पुस्तक के विषय में
जो लोग शरीर के तल पर ज्यादा संवेदनशील हैं, उनके लिए ऐसी विधियां हैं जो शरीर के माध्यम से ही आत्यंतिक अनुभव पर पहुंचा सकती हैं। जो भाव प्रवण हैं, भावुक प्रकृति के हैं, वे भक्ति प्रार्थना के मार्ग पर चल सकते हैं। जो बुद्धि प्रवण हैं, बुद्धिजीवी हैं, उनके लिए ध्यान, सजगता, साक्षीभाव उपयोगी हो सकते हैं।
लेकिन मेरी ध्यान की विधियां एक प्रकार से अलग हट कर हैं। मैंने ऐसी ध्यान विधियों की संरचना की है जो तीनों प्रकार के लोगों द्वारा उपयोग में लाई जा सकती हैं। उनमें शरीर का भी पूरा उपयोग है, भाव का भी पूरा उपयोग है और होश का भी पूरा उपयोग है। तीनों का एक साथ उपयोग है और वे अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग ढंग से काम करती हैं। शरीर, हृदय, मन मेरी सभी ध्यान विधियां इसी श्रृंखला में काम करती हैं। वे शरीर पर शुरू होती हैं, वे हृदय से गुजरती हैं, वे मन पर पहुंचती हैं और फिर वे मनातीत में अतिक्रमण कर जाती हैं।
ध्यान न तो ज्ञान है, क्योंकि कोई ग्रंथ पढ़ने से ध्यान नहीं उपलब्ध होता। और न ध्यान भक्ति है, क्योंकि गिड़गिड़ाने से और प्रार्थना करने से, नाचने से कूदने से और संगीत में अपने को भुलाने से कोई ध्यान उपलब्ध नहीं होता। और न ही ध्यान मात्र कर्म है कि कोई कर्मठ हो, सेवा करे या कुछ करे, तो ध्यान उपलब्ध हो जाता है। ध्यान तो एक अलग बिंदु है, वह तो जीवन में साक्षीभाव को स्थापित करने से उपलब्ध होता है।
अगर कोई अपने कर्म के जीवन में साक्षीभाव को उपलब्ध हो जाए, जो भी करे, उसका साक्षी भी हो, तो कर्म ही धर्म का अंग हो जाएंगे। तब सेवा धर्म हो जाएगी। तब जो किया जा रहा है वह धर्म हो जाएगा। बोधपूर्वक करने में ही कर्म ध्यान का हिस्सा हो जाता है। प्रेम हम करते हैं। प्रेम अगर बोधपूर्वक न हो, तो वासना बन जाता है और मोह बन जाता है। प्रेम यदि बोधपूर्वक हो, तो प्रेम से बड़ी मुक्ति इस जगत में दूसरी नहीं है, प्रेम भक्ति हो जाता है। और भक्ति के लिए मंदिर जाने की जरूरत नहीं हैं। भक्ति के लिए प्रेम का ध्यानयुक्त होना जरूरी है। अगर आप अपने बच्चे को, अपनी पत्नी को, अपनी मां को, अपने मित्र को, किसी को भी प्रेम करते हैं, अगर वही प्रेम ध्यान से संयुक्त हो जाए, अगर उसी प्रेम के आप साक्षी हो जाएं, तो वही प्रेम भक्ति हो जाएगा। प्रेम जब बोधपूर्वक हो, तो भक्ति हो जाता है। प्रेम जब अबोधपूर्वक हो, तो मोह हो जाता है।
