दो शब्द
हारमोनियम वाद्य एक विदेशी वाद्य है। जब अंग्रेजों ने भारत के शासन की बागडोर अपने हाथ में ली थी तो वे अपने साथ संगीत के वाद्य-यंत्र पियानो, ऑर्गन, हारमोनियम तथा वायलिन आदि लाए । कुछ ही दिनों में हारमोनियम वाद्य भारत में इतना लोकप्रिय हो गया कि राज-प्रासादों से लेकर निर्धन-कुटीर तक सभी स्थानों में इसकी ध्वनि सुनाई देने लगी । शास्त्रीय संगीत में भी इसने सारंगी के साथ-साथ अपना स्थान प्राप्त कर लिया । आज प्रत्येक महफिल, टेलीविजन, रेडियो स्टेशन, रिकार्डिंग कम्पनी तथा फिल्म जगत में यह वाद्य अपना प्रभुत्व जमा चुका है।
इस वाद्य को बजाने के लिए मैंने 15 दिन का पाठ्यक्रम इस पुस्तक में रखा है । मेरा विश्वास है कि यदि विद्यार्थी तथा संगीत-प्रेमी इस पाठ्यक्रम को ध्यानपूर्वक ग्रहण करेंगे तो अवश्य ही वे इस वाद्य को बजाने में सफलता प्राप्त कर लेंगे ।
मैंने इस पाठ्यक्रम में हारमोनियम के अंगों से लेकर उसके बजाने की विधि, पदों पर उँगलियों का चलन, प्रत्येक पर्दे से सातों स्वरों की उत्पत्ति और उसके साथ ही संगीत का शास्त्रीय परिचय लय, ताल आदि के साथ दिया है ।
आजकल जनता में फिल्मी धुन बजाने का अधिक शौक है । मैंने कई वर्ष पूर्व एक फिल्मी हारमोनियम गाइड लिखी थी, जिसका 'हिन्दी पुस्तक भंडार' चावड़ी बाजार, दिल्ली-6, उन्नीसवां संस्करण छाप चुका है । इसमें नवीनतम फिल्मों की धुनें दी गई हैं । प्रस्तुत पाठ्यक्रम के अन्दर मैंने धुनों के मूल कारण को छात्रों तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है। फिल्मी जगत में जितनी भी नवीनतम धुनें बनाई जाती हैं, उनका आधार शास्त्रीय संगीत ही होता है । कुछ धुनें तो शास्त्रीय संगीत में ही बनाई जाती हैं । जैसे 'मन तड़पत हरिदर्शन' यह धुन मालकौंस राग की है । फिल्मी धुन बजाने में कोई भी कठिनाई नहीं होगी ।
इस पाठ्यक्रम में शास्त्रीय संगीत के मूल 10 ठाठों के अधिकतम प्रचलित रागों का परिचय, उनके गानों, छोटे और बड़े ख्याल, ताल, सरगम, भजन आदि इस क्रम से दिए हैं कि शिक्षार्थी को उसके अभ्यास करने, समझने तथा गाने-बजाने में कोई कठिनाई न हो और वे स्वयं अन्य किसी प्रकार की सहायता के बिना, संगीत-ज्ञान के साथ-साथ हारमोनियम बजाना तथा उसके साथ गाना भी सीख सकते हैं ।
पन्द्रह दिन का यह पाठ्यक्रम देखने में अनुपम और अभूतपूर्व शैली है । इस शैली से विद्यार्थी को वह पूरा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा, जो उसे साधारण शिक्षा-संस्थानों से वषों में प्राप्त होता है । इस कोर्स को पूरा करने के पश्चात् केवल साधना मात्र शेष रह जाती है जिसे वह स्वयं पूरा कर सकता है। इसी शैली में मैंने अन्य 4 पुस्तकें, 15 दिन में गिटार सीखिये, सितार सीखिये, वायलिन सीखिये, ताल-वाद्य में तबला, मृदंग, कोंगो तथा बोंगो सीखिये और आरकेस्ट्रा में मेण्डोलिन, बैंजो, पियानो एकोर्डियन सीखिये, भी लिखी हैं । आशा है कि संगीत-प्रेमी इन पुस्तकों से अवश्य ही लाभ उठाएंगे ।
संगीत-प्रेमियों तथा विद्वानों से मेरा अनुरोध है कि इस शैली की पुस्तकों में जो कमी उन्हें दिखाई दे, उसके विषय में मुझे सूचित करने का कष्ट करें, जिससे कि आगामी संस्करणों में उसे दूर किया जा सके और छात्र उनके सहयोग एवं विचारों से लाभान्वित हो सकें ।
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