी संस्कृत भाषा तथा साहित्य से अधिक प्रभावित हुई है। उसके प्रारंभिक विकास सकत के संगम में ही हुआ है।
कन्नड एवं तेलगु की लिपियों में अधिक अन्तर नहीं है। स्वरों एक् व्यंजनों के स्वरूप वही है पर स्वर चिन्हों में ही अन्तर है। बालाजी पब्लिकेशन की नीति व पद्दती के अनुसार ''30 दिन में कन्नड भाषा '' को लिखा गया है । इस में कन्नड के असरो, शब्दों व वाक्यों के नीचे हिन्दी उच्चारण तथा उसके सामने अर्थ दिया गया है । कन्नड में हल ए तथा ओ का प्रयोग है, पर हिन्दी में तो नही है । अत: पाठक गण कन्नड के ए तथा ओ पर ध्यान रख कर उच्चारण करें। इस में कुल पांच भाग है ।
पहला भाग - इस में असर ज्ञान कराया गया है। कन्नड के स्वर, व्यंजन, बारहखडी, जोडी अक्षर इत्यादि समझाये गये है। कन्नड के अक्षरों को कहाँ से शुरु कर कैसे लिखना चाहिए, इस का ज्ञान दिकने के लिए इस भाग को शुरु करने के पहले ही अक्षरों के बीच सफेद रेखाए खिचवाकर समझाया गया है।
दूसरा भाग - इस में शब्द दिये गये है। परिवार, घर, शरीर के अंग, फल, पशु आदि शीर्षकों के अन्तर्गत उच्चारण एवं अर्थ के साथ शब्द दिये गये है।
तीसरा भाग - इस में बोलचाल में आने वाले अनेक सरल वाक्य दिये गये है। इस के अलावा धर, बाजार, दूकान में बोले जाने वाले वाक्य बातचीत के रुप में दिये गये है। पाठक गण इस का अध्ययन वाक्य रचना पर ध्यान देते हुए करे, पर व्याकरण की चिन्ता न करें।
चौथा भाग-इस में कन्नड के व्याकरण का सारांश दिया गया है । विभक्ति, लिंग, वचन, बिनेका, किया, काल आदि का परिचय देकर उदाहरण भी दिये गये है।
पांचवा भाग-इस में उच्चारण नहीं दिये गये है । इस में कुछ उपयोगी पाठ दिये गये है, जैसे पत्र लेखन, हमारा देश इत्यादि। आखिर में कुछ शब्द दिये गये है। हमारा विश्वास है कि हिन्दी भाषी इस पुस्तक का अध्ययन कर लाभान्वित होंगे।
विषय-सूची |
||
1 |
सीखने का तरीका |
12 |
2 |
कैसे लिखना चाहिए -स्वर |
15 |
3 |
कैसे लिखना चाहिए - व्यंजन |
16 |
4 |
पहला भाग (अक्षरमाला) स्वर |
17 |
5 |
व्यजंन |
18 |
6 |
स्वर-चिह्न |
19 |
7 |
सस्वर व्यञ्जन |
21 |
8 |
संयुक्ताक्षर |
28 |
9 |
संयुक्ताक्षर– अर्थ के साथ |
31 |
10 |
दूसरा भाग (विभिन्न पद) |
|
11 |
क्रियापद |
33 |
12 |
संज्ञा |
38 |
13 |
सर्वनाम |
42 |
14 |
शरीर के भाग |
43 |
15 |
प्रदेश |
47 |
16 |
समय |
51 |
17 |
हफ्ते के दिन |
53 |
18 |
मौसम |
54 |
19 |
चान्द्रमान के महीने |
56 |
20 |
सौरमान के महीने |
58 |
21 |
दिशाएँ |
60 |
22 |
घर |
62 |
23 |
परिवार |
66 |
24 |
भावनाएँ |
78 |
25 |
खाने की चीज़े |
76 |
26 |
तरकारियाँ |
80 |
27 |
फल |
81 |
28 |
जानवर |
83 |
29 |
पक्षी |
87 |
30 |
क्रिमि-कींट |
89 |
31 |
शिक्षिण-सम्बन्धी |
90 |
32 |
डाक-संबन्धी |
94 |
33 |
दस्तकारी |
98 |
34 |
पेशावर |
102 |
35 |
नाप |
105 |
36 |
रंग |
107 |
37 |
खनिज |
109 |
38 |
संख्याएँ |
111 |
39 |