ज्ञान जब बोधपूर्वक हो, तो मुक्त करने लगता है। और ज्ञान जब अंधा हो, मूर्च्छित हो, तो बांधने लगता है। वैसे ही अगर कोई विचारों को इकट्ठा करता रहे, शास्त्र पढ़ता रहे, व्याख्याएं पढ़ता रहे, विश्लेषण करता रहे, तर्क करता रहे और सोचे कि ज्ञान उपलब्ध हो गया, तो गलती में है। वैसे ज्ञान नहीं उपलब्ध होता, केवल ज्ञान का बोझ बढ़ जाता है। वैसे मस्तिष्क में कोई चैतन्य का संचार नहीं होता, केवल उधार विचार संगृहीत हो जाते हैं। लेकिन अगर ज्ञान के बिंदु पर ध्यान का संयोग हो साक्षी का संयोग हो, तो फिर विचार तो नहीं इकट्ठे होते, बल्कि विचार शक्ति जाग्रत होना शुरू हो जाती है। तब फिर बाहर से तो शास्त्र नहीं पढ़ने होते, भीतर से सत्य का उदघाटन शुरू हो जाता है।
मेरी दृष्टि में, ध्यान एकमात्र योग है। न तो कर्म कोई योग है, न भक्ति कोई योग है और न ज्ञान कोई योग है। ध्यान योग है। और आपकी प्रकृति कुछ भी हो, ध्यान के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है।
अनुक्रम |
||
ध्यान की भूमिका |
9 |
|
ध्यान : जीवन का सबसे बड़ा आनंद |
11 |
|
ध्यान की जगह |
13 |
|
ध्यान की विधि कैसे चुनें |
15 |
|
सुबह के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
1 |
सूर्योदय की प्रतीक्षा |
20 |
2 |
उगते सूरज की प्रशंसा मे |
20 |
3 |
सक्रिय ध्यान |
21 |
4 |
मंडल ध्यान |
22 |
5 |
तकिया पीटना |
23 |
6 |
कुते की तरह हांफना |
23 |
7 |
नटराज ध्यान |
24 |
8 |
इस क्षण मे जीना |
25 |
9 |
स्टॉप! ध्यान |
25 |
10 |
कार्य-ध्यान की तरह |
26 |
11 |
सृजन मे डूब जाएं |
27 |
12 |
गैर-यांत्रिक होना ही रहस्य है |
28 |
13 |
साधारण चाय का आनंद |
28 |
14 |
शांत प्रतीक्षा |
29 |
15 |
कभी, अचानक ऐसे हो जाएं जैसे नहीं है |
30 |
16 |
'मैं यह नहीं हूं' |
30 |
17 |
अपने विचार लिखना |
31 |
18 |
विनोदी चेहरे |
31 |
19 |
पृथ्वी से संपर्क |
32 |
20 |
श्वास को शिथिल करो |
32 |
21 |
'इस व्यक्ति को शांति मिले' |
33 |
22 |
तनाव विधि |
33 |
23 |
विपरीत पर विचार |
34 |
24 |
अद्वैत' |
34 |
25 |
'हां' का अनुसरण |
35 |
26 |
वृक्ष से मैत्री |
36 |
27 |
'क्या तुम यहां हो, |
37 |
28 |
निष्क्रिय ध्यान |
37 |
29 |
आंधी के बाद की निस्तब्धता |
38 |
30 |
निश्चल ध्यानयोग |
39 |
दिन के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
31 |
स्वप्न में सचेतन प्रवेश |
44 |
32 |
यौन-मुद्रा काम-ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की एक सरल विधि |
51 |
33 |
मूलबंध ब्रह्मचर्य-उपलब्धि की सरलतम विधि |
55 |
34 |
कल्पना-भोग |
58 |
35 |
मैत्री : प्रभु-मंदिर का द्वार |
60 |
36 |
शांति-सूत्र नियति की स्वीकृति |
63 |
37 |
मौन और एकांत का इक्कीस दिवसीय प्रयोग |
66 |
38 |
प्राण-साधना |
71 |
39 |
मंत्र-साधना |
74 |
40 |
अंतर्वाणी साधना |
79 |
41 |
संयम साधना-1 |
81 |
42 |
संयम साधना-2 |
84 |
43 |
संतुलन ध्यान-1 |
85 |
44 |
संतुलन ध्यान-2 |
86 |
45 |
श्रेष्ठतम क्षण का ध्यान |
86 |
46 |
'मैं-तू' ध्यान |
89 |
47 |
इंद्रियों को थका डालें |
89 |
अपराह्य में करनें वाली ध्यान विधियां |
||
48 |
श्वास : सबसे गहरा मंत्र |
94 |
49 |
भीतरी आकाश का अंतरिक्ष-यात्री |
94 |
50 |
आकाश सा विराट एवं अणु सा छोटा |
95 |
51 |
'एक' का अनुभव |
96 |
52 |
आंतरिक मुस्कान |
97 |
53 |
ओशो' |
97 |
54 |
देखना ही ध्यान है |
98 |
55 |
शब्दों के बिना देखना |
99 |
56 |
मौन का रंग |
99 |
57 |
सिरदर्द को देखना |
100 |
58 |
ऊर्जा का स्तंभ |
101 |
59 |
गर्भ की शांति |
102 |
संध्या के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
60 |
कुंडलिनी ध्यान |
106 |
61 |
झूमना |
107 |
62 |
सामूहिक नृत्य |
107 |
63 |
वृक्ष के समान नृत्य |
108 |
64 |
हाथों से नृत्य |
108 |
65 |
सूक्ष्म पर्तो को जगाना |
109 |
66 |
गीत गाओ |
110 |
67 |
हा गुंजन |
110 |
68 |
नादब्रह्म ध्यान |
111 |
69 |
स्त्री-पुरुष जोड़ों के लिए नादब्रह्म |
112 |
70 |
कीर्तन |
113 |
71 |
सामूहिक प्रार्थना |
114 |
72 |
मुर्दे की भांति हो जाएं |
115 |
73 |
अग्निशिखा |
116 |
रात के समय करले वाली ध्यान विधियां |
||
74 |
प्रकाश पर ध्यान |
120 |
75 |
बुद्धत्व का अवलोकन |
120 |
76 |
तारे का भीतर प्रवेश |
121 |
77 |
चंद्र ध्यान |
122 |
78 |
ब्रह्मांड के भाव मे सोने जाएं |
122 |
79 |
सब काल्पनिक है |
123 |
80 |
ध्यान के भीतर ध्यान |
123 |
81 |
पशु हो जाएं |
124 |
82 |
नकारात्मक हो जाएं |
125 |
83 |
'हां, हां, हां' |
126 |
84 |
एक छोटा, तीव्र कपन |
126 |
85 |
अपने सुरक्षा-कवच उतार दो |
127 |
86 |
जीवन और मृत्यु ध्यान |
127 |
87 |
बच्चे की दूध की बोतल |
128 |
88 |
भय में प्रवेश |
128 |
89 |
अपनी शून्यता में प्रवेश |
129 |
90 |
गर्भ में वापस लौटना |
129 |
91 |
आवाजें निकालना |
130 |
92 |
प्रार्थना ध्यान |
131 |
93 |
लातिहान ध्यान |
132 |
94 |
गौरीशंकर ध्यान |
133 |
95 |
देववाणी ध्यान |
134 |
96 |
प्रेम |
135 |
97 |
झूठे प्रेम खो जाएंगे |
136 |
98 |
प्रेम को फैलाएं |
137 |
99 |
प्रेमी- युगल एक-दूसरे में घुलें-मिलें |
138 |
100 |
प्रेम के प्रति समर्पण |
139 |
101 |
प्रेम-कृत्य को अपने आप होने दो |
139 |
102 |
कृत्यों में साक्षीभाव |
140 |
103 |
बहना- मिटना-तथाता ध्यान |
141 |
104 |
अंधकार, अकेले होने, और मिटने का बोध |
147 |
105 |
स्वेच्छा से मृत्यु में प्रवेश |
153 |
106 |
सजग मृत्यु और शरीर से अलग होने की विधि |
156 |
107 |
मृतवत हो जाना |
157 |
108 |
जाति-स्मरण के प्रयोग |
161 |
109 |
अंतर्प्रकाश साधना |
167 |
110 |
शिवनेत्र |
170 |
111 |
त्राटक - एकटक देखने की विधि |
171 |
112 |
त्राटक ध्यान -1 |
172 |
113 |
त्राटक ध्यान -2 |
173 |
114 |
त्राटक ध्यान -3 |
175 |
115 |
रात्रि- ध्यान |
177 |
परिशिष्ट |
||
ओशो-सक परिचय |
179 |
|
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट |
183 |
|
ओशो का हिंदी साहित्य |