तीसरा भाग (वाक्य) दो पद के वाक्य |
124 |
40 |
तीन पद के वाक्य |
125 |
41 |
क्रियाएँ |
128 |
42 |
प्रश्रार्थक वाक्य |
133 |
43 |
प्रेरणार्थक वाक्य |
136 |
44 |
घर के बारे में |
139 |
45 |
बाजार में |
142 |
46 |
फल की दूकान में |
145 |
47 |
बातचीत |
148 |
48 |
चौथा भाग (व्याकरण) विभक्तियाँ |
153 |
49 |
सर्वनाम शब्द (सिभत्तियों में) |
166 |
50 |
'तावु' (आप) शब्दका प्रयोग |
171 |
51 |
लिंङ |
173 |
52 |
वचन |
175 |
53 |
विशेषण |
177 |
54 |
क्रियायें और काल-वर्तमानकाल |
178 |
55 |
भूतकाल |
179 |
56 |
भविष्यत् काल |
181 |
57 |
कुछ धातुएँ |
183 |
58 |
निषेध वाचक |
185 |
59 |
'अवनु ', ' आता ' (वाला) शब्द प्रयोग |
187 |
60 |
'इसु', 'बहदु', 'यानु' शब्दों का प्रयोग |
188 |
61 |
कर्तृवाचक और कर्मवाचक |
189 |
62 |
कियाएँ और उन के वाक्यस्वरूप |
190 |
63 |
हित वाक्य |
191 |
64 |
कुछ छोटे वाक्य |
193 |
65 |
कुछ बडे वाक्य |
195 |
66 |
कुछ मुख्य शब्द |
197 |
67 |
नमूने के वाक्य |
200 |
68 |
पांचवाँ भाग (अभ्यास) |
|
69 |
पत्र लेखन |
201 |
70 |
निबन्ध:हाथी |
203 |
71 |
गाँव जहाँ मैं रहता है |
204 |
72 |
बेंगलूर |
206 |
73 |
हमारा देश |
208 |
74 |
कुछ शब्द |
212 |
75 |
राष्ट्र गान |
223 |
प्रकाशक का वक्तव्य
भारत की एकता के यह की आहुति के रूप में, हमने भारतीय भाषाओं को सरलता पूर्वक सिखाने की, जो पुस्तक-माला प्रकाशित करते आ रहे है, वह न केवल किसी एक क्षेत्रीय या जातीय भाषा के मोह के कारण, बल्कि भाषाओं के बीच जो वैमनस्क की भावना बढ़ती जा रही है, उसे दूर करने के लिए हैं। साथ ही जन जन के मन मन में प्रेम का आलोक जगाने के लिए है। जिस में दक्षिण, उत्तर आदि दिशा भेद; आर्य, अनार्य, द्रविड़ आदि नस भेद; ब्राहम्ण, अब्राहाम्ण, शूद्र आदि जाति भेद आदि विषम भेद-विभेद नष्ठ हो जाए। सब के हृदय में यह भावना पैदा हो जाए कि हम सब के सब भारत माता के सुपुत्र है, भारतीय है।
प्रेम की भावना तभी अपना स्वरूप धारण कर सकती हैं जब मन शुद्ध हो जाता है। घृणा, द्वेष आदि ऐसी गन्दगियाँ है, जिस से मन कलुषित हो जाता है। कलुषित मन में स्वार्थ की भावना अंकुरित होता हैं। स्वार्थ में अपना-पराय की पुष्ठी होती है, जिस से मानव समाज दलित हो जाता है, जिस में अशान्ति ही अशान्ति छायी रहती है।
जब अन्य भाषाओं का अध्ययन करने लगते है, तब उस भाषा के बोलने वालों के रहन-गहन, व्यवहार, कलाचार धर्म आदि पर ध्यान जाता है, जिस से उन लोगों पर एक तरह का मोह पैदा हो जाता है, इस में प्रेम सरल हो उठता है। यो जितनी भाषाएँ सीखते जाएँगे उतनी ही जाति के लोगों पर प्रेम का पसार होता जाएगा। इस प्रेम-पसार में ही सच्ची मानवता चमक उठती है । ऐसी सांची मानवता में ढले मानवों में एकता की दृढ भावना क्यो पुष्ट न होगी? उन से शाशित राष्ट्र में राम-राज्य का आलोक क्यों न होगा? उस राष्ट्र की जनता में सुख-सम्पदा की गंगा क्यो न बहेगी?