185 |
पुस्तक के विषय में
जो लोग शरीर के तल पर ज्यादा संवेदनशील हैं, उनके लिए ऐसी विधियां हैं जो शरीर के माध्यम से ही आत्यंतिक अनुभव पर पहुंचा सकती हैं। जो भाव प्रवण हैं, भावुक प्रकृति के हैं, वे भक्ति प्रार्थना के मार्ग पर चल सकते हैं। जो बुद्धि प्रवण हैं, बुद्धिजीवी हैं, उनके लिए ध्यान, सजगता, साक्षीभाव उपयोगी हो सकते हैं।
लेकिन मेरी ध्यान की विधियां एक प्रकार से अलग हट कर हैं। मैंने ऐसी ध्यान विधियों की संरचना की है जो तीनों प्रकार के लोगों द्वारा उपयोग में लाई जा सकती हैं। उनमें शरीर का भी पूरा उपयोग है, भाव का भी पूरा उपयोग है और होश का भी पूरा उपयोग है। तीनों का एक साथ उपयोग है और वे अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग ढंग से काम करती हैं। शरीर, हृदय, मन मेरी सभी ध्यान विधियां इसी श्रृंखला में काम करती हैं। वे शरीर पर शुरू होती हैं, वे हृदय से गुजरती हैं, वे मन पर पहुंचती हैं और फिर वे मनातीत में अतिक्रमण कर जाती हैं।
ध्यान न तो ज्ञान है, क्योंकि कोई ग्रंथ पढ़ने से ध्यान नहीं उपलब्ध होता। और न ध्यान भक्ति है, क्योंकि गिड़गिड़ाने से और प्रार्थना करने से, नाचने से कूदने से और संगीत में अपने को भुलाने से कोई ध्यान उपलब्ध नहीं होता। और न ही ध्यान मात्र कर्म है कि कोई कर्मठ हो, सेवा करे या कुछ करे, तो ध्यान उपलब्ध हो जाता है। ध्यान तो एक अलग बिंदु है, वह तो जीवन में साक्षीभाव को स्थापित करने से उपलब्ध होता है।
अगर कोई अपने कर्म के जीवन में साक्षीभाव को उपलब्ध हो जाए, जो भी करे, उसका साक्षी भी हो, तो कर्म ही धर्म का अंग हो जाएंगे। तब सेवा धर्म हो जाएगी। तब जो किया जा रहा है वह धर्म हो जाएगा। बोधपूर्वक करने में ही कर्म ध्यान का हिस्सा हो जाता है। प्रेम हम करते हैं। प्रेम अगर बोधपूर्वक न हो, तो वासना बन जाता है और मोह बन जाता है। प्रेम यदि बोधपूर्वक हो, तो प्रेम से बड़ी मुक्ति इस जगत में दूसरी नहीं है, प्रेम भक्ति हो जाता है। और भक्ति के लिए मंदिर जाने की जरूरत नहीं हैं। भक्ति के लिए प्रेम का ध्यानयुक्त होना जरूरी है। अगर आप अपने बच्चे को, अपनी पत्नी को, अपनी मां को, अपने मित्र को, किसी को भी प्रेम करते हैं, अगर वही प्रेम ध्यान से संयुक्त हो जाए, अगर उसी प्रेम के आप साक्षी हो जाएं, तो वही प्रेम भक्ति हो जाएगा। प्रेम जब बोधपूर्वक हो, तो भक्ति हो जाता है। प्रेम जब अबोधपूर्वक हो, तो मोह हो जाता है।
ज्ञान जब बोधपूर्वक हो, तो मुक्त करने लगता है। और ज्ञान जब अंधा हो, मूर्च्छित हो, तो बांधने लगता है। वैसे ही अगर कोई विचारों को इकट्ठा करता रहे, शास्त्र पढ़ता रहे, व्याख्याएं पढ़ता रहे, विश्लेषण करता रहे, तर्क करता रहे और सोचे कि ज्ञान उपलब्ध हो गया, तो गलती में है। वैसे ज्ञान नहीं उपलब्ध होता, केवल ज्ञान का बोझ बढ़ जाता है। वैसे मस्तिष्क में कोई चैतन्य का संचार नहीं होता, केवल उधार विचार संगृहीत हो जाते हैं। लेकिन अगर ज्ञान के बिंदु पर ध्यान का संयोग हो साक्षी का संयोग हो, तो फिर विचार तो नहीं इकट्ठे होते, बल्कि विचार शक्ति जाग्रत होना शुरू हो जाती है। तब फिर बाहर से तो शास्त्र नहीं पढ़ने होते, भीतर से सत्य का उदघाटन शुरू हो जाता है।
मेरी दृष्टि में, ध्यान एकमात्र योग है। न तो कर्म कोई योग है, न भक्ति कोई योग है और न ज्ञान कोई योग है। ध्यान योग है। और आपकी प्रकृति कुछ भी हो, ध्यान के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है।
अनुक्रम |
||
ध्यान की भूमिका |
9 |
|
ध्यान : जीवन का सबसे बड़ा आनंद |
11 |
|
ध्यान की जगह |
13 |
|
ध्यान की विधि कैसे चुनें |
15 |
|
सुबह के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
1 |
सूर्योदय की प्रतीक्षा |
20 |
2 |
उगते सूरज की प्रशंसा मे |
20 |
3 |
सक्रिय ध्यान |
21 |
4 |
मंडल ध्यान |
22 |
5 |
तकिया पीटना |
23 |
6 |
कुते की तरह हांफना |
23 |
7 |
नटराज ध्यान |
24 |
8 |
इस क्षण मे जीना |
25 |
9 |
स्टॉप! ध्यान |
25 |
10 |
कार्य-ध्यान की तरह |
26 |
11 |
सृजन मे डूब जाएं |
27 |
12 |
गैर-यांत्रिक होना ही रहस्य है |
28 |
13 |
साधारण चाय का आनंद |
28 |
14 |
शांत प्रतीक्षा |
29 |
15 |
कभी, अचानक ऐसे हो जाएं जैसे नहीं है |
30 |
16 |
'मैं यह नहीं हूं' |
30 |
17 |
अपने विचार लिखना |
31 |
18 |
विनोदी चेहरे |
31 |
19 |
पृथ्वी से संपर्क |
32 |
20 |
श्वास को शिथिल करो |
32 |
21 |
'इस व्यक्ति को शांति मिले' |
33 |
22 |
तनाव विधि |
33 |
23 |
विपरीत पर विचार |
34 |
24 |
अद्वैत' |
34 |
25 |
'हां' का अनुसरण |
35 |
26 |
वृक्ष से मैत्री |
36 |
27 |
'क्या तुम यहां हो, |
37 |
28 |
निष्क्रिय ध्यान |
37 |
29 |
आंधी के बाद की निस्तब्धता |
38 |
30 |
निश्चल ध्यानयोग |
39 |
दिन के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
31 |
स्वप्न में सचेतन प्रवेश |
44 |
32 |
यौन-मुद्रा काम-ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की एक सरल विधि |
51 |
33 |
मूलबंध ब्रह्मचर्य-उपलब्धि की सरलतम विधि |
55 |
34 |
कल्पना-भोग |
58 |
35 |
मैत्री : प्रभु-मंदिर का द्वार |
60 |
36 |
शांति-सूत्र नियति की स्वीकृति |
63 |
37 |
मौन और एकांत का इक्कीस दिवसीय प्रयोग |
66 |
38 |
प्राण-साधना |
71 |
39 |
मंत्र-साधना |
74 |
40 |
अंतर्वाणी साधना |
79 |
41 |
संयम साधना-1 |
81 |
42 |
संयम साधना-2 |
84 |
43 |
संतुलन ध्यान-1 |
85 |
44 |
संतुलन ध्यान-2 |
86 |
45 |
श्रेष्ठतम क्षण का ध्यान |
86 |
46 |
'मैं-तू' ध्यान |
89 |
47 |
इंद्रियों को थका डालें |
89 |
अपराह्य में करनें वाली ध्यान विधियां |
||
48 |