अत: भारत की एकात्मता के लिए बहु भाषाज्ञान की बड़ी आवश्यकता हैं। लोग भी अब यह अनुभव करने लगे है कि अन्य प्रान्तों में नौकरी पाने के लिए, अन्य नगरों में व्यापारिक केन्द्र की स्थापना कर सफलता पूर्वक व्यापार चलाने के लिए, निस्संकोच भारत भर की यात्रा करने के लिए, धार्मिक व सामाजिक सम्मेलनों में अपना विचार प्रकट करने के लिए और मैत्री की भावना स्थापित करने के लिए बहुभाषा ज्ञान आवश्यक है।
यह भारत का दुर्भाग्य समझे था सौभाग्य, यहाँ पाश्वात्य देशों के जैसे बहुभाषा पुस्तके प्रकाशित करने वाली संस्थाएँ नहीं के बराबर है। अत: स्वबोधिनियाँ, तुलनात्मक व्याकरण या द्विभाषा व्याकरण, द्विभाषा अथवा बहुभाषा कोश आदि मिलते ही नहीं और सामान्य स्तर के लोगों के पढने के लायक पुस्तके तो लिखी ही नहीं जाती।लोगों मे अन्य भाषाएँ सीजने की रूची नहीं है, यो तो नहीं कर सकते। साधन के अगद में उनन ध्यान उसकी ओर नहीं जाता, अत: हमने निश्चय किया कि कम से कम सामान्य लोगों के स्तरीय गुप्तके तो उपलब्ध करवावें। अनेक कठिनायियों के बीच हमारे बालाजी पब्लिकेशन विविध भाषाओं को सीखने की पुस्तके प्रकाशित करता आ रहा है। अब तक हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड, मलयालम, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बंगला, ओड़िया इत्यादि सीखने की बारह बारह भाषाओं की पुस्तके भाषा-प्रेमियों के सामने रख सकें है।
यह 30 दिन में कन्नड भाषा '' हिन्दी के माध्यम भाषा सीखने का यह पांचवा पुष्य है, जिसे हिन्दी भाषा-भाषी लोगों के कर कमलों में समर्पित करने में हर्ष प्रकट करते है। विश्वास है कि पाठकगण अघिक से अधिक भाषाएँ सीख कर हमारे इस महा यह को सफल बनाएँगे, जिस से राष्ट्रीय एकात्मता सुगम हो।
लेखक की ओर से
प्रत्येक मनुष्य अपनी मातृभाषा को सर्व श्रेष्ठ मानने में गर्व करता है। यह सच भी हैं कि प्रत्येक भाषा जो साहित्यिक हो या बोली हो, उस में एक अनूठापन है, एक मिठास हैं। अत: कन्नड भावी अपनी कन्नड को कस्तूरी कहते है।
कन्नड द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषाओं में एक है। शिलालेखन के इतिहास के अनुसार कन्नड तमिल से भी पुरानी मानी जाती हैं उसका प्राचीन साहित्य महान भक्त कवियों के अमृत वाणी से सिचित हो सरस उठा है, जिस का रसपान कर लोग आज भी अनन्त आनन्द का अनुभव करते है।
कन्नड एक द्रविड़ भाषा होने पर भी संस्कृत भाषा तथा साहित्य से अधिक प्रभावित हुई है। उसके प्रारंभिक विकास सकत के संगम में ही हुआ है।
कन्नड एवं तेलगु की लिपियों में अधिक अन्तर नहीं है। स्वरों एक् व्यंजनों के स्वरूप वही है पर स्वर चिन्हों में ही अन्तर है। बालाजी पब्लिकेशन की नीति व पद्दती के अनुसार ''30 दिन में कन्नड भाषा '' को लिखा गया है । इस में कन्नड के असरो, शब्दों व वाक्यों के नीचे हिन्दी उच्चारण तथा उसके सामने अर्थ दिया गया है । कन्नड में हल ए तथा ओ का प्रयोग है, पर हिन्दी में तो नही है । अत: पाठक गण कन्नड के ए तथा ओ पर ध्यान रख कर उच्चारण करें। इस में कुल पांच भाग है ।
पहला भाग - इस में असर ज्ञान कराया गया है। कन्नड के स्वर, व्यंजन, बारहखडी, जोडी अक्षर इत्यादि समझाये गये है। कन्नड के अक्षरों को कहाँ से शुरु कर कैसे लिखना चाहिए, इस का ज्ञान दिकने के लिए इस भाग को शुरु करने के पहले ही अक्षरों के बीच सफेद रेखाए खिचवाकर समझाया गया है।