श्वास : सबसे गहरा मंत्र |
94 |
49 |
भीतरी आकाश का अंतरिक्ष-यात्री |
94 |
50 |
आकाश सा विराट एवं अणु सा छोटा |
95 |
51 |
'एक' का अनुभव |
96 |
52 |
आंतरिक मुस्कान |
97 |
53 |
ओशो' |
97 |
54 |
देखना ही ध्यान है |
98 |
55 |
शब्दों के बिना देखना |
99 |
56 |
मौन का रंग |
99 |
57 |
सिरदर्द को देखना |
100 |
58 |
ऊर्जा का स्तंभ |
101 |
59 |
गर्भ की शांति |
102 |
संध्या के समय करने वाली ध्यान विधियां |
||
60 |
कुंडलिनी ध्यान |
106 |
61 |
झूमना |
107 |
62 |
सामूहिक नृत्य |
107 |
63 |
वृक्ष के समान नृत्य |
108 |
64 |
हाथों से नृत्य |
108 |
65 |
सूक्ष्म पर्तो को जगाना |
109 |
66 |
गीत गाओ |
110 |
67 |
हा गुंजन |
110 |
68 |
नादब्रह्म ध्यान |
111 |
69 |
स्त्री-पुरुष जोड़ों के लिए नादब्रह्म |
112 |
70 |
कीर्तन |
113 |
71 |
सामूहिक प्रार्थना |
114 |
72 |
मुर्दे की भांति हो जाएं |
115 |
73 |
अग्निशिखा |
116 |
रात के समय करले वाली ध्यान विधियां |
||
74 |
प्रकाश पर ध्यान |
120 |
75 |
बुद्धत्व का अवलोकन |
120 |
76 |
तारे का भीतर प्रवेश |
121 |
77 |
चंद्र ध्यान |
122 |
78 |
ब्रह्मांड के भाव मे सोने जाएं |
122 |
79 |
सब काल्पनिक है |
123 |
80 |
ध्यान के भीतर ध्यान |
123 |
81 |
पशु हो जाएं |
124 |
82 |
नकारात्मक हो जाएं |
125 |
83 |
'हां, हां, हां' |
126 |
84 |
एक छोटा, तीव्र कपन |
126 |
85 |
अपने सुरक्षा-कवच उतार दो |
127 |
86 |
जीवन और मृत्यु ध्यान |
127 |
87 |
बच्चे की दूध की बोतल |
128 |
88 |
भय में प्रवेश |
128 |
89 |
अपनी शून्यता में प्रवेश |
129 |
90 |
गर्भ में वापस लौटना |
129 |
91 |
आवाजें निकालना |
130 |
92 |
प्रार्थना ध्यान |
131 |
93 |
लातिहान ध्यान |
132 |
94 |
गौरीशंकर ध्यान |
133 |
95 |
देववाणी ध्यान |
134 |
96 |
प्रेम |
135 |
97 |
झूठे प्रेम खो जाएंगे |
136 |
98 |
प्रेम को फैलाएं |
137 |
99 |
प्रेमी- युगल एक-दूसरे में घुलें-मिलें |
138 |
100 |
प्रेम के प्रति समर्पण |
139 |
101 |
प्रेम-कृत्य को अपने आप होने दो |
139 |
102 |
कृत्यों में साक्षीभाव |
140 |
103 |
बहना- मिटना-तथाता ध्यान |
141 |
104 |
अंधकार, अकेले होने, और मिटने का बोध |
147 |
105 |
स्वेच्छा से मृत्यु में प्रवेश |
153 |
106 |
सजग मृत्यु और शरीर से अलग होने की विधि |
156 |
107 |
मृतवत हो जाना |
157 |
108 |
जाति-स्मरण के प्रयोग |
161 |
109 |
अंतर्प्रकाश साधना |
167 |
110 |
शिवनेत्र |
170 |
111 |
त्राटक - एकटक देखने की विधि |
171 |
112 |
त्राटक ध्यान -1 |
172 |
113 |
त्राटक ध्यान -2 |
173 |
114 |
त्राटक ध्यान -3 |
175 |
115 |
रात्रि- ध्यान |
177 |
परिशिष्ट |
||
ओशो-सक परिचय |
179 |
|
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट |
183 |
|
ओशो का हिंदी साहित्य |
185 |