दूसरा भाग - इस में शब्द दिये गये है। परिवार, घर, शरीर के अंग, फल, पशु आदि शीर्षकों के अन्तर्गत उच्चारण एवं अर्थ के साथ शब्द दिये गये है।
तीसरा भाग - इस में बोलचाल में आने वाले अनेक सरल वाक्य दिये गये है। इस के अलावा धर, बाजार, दूकान में बोले जाने वाले वाक्य बातचीत के रुप में दिये गये है। पाठक गण इस का अध्ययन वाक्य रचना पर ध्यान देते हुए करे, पर व्याकरण की चिन्ता न करें।
चौथा भाग-इस में कन्नड के व्याकरण का सारांश दिया गया है । विभक्ति, लिंग, वचन, बिनेका, किया, काल आदि का परिचय देकर उदाहरण भी दिये गये है।
पांचवा भाग-इस में उच्चारण नहीं दिये गये है । इस में कुछ उपयोगी पाठ दिये गये है, जैसे पत्र लेखन, हमारा देश इत्यादि। आखिर में कुछ शब्द दिये गये है। हमारा विश्वास है कि हिन्दी भाषी इस पुस्तक का अध्ययन कर लाभान्वित होंगे।
विषय-सूची |
||
1 |
सीखने का तरीका |
12 |
2 |
कैसे लिखना चाहिए -स्वर |
15 |
3 |
कैसे लिखना चाहिए - व्यंजन |
16 |
4 |
पहला भाग (अक्षरमाला) स्वर |
17 |
5 |
व्यजंन |
18 |
6 |
स्वर-चिह्न |
19 |
7 |
सस्वर व्यञ्जन |
21 |
8 |
संयुक्ताक्षर |
28 |
9 |
संयुक्ताक्षर– अर्थ के साथ |
31 |
10 |
दूसरा भाग (विभिन्न पद) |
|
11 |
क्रियापद |
33 |
12 |
संज्ञा |
38 |
13 |
सर्वनाम |
42 |
14 |
शरीर के भाग |
43 |
15 |
प्रदेश |
47 |
16 |
समय |
51 |
17 |
हफ्ते के दिन |
53 |
18 |
मौसम |
54 |
19 |
चान्द्रमान के महीने |
56 |
20 |
सौरमान के महीने |
58 |
21 |
दिशाएँ |
60 |
22 |
घर |
62 |
23 |
परिवार |
66 |
24 |
भावनाएँ |
78 |
25 |
खाने की चीज़े |
76 |
26 |
तरकारियाँ |
80 |
27 |
फल |
81 |
28 |
जानवर |
83 |
29 |
पक्षी |
87 |
30 |
क्रिमि-कींट |
89 |
31 |
शिक्षिण-सम्बन्धी |
90 |
32 |
डाक-संबन्धी |
94 |
33 |
दस्तकारी |
98 |
34 |
पेशावर |
102 |
35 |
नाप |
105 |
36 |
रंग |
107 |
37 |
खनिज |
109 |
38 |
संख्याएँ |
111 |
39 |
तीसरा भाग (वाक्य) दो पद के वाक्य |
124 |
40 |
तीन पद के वाक्य |
125 |
41 |
क्रियाएँ |
128 |
42 |
प्रश्रार्थक वाक्य |
133 |
43 |
प्रेरणार्थक वाक्य |
136 |
44 |
घर के बारे में |
139 |
45 |
बाजार में |
142 |
46 |
फल की दूकान में |
145 |
47 |
बातचीत |
148 |
48 |
चौथा भाग (व्याकरण) विभक्तियाँ |
153 |
49 |
सर्वनाम शब्द (सिभत्तियों में) |
166 |
50 |
'तावु' (आप) शब्दका प्रयोग |
171 |
51 |
लिंङ |
173 |
52 |
वचन |
175 |
53 |
विशेषण |
177 |
54 |
क्रियायें और काल-वर्तमानकाल |
178 |
55 |
भूतकाल |
179 |
56 |
भविष्यत् काल |
181 |
57 |
कुछ धातुएँ |
183 |
58 |
निषेध वाचक |
185 |
59 |
'अवनु ', ' आता ' (वाला) शब्द प्रयोग |
187 |
60 |
'इसु', 'बहदु', 'यानु' शब्दों का प्रयोग |
188 |
61 |
कर्तृवाचक और कर्मवाचक |
189 |
62 |
कियाएँ और उन के वाक्यस्वरूप |
190 |
63 |
हित वाक्य |
191 |
64 |
कुछ छोटे वाक्य |
193 |
65 |
कुछ बडे वाक्य |
195 |
66 |
कुछ मुख्य शब्द |
197 |
67 |
नमूने के वाक्य |
200 |
68 |
पांचवाँ भाग (अभ्यास) |
|
69 |
पत्र लेखन |
201 |
70 |
निबन्ध:हाथी |
203 |
71 |
गाँव जहाँ मैं रहता है |
204 |
72 |
बेंगलूर |
206 |
73 |
हमारा देश |
208 |
74 |
कुछ शब्द |
212 |
75 |
राष्ट्र गान |
223 |